जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक सफलता नहीं:लखनऊ में आचार्य नारायण दास बोले- नैतिक मूल्यों के साथ समाज का कल्याण करना उद्देश्य
मेरी जीवन यात्रा एक छात्र के रूप में शुरू हुई। शिक्षक के रूप में समाज सेवा का पथ अपनाया। फिर विरक्त आश्रम ग्रहण किया। अपने गुरुजनों से सीखे गए उपदेशों को समाज और राष्ट्र कल्याण के लिए समर्पित करता हूं। यह विचार दैनिक भास्कर से खास बातचीत में ऋषिकेश के माया कुंड स्थित भारत मिलाप आश्रम के आचार्य नारायण दास महाराज ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा- जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक सफलता नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों के साथ समाज का कल्याण करना है। प्रश्न: भारत में करप्शन और रेप जैसी घटनाएं क्यों नहीं रुक रहीं? उत्तर: इसका मुख्य कारण यह है कि उपदेशक का जीवन उपदेश के अनुरूप नहीं है। यदि उपदेशक स्वयं नैतिकता का पालन करेगा तो उसका प्रभाव समाज पर अवश्य पड़ेगा। शिक्षक, प्रशासक और चिकित्सक अपने कर्तव्य से विमुख हो जाएं तो अगली पीढ़ी कमजोर हो जाएगी। कर्म को कर्मयोग तभी कहा जाएगा जब उसमें प्रेम और सेवा का भाव हो। प्रश्न: भारत में जातिवाद का अंत कैसे हो? उत्तर: जातिवाद स्वार्थ और अहंकार की देन है। स्वतंत्रता संग्राम में सभी जातियां एक थीं, लेकिन आज समाज जाति के नाम पर विभाजित है। भगवान राम ने जाति-भेद से ऊपर उठकर शबरी और निषादराज को अपनाया। प्राचीन वैदिक संस्कृति में समानता का संदेश था। जातिवाद का समाधान है कि हम कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था को समझें और सबको समान मानें। प्रश्न: ब्रह्म और ईश्वर में क्या अंतर है? उत्तर:ब्रह्म निराकार शक्ति है, जबकि ईश्वर उसका साकार रूप है। जैसे फूल और उसकी सुगंध, वैसे ही ब्रह्म और ईश्वर एक ही सत्य के दो रूप हैं। प्रश्न:'कर्म प्रधान विश्व रचि राखा' और 'तुलसी जस भवितव्यता' के बीच क्या संबंध है? उत्तर: संसार कर्म के आधार पर संचालित है। जैसा कर्म, वैसा फल। तुलसी जस भवितव्यता अर्थ भाग्य से नहीं है,इ सका अर्थ यह जैसी संगति और सोच होगी वैसे आप सफल होंगे। हमारे कर्म और संगति से मिलने वाली सहायता ही हमारे जीवन को दिशा देती है। प्रश्न: पुराणों में योग का रहस्य क्या है? उत्तर: योग का अर्थ है जुड़ना। यह भगवान के उपदेशों को आत्मसात कर अपने जीवन को सुधारने और समाज की सेवा करने का मार्ग है। पुराणों में योग के माध्यम से मानवीय गुणों के विकास और लोक कल्याण पर जोर दिया गया है।

जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक सफलता नहीं
लखनऊ में आचार्य नारायण दास ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण बयान दिया जिसमें उन्होंने समाज के वास्तविक उद्देश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जीवन का मुख्य उद्देश्य केवल भौतिक सफलता अर्जित करना नहीं है, बल्कि नैतिक मूल्यों के साथ समाज का कल्याण करना भी जरूरी है। यह विचारधारा हमें एक ऐसी दुनिया की ओर ले जाती है जहाँ मानवता की सेवा प्राथमिकता बनती है।
आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों का महत्व
आचार्य नारायण दास ने यह भी स्पष्ट किया कि आध्यात्मिक और नैतिक मूल्य जीवन की सच्ची सफलता के लिए आवश्यक हैं। वे मानते हैं कि भौतिक संपत्ति व्यक्ति को खुश नहीं कर सकती यदि उसके पास आदर्श और नैतिकता का अभाव है। समाज की भलाई के लिए हमें अपने नैतिक दायित्वों को समझना और निभाना चाहिए।
समाज की जिम्मेदारी
आचार्य ने यह भी कहा कि हर व्यक्ति को अपने समुदाय की भलाई के लिए काम करना चाहिए। अगर हम केवल खुद के बारे में सोचते रहेंगे, तो समाज में असमानता और समस्याएँ बढ़ेंगी। एकजुट होकर ही हम सामूहिक विकास और सच्चे सौभाग्य की ओर बढ़ सकते हैं।
नैतिक शिक्षा का महत्व
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नैतिक शिक्षा को शिक्षा प्रणाली में शामिल करना चाहिए। केवल तकनीकी या भौतिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि नैतिक शिक्षा भी आवश्यक है ताकि बच्चों में अच्छे मूल्यों का विकास हो सके।
समापन
आचार्य नारायण दास के विचारों ने हमें यह सिखाया कि जीवन का सही उद्देश्य केवल व्यक्तिगत सफलता नहीं, बल्कि सामूहिक कल्याण करना है। हमें अपने जीवन में नैतिकता और समाज सेवा को प्राथमिकता देनी चाहिए। यह सन्देश आज की जरूरत है, जहां व्यक्ति को समाज की भलाई में अपनी भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
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