देवी-देवताओं के नाम वाली बीड़ी पर रोक की याचिका खारिज:हाईकोर्ट ने कहा-याची बीड़ी कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शंकर पार्वती छाप के नाम और शैली में बीड़ी के विपणन और बिक्री पर रोक लगाने की मांग में दाखिल जनहित याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले में जनहित याचिका पर हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। याची बीड़ी कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है। मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली एवं न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने यह आदेश संत रविदास नगर भदोही निवासी आदर्श कुमार की जनहित याचिका पर दिया है। कोर्ट ने कहा कि याची को उपलब्ध कानून के अनुसार उचित कार्यवाही करने का अधिकार है। याची का कहना था कि देवी-देवताओं के नाम पर बीड़ी की बिक्री से उसकी धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं। पिछले कई वर्षों से इस ब्रांड की बीड़ी का निर्माण भदोही जिले के सुरियावां क्षेत्र में किया जा रहा है। पैकेजिंग में भगवान शंकर और पार्वती का चित्र हैं, जो लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला है।

Mar 7, 2025 - 01:59
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देवी-देवताओं के नाम वाली बीड़ी पर रोक की याचिका खारिज:हाईकोर्ट ने कहा-याची बीड़ी कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शंकर पार्वती छाप के नाम और शैली में बीड़ी के विपणन और बिक्री पर रोक लगाने की

देवी-देवताओं के नाम वाली बीड़ी पर रोक की याचिका खारिज

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हाईकोर्ट का निर्णय

हाल ही में, एक प्रमुख हाईकोर्ट ने देवी-देवताओं के नाम वाली बीड़ी पर रोक की याचिका को खारिज कर दिया है। याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि यह उत्पाद धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाता है, जिससे समाज में अशांति फैल सकती है। हालांकि, कोर्ट ने इस पर विशेष टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि किसी भी व्यक्ति को ऐसा लगता है कि उनका धार्मिक भावनाओं का उल्लंघन हो रहा है, तो वह बीड़ी कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं।

बीड़ी उद्योग में धार्मिक संदर्भ

भारत में बीड़ी का उद्योग पारंपरिक रूप से व्यापक है और इसमें विभिन्न भिन्नता शामिल हैं। ऐसे में, जब देवी-देवताओं के नाम का उपयोग करने की बात आती है, तो यह एक संवेदनशील मुद्दा बन जाता है। लोगों का मानना है कि धार्मिक नामों का इस्तेमाल व्यावसायिक लाभ के लिए नहीं किया जाना चाहिए। यह याचिका उस समय आई है जब धार्मिक स्वतंत्रता और व्यावसायिक नीतियों के बीच संतुलन साधने का प्रयास किया जा रहा है।

कानूनी पहलु और संभावनाएँ

याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट के द्वारा एक बड़ा झटका मिला है जिससे यह स्पष्ट होता है कि कानून के अनुसार ऐसे मामले में यदि कोई व्यक्ति ठोस सबूत प्रस्तुत नहीं कर पाता, तो अदालत उसकी बात को नहीं मानेगी। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई उपभोक्ता या धार्मिक समूह इस विषय पर गंभीर है, तो वह खुद कानून का सहारा ले सकता है। इससे यह संकेत मिलता है कि भविष्य में ऐसे मुद्दे उठ सकते हैं, जब धार्मिक भावनाओं का उल्लंघन करने वाले मुद्दों पर और भी कानूनी लड़ाई दिखाई दे सकती है।

समाज और बाजार की प्रतिक्रिया

इस फैसले के बाद, समाज में विभिन्न प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं। कुछ लोग इस अदालत के फैसले का स्वागत कर रहे हैं, तो वहीं कई लोग इसे धार्मिक संवेदनशीलता की अनदेखी मानते हैं। बाजार में इस फैसले के प्रभाव को लेकर भी चर्चा हो रही है। बीड़ी निर्माताओं को अब यह देखना होगा कि वे अपने उत्पादों को कैसे पेश करते हैं ताकि धार्मिक भावनाओं का सम्मान किया जा सके।

अंततः, यह स्थिति न केवल कानूनी दृष्टिकोण से, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इसे समझने के लिए हमें ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है कि हम अपने धार्मिक विश्वासों का कैसे सम्मान करते हैं और बाजार की जरूरतों को कैसे पूरा करते हैं।

अभी के स्थिति में, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कोई नया कानूनी कदम उठाया जाता है या फिर यह मामला यथावत रहता है।

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