काले-सफेद धुएं से नए पोप का कनेक्शन क्या है:120 लोगों पर नए पोप को चुनने की जिम्मेदारी; पोप फ्रांसिस के बाद 4 उत्तराधिकारी

पोप फ्रांसिस की हालत गंभीर बनी हुई है। उनके दोनों फेफड़ों में न्यूमोनिया है। इसके साथ ही रिपोर्ट में किडनी फेल होने के लक्षण दिख रहे हैं। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि स्वास्थ्य वजहों से वे पद से इस्तीफा दे सकते हैं। अगर पोप फ्रांसिस पद से इस्तीफा देते हैं तो उनके स्थान पर नए पोप का चुनाव कैसे होगा आइए जानते हैं… सवाल- नए पोप कैसे चुने जाते हैं? सफेद-काले धुएं से इसका क्या लेना-देना है? पोप की मौत के बाद अगले पोप के दावेदारों के बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं होती है। नए पोप के चयन की प्रक्रिया को ‘पैपल कॉनक्लेव’ कहा जाता है। जब पोप की मौत हो जाती है या फिर वे इस्तीफा दे देते हैं, तब कैथोलिक चर्च के कार्डिनल्स चुनाव करते हैं। कार्डिनल्स बड़े पादरियों का एक ग्रुप है। इनका काम पोप को सलाह देना है। हर बार इन्हीं कार्डिनल्स में से पोप चुना जाता है। हालांकि पोप बनने के लिए कार्डिनल होना जरूरी नहीं है, लेकिन अब तक हर पोप चुने जाने से पहले कार्डिनल रह चुके हैं। कॉन्क्लेव का पहला दिन विशेष प्रार्थना सभा से शुरू होता है। प्रार्थना के दौरान सभी कार्डिनल्स एक कमरे में एकजुट होते हैं। इसमें हर एक कार्डिनल गॉस्पेल यानी पवित्र किताब पर हाथ रखकर यह कसम खाता है कि वह इस चुनाव से जुड़ी किसी भी जानकारी का कभी भी किसी और के सामने खुलासा नहीं करेगा। इसके बाद कमरे को बंद कर दिया जाता है फिर सीक्रेट तरीके से वोटिंग की प्रक्रिया शुरू होती है। हर एक कार्डिनल अपनी पसंद के नाम को एक कागज पर लिखता है। इसके बाद इन्हें एक प्लेट में रखा जाता है। इसके बाद तीन अधिकारी इन्हें गिनते हैं। वोटिंग के बाद सभी बैलेट को जला दिया जाता है। जब वोटिंग खत्म हो जाती है तो रिजल्ट निकालने के लिए सफेद या फिर काले धुएं का संकेत दिया जाता है। काले धुएं का मतलब- अभी तक नए पोप को लेकर कोई फैसला नहीं किया गया है।सफेद धुआं तब निकलता है जब नया पोप चुन लिया जाता है। सवाल- पोप बनने के लिए दो-तिहाई वोट की जरूरत क्यों होती है? साल 1159 के चुनाव में एक साथ 2 पोप चुन लिए गए थे। कार्डिनल्स के बड़े गुट ने कार्डिनल रोलैंडो को पोप अलेक्जेंडर-3 के रूप में चुना। वहीं, कार्डिनल्स के छोटे गुट ने मोंटीसेली को पोप विक्टर-4 के रूप में चुना। छोटे गुट के पोप को राजा फ्रेडरिक बारबोसा का समर्थन हासिल था। ऐसे में पोप अलेक्जेंडर-3 को ज्यादातर समय रोम से बाहर ही बिताना पड़ा। वहीं, कम समर्थन वाले पोप रोम में जमे रहे। यह विवाद 1164 में पोप विक्टर-4 की मौत के बाद ही समाप्त हुआ। इसके बाद से ही पोप चुनने की प्रक्रिया में बदलाव किए गए। सभी कार्डिल्स के बीच ज्यादा से ज्यादा सहमति रहे इसलिए पोप के चुनाव के लिए दो-तिहाई बहुमत की जरूरत रखी गई है। वोटिंग की प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है, जब तक किसी एक को दो-तिहाई वोट नहीं मिल जाते। वोटिंग के तीन दिन बीत जाने के बाद भी कोई पोप नहीं चुना जाता है तो वोटिंग एक दिन के लिए रुक जाती है। 