मेरठ के आबूलेन का नाम बदलने की मांग:हिंदूवादी नेता ने मकबरा तोड़ने पर 50 लाख का इनाम घोषित किया
मेरठ के प्रसिद्ध बाजार आबूलेन का नाम बदलने की मांग उठी है। हिंदूवादी नेता सचिन सिरोही ने इस मुद्दे पर आवाज उठाई है। उनका कहना है कि यह लेन औरंगजेब के मंत्री अबू मोहम्मद खान के नाम पर है। सिरोही के अनुसार, केसरगंज में स्थित अबू का मकबरा, जिसे मकबरा डिग्गी भी कहा जाता है, मुगल शासन की धरोहर है। यह क्षेत्र भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन आता है। लेकिन इसे वक्फ की जमीन के रूप में दर्ज किया गया है। हिंदूवादी नेता ने एक बड़ी घोषणा करते हुए कहा कि जो भी केसरगंज स्थित मकबरे को तोड़ेगा, उसे 50 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा। अगर सरकार यह कार्य करती है, तो यह राशि सरकारी खाते में जमा कर दी जाएगी। उन्होंने नागपुर में औरंगजेब की कब्र तोड़ने का भी जिक्र किया। सिरोही ने इस कार्य के लिए एक करोड़ रुपए के इनाम की घोषणा की है। उनका कहना है कि मुगल शासन में हिंदुओं पर अत्याचार किए गए और इन धरोहरों को देखकर वह अत्याचार याद आता है।

मेरठ के आबूलेन का नाम बदलने की मांग
मेरठ में आबूलेन का नाम बदलने की मांग तेज हो गई है। स्थानीय हिंदूवादी नेताओं ने इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाया है और उन्होंने ऐतिहासिक मकबरे को तोड़ने पर 50 लाख रुपये का इनाम घोषित किया है। यह राजनीति और धर्म के बीच की खाई को और फैलाने वाला कदम माना जा रहा है।
प्रमुख कारण
अधिकतर हिंदूवादी संगठनों का मानना है कि आबूलेन का नाम बदलकर इतिहास को सही तरीके से प्रस्तुत किया जाना चाहिए। उनके अनुसार, इस इलाके का मूल नाम और संस्कृति को उचित सम्मान पाने का हक है। इससे संबंधित कई लोग और संगठनों ने इसके विरोध में आवाज उठाई है, जो स्थानीय समुदाय के इतिहास और पहचान को बचाए रखना चाहते हैं।
स्थानिक प्रतिक्रिया
स्थानीय निवासियों का मानना है कि नाम परिवर्तन से कोई खास लाभ नहीं होगा। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह कदम सामाजिक सौहार्द को खराब कर सकता है। उन्होंने यह भी पूछा कि क्या समुदाय के बीच का तनाव और बढ़ाना सही होगा। इसके अलावा, नाम बदलने का निर्णय स्थानीय अधिकारियों की पठनीयता पर भी प्रश्न उठाता है।
इनाम की घोषणा
हिंदूवादी नेता ने मकबरे को तोड़ने हेतु 50 लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा की है, जिससे विवाद और भी गर्म हो गया है। यह इनाम उनके समर्थकों में हतोत्साहना लाने का एक प्रयास है और इसके पीछे की मंशा स्पष्ट नहीं है। इस प्रकार की घोषणाएं आमतौर पर विवाद को हवा देती हैं और समस्या को और बढ़ाते हैं।
अब देखना यह है कि स्थानीय प्रशासन इस मुद्दे पर क्या कार्रवाई करता है और क्या ये मांगें आगे बढ़ेंगी या यहां पर सामंजस्य स्थापित किया जाएगा।
News by indiatwoday.com
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