बीएसए फर्रूखाबाद हाईकोर्ट में तलब:प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा, निदेशक बेसिक शिक्षा लखनऊ, सचिव बेसिक शिक्षा बोर्ड को हाजिर होंगे

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी फर्रुखाबाद को स्पष्टीकरण के साथ 28 मई, 2025 को दोपहर 12 बजे हाजिर होने का निर्देश दिया है। साथ ही प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा लखनऊ, निदेशक बेसिक शिक्षा लखनऊ व सचिव बेसिक शिक्षा बोर्ड प्रयागराज को भी हाजिर रहने का आदेश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने किरन देवी की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है। याची ने मातृत्व अवकाश की अर्जी दी थी। जिसे यह कहते हुए निरस्त कर दिया गया कि पहले बच्चे के बाद दूसरे बच्चे के बीच अवकाश के लिए 180 दिन का अंतर नहीं है। हाईकोर्ट ने इस आदेश को रद्द कर दिया और बी एस ए को नया आदेश जारी करने का निर्देश दिया। इसके बाद बी एस ए ने मातृत्व अवकाश को "अनुमान्य नहीं" दो शब्दों के आदेश के साथ बिना किसी विशिष्ट कारण के अस्वीकार कर दिया। जिसे फिर चुनौती दी गई। कोर्ट ने अधिकारियों के अधिवक्ता के स्पष्टीकरण पर असंतोष व्यक्त किया, जिसमें कहा गया था कि विवादित आदेश जल्दबाजी में पारित किया गया प्रतीत होता है। जबकि मामला अभी भी सचिव, उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा बोर्ड, प्रयागराज के पास लंबित है। जिस पर कोर्ट ने सभी अधिकारियों को तलब किया है।

May 28, 2025 - 00:27
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बीएसए फर्रूखाबाद हाईकोर्ट में तलब:प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा, निदेशक बेसिक शिक्षा लखनऊ, सचिव बेसिक शिक्षा बोर्ड को हाजिर होंगे
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी फर्रुखाबाद को स्पष्टीकरण के साथ 28 मई, 2025 को दोपहर 12

बीएसए फर्रूखाबाद हाईकोर्ट में तलब: प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा, निदेशक बेसिक शिक्षा लखनऊ, सचिव बेसिक शिक्षा बोर्ड को हाजिर होंगे

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लेखक: अंजलि राठौर, प्रिया मिश्रा, टीम इंडियाTwoday

हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फर्रूखाबाद के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) को स्पष्टीकरण देने के लिए तलब किया है। न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने आदेश दिया है कि बीएसए 28 मई, 2025 को दोपहर 12 बजे अदालत में उपस्थित रहें। इसके साथ ही, प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा लखनऊ, निदेशक बेसिक शिक्षा लखनऊ और सचिव बेसिक शिक्षा बोर्ड प्रयागराज को भी इस सुनवाई के दौरान हाजिर रहने का आदेश दिया गया है।

मातृत्व अवकाश की याचिका

यह आदेश किरन देवी नाम की एक शिक्षिका की याचिका की सुनवाई के दौरान दिया गया। याचिका में बताया गया कि उसने मातृत्व अवकाश की अर्जी दी थी। हालांकि, इसे यह कहते हुए निरस्त कर दिया गया कि पहले बच्चे के बाद दूसरे बच्चे के बीच अवकाश के लिए 180 दिन का अंतर नहीं है। हाईकोर्ट ने इस आधार पर दिए गए आदेश को रद्द कर दिया और नई सुनवाई की आवश्यकता बताई।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर असंतोष

हाईकोर्ट ने बीएसए को नया आदेश जारी करने का निर्देश दिया। इसके बाद बीएसए ने मातृत्व अवकाश को "अनुमान्य नहीं" कहकर अस्वीकार कर दिया। जिसे पुनः चुनौती दी गई। अदालत ने अधिकारियों के अधिवक्ता के स्पष्टीकरण पर असंतोष व्यक्त किया, जिसमें कहा गया था कि विवादित आदेश जल्दबाजी में पारित किया गया प्रतीत होता है। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि मामला अभी भी सचिव, उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा बोर्ड, प्रयागराज के पास लंबित है।

आवश्यकता अवकाश की प्रक्रिया को समझने की

इस मामले में न्यायालय के आदेश ने स्पष्ट किया है कि अधिकारियों द्वारा लिए गए निर्णय में पूर्ण पारदर्शिता होनी चाहिए। मातृत्व अवकाश एक संवैधानिक अधिकार है, और इसे उचित प्रक्रिया के बिना निरस्त नहीं किया जा सकता। उच्च न्यायालय का यह कदम इस दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जिससे माता-पिता विशेष रूप से महिला शिक्षिकाओं को उनके अधिकारों का संरक्षण मिल सके।

निष्कर्ष

यह घटना हमें याद दिलाती है कि शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत सभी अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग रहना चाहिए। हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश से स्पष्ट होता है कि अधिकारी यदि किसी निर्णय पर पहुँचने में जल्दबाजी करेंगे, तो उनको उसके परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। इस प्रकार के मामलों का सही समाधान न केवल लाभकारी होगा बल्कि समाज में विश्वास भी बढ़ाएगा।

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