33 दौर के बाद भी अगर कोई नहीं चुना जाता है तब नए नियम के तहत टॉप-2 दावेदारों के बीच मुकाबला होता है। नए पोप के लिए दो चुनाव जो सबसे लंबे चले 13वीं शताब्दी में सबसे लंबे समय तक पोप का चुनाव चला था। तब नवंबर 1268 से सितंबर 1271 तक पोप के लिए वोटिंग होती रही। इतने लंबे समय तक चले चुनाव की असल वजह अंदरूनी कलह और बाहरी हस्तक्षेप को बताया गया था। इसके बाद से ही बंद कमरे में वोटिंग होनी शुरू हुई। इसके बाद 1740 में पोप के चुनाव में 7 महीने लगे थे। 21वीं सदी में अब तक पोप के चुनाव के लिए 2 कॉन्क्लेव हुए हैं। पोप बेनेडिक्ट के चुनाव के लिए 4 दिन और पोप फ्रांसिस के चुनाव के लिए 5 दिन लगे थे। सवाल- नए पोप का चुनाव कौन करता है? पोप बनने के लिए उम्मीदवार का पुरुष और कैथोलिक ईसाई होना जरूरी है। पोप को 120 कार्डिनल्स चुनते हैं। इन सभी की उम्र पोप की मौत या इस्तीफे के समय 80 साल से कम होनी चाहिए। 22 जनवरी 2025 तक दुनियाभर में 252 कार्डिनल हैं। इनमें से 138 कार्डिनल ऐसे हैं जिनकी उम्र 80 साल से कम है। फिलहाल यह साफ नहीं है कि इन 138 लोगों में से 120 लोगों को कैसे चुना जाएगा। नए पोप बनने के 4 बड़े दावेदार 1. पिएत्रो पारोलिन, इटली जन्म: 17 जनवरी 1955 (70 साल) कार्डिनल पिएत्रो पारोलिन पोप फ्रांसिस का उत्तराधिकारी बनने की रेस में सबसे आगे हैं। वे कॉन्क्लेव में सर्वोच्च रैंकिंग वाले कार्डिनल हैं और साल 2013 से वेटिकन के राज्य सचिव हैं। उन्होंने अपना करियर वेटिकन के राजनयिक विंग में बिताया है। चुनौती: 2013 में जिस तरह अमेरिका महाद्वीप के कार्डिनल को पोप बनाया गया, उसी तरह इस बार अफ्रीका, एशिया या फिर दूसरे महाद्वीप के कार्डिनल को मौका दिया जा सकता है। ऐसे में यूरोप के पोरोलिन का पक्ष कमजोर हो जाएगा। 2. कार्डिनल पीटर टर्कसन, घाना जन्म: 11 अक्टूबर, 1948 (76 साल) टर्कसन अफ्रीका महाद्वीप से आते हैं और नए पोप बनने के लिए अहम दावेदार हैं। सोशल जस्टिस, क्लाइमेट, गरीबी उन्मूलन पर उनके विचार पोप फ्रांसिस की नीतियों से मेल खाते हैं। चुनौती: टर्कसन की उम्र 76 साल है जो कि नए पोप बनने के लिए ज्यादा है मानी जाती है। हालांकि पिछली बार जब फ्रांसिस पोप बने थे तब उनकी उम्र 77 साल थी। 3. लुइस एंटोनियो टैग्ले, फिलीपींस जन्म: 21 जून, 1957 (67 साल) लुइस टैग्ले को ‘एशिया का फ्रांसिस’ कहा जाता है। उनकी करिश्माई शख्सियत और युवाओं के बीच लोकप्रियता की वजह से वे एक मजबूत दावेदार हैं। अगर वे पोप बनते हैं तो एशिया के पहले पोप होंगे। चुनौती: कुछ लोग उन्हें बहुत उदारवादी मानते हैं, जो रूढ़िवादी कार्डिनल्स को पसंद न आ सके। 4. कार्डिनल मैटियो जुप्पी, इटली जन्म: 11 अक्टूबर, 1955 (69 साल) जुप्पी इटली के एक प्रभावशाली कार्डिनल हैं और पोप फ्रांसिस के सबसे करीबी माने जाते हैं। जुप्पी को वेटिकन सिटी की तरफ से यूक्रेन और पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन से मिलने के अलावा कई वैश्विक यात्राओं पर भी भेजा जा चुका है। चुनौती: इटली से लगा

