महात्मा गांधी ने 1918 में संगम में डुबकी लगाई:1942 के कुंभ में अंग्रेज इतना डरे कि प्रयाग आने वाली ट्रेन-बस की टिकट ही बंद कर दी
ब्रिटिश राज में कुंभ मेला स्वतंत्रता सेनानियों की मुलाकातों और लोगों को जागरूक करने का प्रभावी माध्यम था। प्रयाग कुंभ मेले में तीर्थ पुरोहितों (प्रयागवाल) के निशान की तर्ज पर क्रांतिकारी भी अपने संदेश देने के लिए प्रतीकों का प्रयोग करते थे। इससे साथियों को एक जगह जुटने का खुफिया संदेश दिया जाता था। हालांकि इनका लिखित दस्तावेज नहीं है। प्रयाग तीर्थ पुरोहितों के दस्तावेज बताते हैं कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई 1857 की क्रांति की रूपरेखा बनाने से पहले संगम नगरी आई थीं। वे एक तीर्थ पुरोहित के यहां ठहरीं। यह अकारण नहीं था कि अंग्रेजों से लड़ते हुए रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर में नागा साधु बाबा गंगादास की बड़ी शाला पहुंचीं। तब 2 हजार नागा साधुओं ने अंग्रेजों से भीषण युद्ध किया और 745 साधु शहीद हुए। विद्रोह में शामिल हुए लोगों पर बम फेंके गए जून 1857 में जब पहली क्रांति का संघर्ष चरम पर था, तब बड़ी संख्या में प्रयागवाल भी विद्रोह में शामिल हुए। इसके बाद इलाहाबाद पहुंचे कर्नल नील ने 15 जून, 1857 को संगम के नजदीक उन इलाकों में बम बरसवाए, जहां प्रयागवालों की बस्ती थी और माघ मेला का क्षेत्र था। 1915 में हरिद्वार कुंभ के दौरान अंग्रेज गंगा पर बांध बनाने लगे। आंदोलन बढ़ा तो फैसला वापस लेना पड़ा। बापू ने 1918 में संगम में डुबकी लगाई वायसराय ने पूछा-इतने लोगों को बुलाने का खर्च कितना, जवाब-2 पैसे महामना मदनमोहन मालवीय के कहने पर 1942 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो प्रयाग कुंभ आए। अपार जन-समूह देख पूछा- ‘इतने लोगों को बुलाने में बहुत खर्च हुआ होगा?’ महामना ने कहा, ‘सिर्फ दो पैसे खर्च हुए।’ लिनलिथगो ने कहा, ‘पंडिज जी, मजाक तो नहीं कर रहे?’ इस पर महामना ने जेब से पंचांग निकालते हुए कहा, ‘यह दो पैसे का है। इससे कुंभ और स्नान पर्व पता चल जाते हैं। लोग बिना किसी निमंत्रण के चले आते हैं।’ 1946 से भूले-बिसरे शिविर सन् 1946 के माघ मेले में 18 वर्ष के राजाराम तिवारी ने भूले-भटके लोगों को परिजनों तक पहुंचाने के लिए ‘भारत सेवा दल’ संस्था बनाकर काम शुरू किया। उनका निधन 2016 में हुआ और वे हर साल इस काम को करते रहे। उनके निधन के बाद उनके परिजन इस संस्था का संचालन कर रहे हैं। --------------------------------------- महाकुंभ का हर अपडेट, हर इवेंट की जानकारी और कुंभ का पूरा मैप सिर्फ एक क्लिक पर प्रयागराज के महाकुंभ में क्या चल रहा है? किस अखाड़े में क्या खास है? कौन सा घाट कहां बना है? इस बार कौन से कलाकार कुंभ में परफॉर्म करेंगे? किस संत के प्रवचन कब होंगे? महाकुंभ से जुड़े आपके हर सवाल का जवाब आपको मिलेगा दैनिक भास्कर के कुंभ मिनी एप पर। यहां अपडेट्स सेक्शन में मिलेगी कुंभ से जुड़ी हर खबर इवेंट्स सेक्शन में पता चलेगा कि कुंभ में कौन सा इवेंट कब और कहां होगा कुंभ मैप सेक्शन में मिलेगा हर महत्वपूर्ण लोकेशन तक सीधा नेविगेशन कुंभ गाइड के जरिये जानेंगे कुंभ से जुड़ी हर महत्वपूर्ण बात अभी कुंभ मिनी ऐप देखने के लिए यहां क्लिक कीजिए।

महात्मा गांधी ने 1918 में संगम में डुबकी लगाई: 1942 के कुंभ में अंग्रेज इतना डरे कि प्रयाग आने वाली ट्रेन-बस की टिकट ही बंद कर दी
News by indiatwoday.com
इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना
महात्मा गांधी की संगम में डुबकी लगाना 1918 का एक दिखावटी उपलब्धि नहीं, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीकात्मक क्षणों में से एक था। उन्होंने इस अवसर का उपयोग ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जन जागरूकता फैलाने और स्वाधीनता की मांग को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने के लिए किया। संगम का स्थान एक पवित्र स्थल है, जो हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है।
1942 का कुंभ और अंग्रेजों का डर
कुंभ मेला 1942 में, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की तीव्रता के चलते ब्रिटिश सरकार इतनी डरी हुई थी कि उन्होंने प्रयाग आने वाली सभी ट्रेन और बस की टिकटें बंद कर दी। यह निर्णय इस बात का प्रमाण था कि ब्रिटिश शासन भारतीय जनमानस के बढ़ते आंदोलन से कितना चिंतित था। उन्होंने कुंभ के दौरान बडी संख्या में लोगों के एकत्र होने से बचने के लिए यह कदम उठाया।
जनसंख्या और कुंभ का महत्व
कुंभ मेला एक ऐसा धार्मिक पर्व है, जो हर बार एक विशेष स्थान पर आयोजित होता है। इस अवसर पर लाखों श्रद्धालु अपनी धार्मिक आस्था को पुनर्जीवित करने के लिए एकत्र होते हैं। महात्मा गांधी का संगम में जाना और वहां डुबकी लगाना उस समय में एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक संदेश था।
गांधीजी की नैतिक शक्ति
महात्मा गांधी ने केवल राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए ही नहीं, बल्कि सामाजिक सुधारों के लिए भी संघर्ष किया। उनका संगम में डुबकी लगाना यह दिखाता है कि वे न केवल एक नेता थे, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति थे जिनका भारतीय संस्कृति और धर्म में गहरा विश्वास था।
निष्कर्ष
यह घटनाएँ हमें यह सिखाती हैं कि किस प्रकार हमारे नेता समय के अनुसार अपनी रणनीतियों को बदलते हैं और भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण प्रतीकों का उपयोग करते हैं। महात्मा गांधी की गतिविधियाँ और अंग्रेजों की प्रतिक्रियाएँ स्वतंत्रता संग्राम की गहराई को दर्शाती हैं।
अधिक जानकारी के लिए
अधिक जानकारियों के लिए, कृपया indiatwoday.com पर जाएं। Keywords: महात्मा गांधी संगम डुबकी 1918, 1942 कुंभ मेला इतिहास, गांधीजी और कुंभ, अंग्रेजों का डर कुंभ 1942, प्रयाग ट्रेन बस टिकट बंद, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, कुंभ मेला महत्वपूर्ण तथ्य, महात्मा गांधी का योगदान, संगम का महत्व, धार्मिक पर्व कुंभ
What's Your Reaction?






