लखनऊ के नवाब 250 साल पहले उड़ाते थे चांदी-जड़ी पतंग:लूटने वाले को देते थे इनाम; अंग्रेजों के विरोध में भी उड़ी थी पतंग

लखनऊ की पतंग, बरेली का मांझा और आगरा की डोर जब मिलती है तो आसमान में 'गद्दा मार', 'वो काटा' की आवाज गूंजती है। नवाबों का शहर पतंगबाजी का विश्वविद्यालय कहा जाता है। मकर सक्रांति पर लखनऊ में जमकर पतंगबाजी होती है। कोई मस्ती में पतंग उड़ाता है, तो कहीं पेंच लड़ाने के लिए हजारों की बाजियां तक लग जाती हैं। पतंगबाजी का ये चलन आज का नहीं, बल्कि 250 साल पुराना है। 1775 में नवाब आसिफ-उद-दौला के समय से लखनऊ में पतंगबाजी परवान चढ़ी। पतंग का इस्तेमाल मनोरंजन के साथ अंग्रेजों के खिलाफ विरोध के लिए किया गया। इसके साथ ही प्रेमी अपनी प्रेमिका को पतंग पर संदेश लिखकर उनकी छत पर भेजा करते थे। पहले ये दो तस्वीरें देखिए... दुबई तक जाती है पतंग लखनऊ के हुसैनगंज क्षेत्र में हाजी साहब पतंग वाले बेहद चर्चित हैं। पतंग का व्यापार करने वाले फरमान अहमद ने बताया, 75 साल पुरानी दुकान है। उनके दादा हाजी बाराती ने पतंग बेचना शुरू किया था। दुकान में आज भी 75 साल पुरानी पतंग मौजूद है। इस पतंग के फुन्ने (पतंग के निचले हिस्से) में चांदी के तार बंधे हुए हैं। यहां से उत्तर प्रदेश समेत देश के विभिन्न कोनों में पतंग की सप्लाई होती है। हाजी साहब के पतंग की सऊदी अरब, दुबई और ओमान में विशेष डिमांड है। 75 साल की उम्र में पतंग से बनी फिटनेस 8 बार ऑल इंडिया काइट टूर्नामेंट जीतने वाले अमरनाथ कौल ने बताया कि 63 सालों से पतंग उड़ा रहा हूं। इस शौक की वजह से ही 75 साल की उम्र में भी बिल्कुल फिट हूं। 12 साल की उम्र से पतंग उड़ा रहा हूं। पतंगबाजी की वजह से उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में पहचान मिली। पतंगबाजी में जो मजा और सुकून है उसको शब्दों में बयान करना सम्भव नहीं। पतंग में सोना-चांदी उड़ाते थे नवाब अमरनाथ ने बताया कि नवाब आसिफ-उद-दौला के समय पतंगबाजी को शौक के साथ मदद का माध्यम बनाया गया। उस समय लखनऊ में सूखा पड़ने की वजह से अकाल पड़ गया था। लोगों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा था। मगर खुद्दार लोग किसी के सामने हाथ नहीं फैलाते थे। तब नवाब आसिफ-उद-दौला ने यह तरकीब निकाला की पतंग के ऊपर चांदी के सिक्के और कुछ पतंग के नीचे फुन्ने में सोने-चांदी के तार बांधकर उड़ाने लगे। पतंग को आर्थिक रूप से कमजोर इलाकों में तोड़कर छोड़ दिया जाता था। पतंग लूटने वाले का घर उस पैसे से चल जाता था। पतंग से अंग्रेजों का किया था विरोध अमरनाथ कौल ने बताया, 1928 में लखनऊ के कैसरबाग बारादरी में अंग्रेजों की मीटिंग हो रही थी। उस समय के क्रांतिकारियों ने सफेद पतंग पर काले रंग से 'साइमन गो बैक' , 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नारा लिखकर मीटिंग में पतंग उड़ाकर छोड़ दिया। साइमन समेत तमाम अंग्रेज बेहद आक्रोशित हुए और उन्होंने पतंग पर पाबंदी लगा देंगे, मगर पतंगबाजी रोकने में सफलता नहीं मिली । पतंग है आसमानी दान अमरनाथ ने बताया कि सूर्य जब अपनी राशि बदलता है तो मकर संक्रांति मनाई जाती है। ठंडक जाने वाली होती है और गर्मी का मौसम दस्तक दे रहा होता है। इसके बीच में मकर संक्रांति मनाई जाती है। ये दिन दान पात्र का विशेष महत्व रखता है। तमाम प्रकार के दान होते हैं। जल, भोजन, वस्त्र मगर आसमान का दान नहीं होता था। इसके लिए पतंगबाजी शुरू हुई जिसे आसमान का दान भी कहा जाता है। मकर संक्रांति के दिन अपनी मनोकामना मांग कर पतंग को हवा में छोड़ दिया जाता है। ऐसा करने से मन्नत पूरी होती है यह शास्त्रों में लिखा हुआ है। सनी देओल के लिए भेजा था पतंग पुराने लखनऊ में पतंग बेचने वाले गुड्डू ने बताया कि 30 सालों से यह काम कर रहे हैं। बचपन में पतंग उड़ाने का इतना शौक था कि पिताजी ने पतंग की दुकान खुलवा दी। शौक व्यापार बन गया। हमारे यहां से बनारस, अयोध्या, प्रयागराज समेत कई जनपद में पतंग भेजी जाती है। गदर 2 के रिलीज होने पर सनी देओल के लिए खास पतंगें बनाकर भेजा था। बॉलीवुड और पॉलिटिशियंस के लिए स्पेशल पतंग बनाकर भेजते हैं। चाइनीज मांझे का विरोध गुड्डू ने बताया कि हम लोग लगातार चाइनीज मांझे का विरोध कर रहे हैं। यह ऐसा मांझा है जो लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। लखनऊ के जितने भी पतंग व्यापारी हैं सबको चीनी मांझा के लिए जागरूक कर रहे हैं। जो भी चाइनीज मांझा बेचते हुए पकड़ा जा रहा है, तत्काल इसकी सूचना पुलिस को दी जा रही है। आंखों और सर्वाइकल के लिए पतंगबाजी फायदेमंद मोहनलालगंज से लखनऊ पतंग खरीदने आए ऋषि साहू ने कहा कि मकर संक्रांति का साल भर इंतजार रहता है। सुबह होते ही स्नान और पूजा करने के बाद पतंग उड़ाने लगते हैं। लखनऊ की पतंग सबसे अच्छी होती है। पतंग उड़ाने से शरीर की एक्सरसाइज भी होती है। आंखों और सर्वाइकल समेत शरीर के अन्य हिस्सों के लिए लाभदायक है। मार्केट में 5 रुपए से 500 तक की पतंग लखनऊ में 5 से लेकर 500 रुपए तक कि पतंग बिक रही है। मंजोली, अद्धि, पौना, चांद-तारा, बाज, कली दार और प्लास्टिक पतंग की डिमांड है। पतंग उड़ाने के लिए बरेली का मांझा और आगरा की सफेद डोर सबसे अच्छी मानी जाती है। तीन तरह का होता है मांझा पतंगबाजी के लिए इस्तेमाल होने वाला मांझा बरेली में बनाया जाता है। इसे बनाने के लिए चावल का पेस्ट और बारीक पिसा हुआ कांच इस्तेमाल होता है। मांझा बनने के बाद इसे केमिकल से रंगीन बनाया जाता है। पुराने लखनऊ के पतंगबाज मो. इकबाल कहते हैं, अच्छे मांझे की पहचान उसके बनाने वाले कारीगर से होती है। बरेली का शाकिर स्टाक मांझा, NRK मांझा और हसीन भाई-लल्ला भाई का मांझा खूब बिकता है। लखनऊ की नवाबी पतंगबाजी से जुड़ी कुछ रोचक बातें जान लेते हैं...

