पाकिस्तान में 47 साल में दूसरी बार लोहड़ी मनाई गई:जनरल जिया-उल-हक ने बंद कराई थी; गद्दाफी स्टेडियम में पंजाबियों ने भांगड़ा किया
भारत के साथ पाकिस्तान के लहंदा पंजाब (पश्चिमी पंजाब) में भी सोमवार को लोहड़ी का त्योहार मनाया गया। यह 47 साल में दूसरा मौका है, जब पंजाबी कम्युनिटी के लोगों ने पाकिस्तान में लोहड़ी पर आग जलाई और भांगड़ा किया। लोग लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम में त्योहार मनाने के लिए पहुंचे थे। साल 1978 में जनरल जिया-उल -हक के सत्ता संभालने के बाद पाकिस्तान में लोहड़ी का त्योहार मनाना बंद किया गया था। यह त्योहार राय अब्दुल्ला खान भट्टी (दुल्ला भट्टी) के नाम से जुड़ा है। लोहड़ी के गीत में भी दुल्ला भट्टी के नाम का जिक्र है। दुल्ला भट्टी को आजादी से पहले पंजाब का मुस्लिम रॉबिन हुड कहा जाता था। साल 1947 में विभाजन के बाद, मुस्लिम बहुल पश्चिमी पंजाब में दुल्ला भट्टी लगभग भुला दिए गए, लेकिन भारत में आज भी लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। अब पाकिस्तान में रह रही पंजाबी कम्युनिटी ने पिछले साल से लोहड़ी दोबारा मनानी शुरू की है। पाकिस्तान में लोहड़ी सेलिब्रेशन की तस्वीरें इतिहासकार बाजवा बोले- जिया उल हक ने बदलाव किए पाकिस्तानी इतिहासकार अली उस्मान बाजवा ने कहा कि बैसाखी और लोहड़ी पंजाब के सांस्कृतिक त्योहार हैं। इन त्योहारों का न मनाना हमारे इतिहास से अलगाव के समान है। जनरल जिया-उल -हक के सत्ता संभालते ही पाकिस्तान में लोहड़ी का त्योहार मनाना बंद कर दिया गया। उन्होंने कई बदलाव किए, जिनसे बैसाखी और लोहड़ी पर असर पड़ा। दलित समुदाय और दुल्ला भट्टी का कनेक्शन पाकिस्तानी लेखक और वकील नैन सुख (असली नाम खालिद महमूद) ने बताया कि लोहड़ी का त्योहार पाकिस्तान में दलित समुदाय, विशेष रूप से वाल्मीकि समाज में अधिक लोकप्रिय था। दुल्ला भट्टी ने अपनी बहन समान एक दलित लड़की के साथ खाना साझा किया था। वाल्मीकि समाज इस त्योहार पर जुलूस निकालता था और कुश्ती प्रतियोगिताएं कराता था। कौन हैं दुल्ला भट्टी, जिनका जिक्र लोहड़ी से जुड़ा लोककथाओं के अनुसार, दुल्ला भट्टी का जन्म 16वीं सदी में वर्तमान पश्चिमी पंजाब के पिंडी भट्टियां गांव में हुआ था। उनके पिता और चाचा को मुगल बादशाह अकबर ने फांसी दे दी थी। यह बात दुल्ला से छिपाई गई, लेकिन बाद में जब उन्हें पता चला तो वे विद्रोही बन गए। दुल्ला भट्टी की लोकप्रियता का एक बड़ा कारण उनका गरीब ब्राह्मण परिवार की बेटियां सुंदर और मुंदर को बचाना था। यह वही कहानी है, जिस पर प्रसिद्ध लोहड़ी गीत 'सुंदरिए-मुंदरिए हो, तेरा कोन विचारा हो, दुल्ला भट्टी वाला हो' आधारित है।

पाकिस्तान में 47 साल में दूसरी बार लोहड़ी मनाई गई
पाकिस्तान में 47 साल बाद दूसरी बार लोहड़ी का त्योहार मनाया गया, जो कि पाकिस्तान में रहने वाले पंजाबी समुदाय के लिए एक खास अवसर है। इस खुशियों के माहौल में, गद्दाफी स्टेडियम में हजारों पंजाबियों ने भांगड़ा किया और पारंपरिक नृत्यों का आयोजन किया। यह वर्षों पुरानी परंपरा जनरल जिया-उल-हक के आदेश के कारण लगभग खत्म हो गई थी, जब उन्होंने सांस्कृतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया था। अब, इस विशेष अवसर पर, दर्शकों ने उत्साह और उल्लास के साथ लोहड़ी का जश्न मनाया।
लोहड़ी का महत्व
लोहड़ी का पर्व, पंजाब के किसानों के लिए फसल बुवाई का उत्सव होता है। यह मकर संक्रांति के पहले दिन मनाया जाता है और इसे आग के चारों ओर नाच-g करने और गाने का संगम माना जाता है। यह दिन उन सभी के लिए विशेष होता है, जो अपने खेतों में कटाई और नए अनाज के लिए आभार व्यक्त करते हैं।
गद्दाफी स्टेडियम में भांगड़ा
गद्दाफी स्टेडियम में आयोजित इस कार्यक्रम में लोग ताजगी से भरे भांगड़ा नृत्य का आनंद ले रहे थे। यह पहली बार था जब लोहड़ी जैसे त्योहार का आयोजन बड़े स्तर पर हुआ था। पंजाबी संस्कृति का यह आयोजन खासतौर पर युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक रहा, जिन्होंने अपनी संस्कृति और परंपराओं को संजीवनी प्रदान की।
आगे की क्या योजना है?
पंजाबियों ने लोहड़ी के इस आयोजन के सफल संचालन को देखते हुए, भविष्य में और भी ऐसे कार्यक्रमों की योजना बनाई है। इस प्रकार के आयोजनों से न केवल सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा मिलता है, बल्कि यह विभिन्न समुदायों के बीच भी सामंजस्य बनाता है। ज्यादा से ज्यादा लोग इस जश्न में शामिल होकर अपनी परंपराओं के प्रति जागरूक हो रहे हैं।
News by indiatwoday.com पारंपरिक त्योहार लोहड़ी, पाकिस्तान, भांगड़ा, गद्दाफी स्टेडियम, पंजाबी संस्कृति, जनरल जिया-उल-हक, 47 साल, फसल बुवाई, सांस्कृतिक गतिविधियाँ, पंजाबी समुदाय, मकर संक्रांति, युवा पीढ़ी, आयोजन, परंपराएँ.
What's Your Reaction?