Feb 25, 2025 - 07:59
 61  501822
काले-सफेद धुएं से नए पोप का कनेक्शन क्या है:120 लोगों पर नए पोप को चुनने की जिम्मेदारी; पोप फ्रांसिस के बाद 4 उत्तराधिकारी
पोप फ्रांसिस की हालत गंभीर बनी हुई है। उनके दोनों फेफड़ों में न्यूमोनिया है। इसके साथ ही रिपोर्ट

काले-सफेद धुएं से नए पोप का कनेक्शन क्या है

कैथोलिक चर्च के इतिहास में, पोप का चयन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो पूरी दुनिया के कैथोलिकों के लिए विशेष महत्व रखती है। इस प्रक्रिया में, काले और सफेद धुएं का एक प्रतीकात्मक महत्व है। जब काले धुएं का उत्सर्जन होता है, तो इसका मतलब है कि नए पोप का चुनाव नहीं हुआ है। दूसरी ओर, सफेद धुआं यह संकेत देता है कि एक नया पोप चुन लिया गया है। यह प्रक्रिया, जिसे 'कॉनक्लेव' कहा जाता है, वेटिकन सिटी में आयोजित की जाती है और इसमें 120 से अधिक कार्डिनल्स भाग लेते हैं, जो नए पोप के चयन की जिम्मेदारी निभाते हैं।

नए पोप के चयन की प्रक्रिया

नए पोप को चुनने की इस प्रक्रिया में, कार्डिनल्स परामर्श करते हैं और अपनी राय साझा करते हैं। इस समय, ध्यानपूर्वक विचार और प्रार्थना बेहद आवश्यक होते हैं। जब तक एक स्पष्ट सहमति नहीं बनती है, तब तक धुआं निरंतर फैलता रहता है। इस बार, पोप फ्रांसिस के बाद चार उत्तराधिकारियों की संभावना पर चर्चा हो रही है। ये अद्वितीय चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जैसे वैश्विक स्तर पर कैथोलिक चर्च की स्थिति और उसकी प्रासंगिकता।

पोप फ्रांसिस की विरासत

पोप फ्रांसिस, जिन्होंने 2013 में इस पद को संभाला था, ने कई चर्चों और समुदायों पर सकारात्मक प्रभाव डाला है। उन्होंने मानवीयता, पर्यावरण और यथार्थता की ओर ध्यान आकर्षित किया है। उनके कार्यों की प्रेरणा से, नए पोप के चयन में जिस दिशा में चर्च आगे बढ़ता है, वह बहुत ही दिलचस्प होगा। चर्च के भीतर संतुलन और एकता बनाए रखना भी नए पोप की बड़ी चुनौतियों में से एक होगा।

निष्कर्ष

काले-सफेद धुएं का संकेत पोप के चुनाव में एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसकी गहरी सांस्कृतिक और धार्मिक प्रक्रियाएँ हैं। अगले पोप का चुनाव केवल एक धार्मिक घटना नहीं है, बल्कि यह पूरे विश्व में कैथोलिक समुदाय को एकजुट करने का एक अवसर भी है। भविष्य में नए पोप को चुनने की प्रक्रिया में, चर्च की दिशा और उसके उद्देश्यों की एक नई परिभाषा देखने को मिल सकती है।

News by indiatwoday.com Keywords: काले-सफेद धुएं, नए पोप, पोप का चयन, पोप फ्रांसिस, चर्च, कार्डिनल्स, वेटिकन सिटी, कैथोलिक चर्च, पोप के उत्तराधिकारी, कॉनक्लेव, धर्म, धार्मिक घटना, पोप की विरासत, संतुलन और एकता, मानवता, पर्यावरण, धार्मिक प्रक्रिया, वैश्विक कैथोलिक समुदाय.

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow