मुंबई ब्लास्ट में मरा बताकर तेरहवीं कर दी:21 साल से खुद को जिंदा बताने की कोशिश; दावा- नाना पाटेकर का रसोइया था
साल 2021 में एक फिल्म आई थी, नाम है 'कागज'। फिल्म का मुख्य पात्र (पंकज त्रिपाठी) अपने जीवित होने का प्रमाण पाने के लिए दफ्तरों के चक्कर काटता रहता है। इसी से मिलती-जुलती कहानी है वाराणसी के एक शख्स की। रिकॉर्ड में तो 21 साल पहले मुंबई कार ब्लास्ट में ये मारा जा चुका है, लेकिन ये व्यक्ति सही सलामत है और खुद को जिंदा साबित करने के लिए संघर्ष कर रहा है। परिवार वालों ने भी उसकी जमीन हड़प ली है। आज हालत यह है कि वो गले में `मैं जिंदा हूं` की तख्ती टांगकर फरियाद लगा रहा है, लेकिन रिकॉर्ड में आज भी वह मरा हुआ है। खास बात ये है कि ये शख्स दावा कर रहा है वो तीन साल तक मुंबई में एक्टर नाना पाटेकर का रसोइया रहा है। रिकॉर्ड में मृत हो चुके संतोष पिता मूरत सिंह का कहना है कि खुद को जिंदा साबित करने के लिए वह विधायक से लेकर नगरपालिका चुनाव तक में नामांकन दाखिल करने का प्रयास कर चुका है, लेकिन उसे कभी स्वीकार ही नहीं किया गया। अब तक उसे 100 बार हिरासत में लिया गया, लेकिन हर बार उसे बिना लिखा-पढ़ी के ही पुलिस ने छोड़ दिया। संतोष पिछले एक हफ्ते से एमपी के गुना में हैं। यहां वे पास्ट लाइफ रिग्रेशन थैरेपी से अपने पुर्नजन्म की जानकारी लेने आए हुए हैं। मेडिटेशन के जरिए उन्होंने पिछली जिंदगी के बारे में जानने की कोशिश की। इसमें सामने आया कि पिछले जिंदगी में भी इसी तरह उनके चाचा ने उनकी जमीन हड़पी थी। इस बार भी ऐसा ही हुआ। पढ़िए, संतोष के 21 साल के संघर्ष की कहानी... 'मैं जिंदा हूं' टाइटल से जाने जाते हैं संतोष सिंह वाराणसी के चौबेपुर के छितौनी के रहने वाले संतोष सिंह 'मैं जिंदा हूं' टाइटल से जाने जाते हैं। वे कहते हैं कि 21 सालों से आज तक मुझे न्याय नहीं मिला। तहसील से लेकर यूपी सरकार तक की चौखट खटखटा चुका हूं। पिता सेना में थे। 1988 में उनकी मौत हो गई और 1995 में मां भी दुनिया में नहीं रहीं। सन 2000 में नाना पाटेकर मुंबई से आंच फिल्म की शूटिंग के लिए आए थे। उसी समय मैं भी नाना पाटेकर के साथ मुंबई चला गया। तीन साल तक वहां रहा। इसी बीच परिजन ने यह साबित कर दिया कि मैं लापता हो गया हूं और मेरी मौत ट्रेन ब्लास्ट में हो गई है। तब से लेकर आज तक मैं खुद को जिंदा बताता चल रहा हूं। संतोष बताते हैं कि चुनाव का नामांकन दाखिल किया था ताकि असहाय और मजलूमों की आवाज बन सकूं, लेकिन प्रशासन तो यही नहीं चाहता है। उन्होंने कहा कि वाराणसी में नामांकन पत्र दाखिल किया गया, लेकिन मेरा नामांकन खारिज हो गया। पुलिस पकड़ती और बिना लिखा-पढ़ी छोड़ देती मैं खुद पीड़ित हूं और तहसील के अधिकारियों से लेकर प्रदेश सरकार तक अपने जिंदा होने का सर्टिफिकेट मांग चुका हूं। इस पर सुनवाई तो दूर, मुझे आश्वासन भी कोई देने वाला नहीं है। उन्होंने कहा कि जिंदा लोगों की सरकारें बहुत देख लीं, एक बार मुर्दे की सरकार देखिए। अत्याचार के खिलाफ हमारी जंग जारी रहेगी। संतोष बताते हैं कि जब भी कोई VIP मूवमेंट क्षेत्र में होता था, तो पुलिस उसे पहले ही पकड़ लेती और थाने लेकर चली जाती थी। इसके बाद उनके जाने के बाद ही छोड़ा जाता था। आखिर मैं कौन हूं और मेरी आइडेंटिटी क्या है, कोई तो बताए। गांव में फैलाई मौत की खबर, कर दी तेरहवीं संतोष ने बताया कि तीन साल तक मुंबई में रहने दौरान उनके गांव के ही अजय सिंह, नारायण सिंह, दुर्गा सिंह, चेतनारायण सिंह समेत कई लोगों ने उनकी मौत की खबर फैला दी। संतोष ने बताया कि एक दिन गांव से नाना पाटेकर के पास फोन आया कि संतोष कहां है। उन्होंने कहा कि यहीं है, किचिन में है। इस पर ग्रामीणों ने कहा कि उससे बात करा दीजिए। जब मैंने उनसे बात की तो उन्होंने कहा कि संतोष तुम कहां हो, आज तुम्हारी तेरहवीं है। इस पर मैं भौचक्का रह गए। इसके बाद मैं गांव वापस आया। मेरे गांव पहुंचने के पहले ही परिवार वालों ने वाराणसी सदर तहसील में राजस्व विभाग में साल 2003 में एक हलफनामा लगा दिया कि लापता संतोष सिंह मुंबई बम ब्लास्ट में मर चुका है। इसके बाद लेखपाल, सेक्रेटरी और ग्राम प्रधान के साथ फर्जीवाड़ा करके परिजन ने जमीन अपने नाम करा ली। संतोष का आरोप है कि ग्राम प्रधान को ऐसा करने के एवज में खेत दिया गया था। साथ ही, लेखपाल और सेक्रेटरी को पैसा दिया गया। संतोष ने बताया कि उनके पास साढ़े 12 एकड़ जमीन थी। इसके अलावा मकान, बगीचा सब कुछ था। अगर उन्हें न्याय मिला तो कई अफसर सस्पेंड हो सकते हैं, इसलिए जिम्मेदार लोग मुझे न्याय नहीं दे रहे हैं। इस प्रकरण में सब मिले हुए हैं। पता नहीं मैं कभी जिंदा भी हो पाऊंगा भी या नहीं संतोष सिंह का कहना है कि वह 21 साल से अपने आप को जिंदा साबित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिल सकी है। जगह-जगह शिकायत भी की, लेकिन कोई फायदा नहीं हो पाया। पुलिस ने भी पकड़ा तो मामला दर्ज किए बिना ही उसे छोड़ दिया जाता था। इसलिए गले में तख्ती टांगकर घूम रहा हूं और उसमें लिख लिया कि तेरहवीं हो गई है, मगर मैं जिंदा हूं। पास्ट लाइफ रिग्रेशन थैरेपी से जिंदगी जानने आए संतोष ने बताया कि यूट्यूब के जरिए उन्हें गुना की पास्ट लाइफ रिग्रेशन थैरेपिस्ट मधु रघुवंशी के बारे में जानकारी मिली। उन्होंने मधु रघुवंशी से संपर्क किया। हालांकि, उनके पास गुना आने तक के पैसे नहीं थे। थैरेपिस्ट ने ही उन्हें टिकट के पैसे दिए। इसके बाद एक हफ्ते पहले वह गुना पहुंचे। यहां मधु रघुवंशी ने उनकी थैरेपी की। इसमें उनकी पिछली जिंदगी के बारे में कई बातें सामने आईं। थेरेपिस्ट बोलीं- पिछली जिंदगी में भी छीनी गई जमीन संतोष की पास्ट लाइफ रिग्रेशन थैरेपी करने वाली मधु रघुवंशी ने बताया कि संतोष ने यूट्यूब पर उनके वीडियो देखकर कॉन्टैक्ट किया। उन्होंने कहा कि वह अपनी पास्ट लाइफ के बारे में जानना चाहते हैं। मैंने उन्हें अपने सेंटर पर बुलाया। उन्होंने बताया कि इनके दो सेशन किए। लगभग दो घंटों का समय लगा। इसमें पहले सेशन में उन्होंने फ्लैशेस देखे, क्योंकि यह रेगुलर मेडिटेशन तो करते नहीं हैं। जो निरंतर ध्यान करते

मुंबई ब्लास्ट में मरा बताकर तेरहवीं कर दी: 21 साल से खुद को जिंदा बताने की कोशिश
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परिचय
जब मुंबई ब्लास्ट से जुड़े एक अनोखे मामले का खुलासा हुआ, तो सभी चौंक गए। एक व्यक्ति ने 21 सालों तक यह दावा किया कि वह मरा हुआ है और उसके परिवार ने उसकी तेरहवीं भी मनाई थी। इस व्यक्ति का दावा है कि वह नाना पाटेकर का रसोइया था, और उसके जिंदा होने की कहानी कई सवालों को उठाती है।
बातचीत का संदर्भ
इस व्यक्ति ने न केवल अपने जिंदा रहने का दावा किया, बल्कि पत्रकारों के सामने अपनी कहानी भी साझा की। उसका कहना है कि उसे अपने परिवार से दूर जाने के बाद एक नई पहचान बनाने का अवसर मिला। यह कहानी निश्चित रूप से आम दर्शकों के लिए एक ताजगी का अनुभव है, लेकिन इसके पीछे की सच्चाई क्या है, यह अब तक स्पष्ट नहीं है।
साक्षात्कार में क्या कहा गया?
इस व्यक्ति ने साक्षात्कार में बताया कि उसने कैसे अपनी पहचान छिपाई और एक नई जिंदगी बिताई। नाना पाटेकर के साथ उसके रिश्ते की गहराई का भी जिक्र किया गया। यह जानकर हैरानी होती है कि कोई व्यक्ति इतने लंबे समय तक खुद को जिंदा रखने की कोशिश कर सकता है।
वर्तमान स्थिति
यह मामला न केवल समाज में चर्चा का विषय बना हुआ है, बल्कि यह उन सभी लोगों के लिए एक चेतावनी भी है जो अपनी पहचान को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे मामलों में कानूनी और सामाजिक चुनौतियों का सामना करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
मुंबई ब्लास्ट में मरे हुए व्यक्ति का यह रहस्योद्घाटन हमें यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि क्या हम वास्तव में किसी के जीवन को पूरी तरह से समझ सकते हैं? यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि कभी-कभी वास्तविकता उन तथ्यों से अधिक जटिल होती है जो हमें दिखाई देते हैं।
अधिक जानकारी
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