Jan 14, 2025 - 07:00
 56  501824
लखनऊ के नवाब 250 साल पहले उड़ाते थे चांदी-जड़ी पतंग:लूटने वाले को देते थे इनाम; अंग्रेजों के विरोध में भी उड़ी थी पतंग
लखनऊ की पतंग, बरेली का मांझा और आगरा की डोर जब मिलती है तो आसमान में 'गद्दा मार', 'वो काटा' की आवाज गूं
लखनऊ के नवाब 250 साल पहले उड़ाते थे चांदी-जड़ी पतंग: लूटने वाले को देते थे इनाम; अंग्रेजों के विरोध में भी उड़ी थी पतंग News by indiatwoday.com

लखनऊ की पतंगबाज़ी की विरासत

लखनऊ के नवाबों की एक अनोखी परंपरा है जो आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। 250 साल पहले, नवाब चांदी-जड़ी पतंग उड़ाते थे और इन पतंगों की खासियत थी कि उड़ाते समय लूटने वाले को एक इनाम दिया जाता था। इस परंपरा ने न केवल खेलकूद को बढ़ावा दिया, बल्कि स्थानीय संस्कृति को भी समृद्ध किया।

स्वतंत्रता संग्राम में पतंगों की भूमिका

इन्हीं पतंगों ने अंग्रेजों के विरोध में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, नवाबों ने अपने विचारों को समाज में फैलाने के लिए पतंग उड़ाने का सहारा लिया। यह एक सशक्त प्रतीक बन गया, जिससे जन-जन को आजादी के लिए प्रेरित किया गया।

पतंग उड़ाने की कला और तकनीक

नवाबों द्वारा उड़ाई जाने वाली यह चांदी-जड़ी पतंगें बस एक खेल का हिस्सा नहीं थीं, बल्कि यह एक कला का प्रतीक थीं। इस प्रक्रिया में पतंग को अति हल्की सामग्री और चांदी की परतों के साथ सजाया जाता था, जिससे यह हवा में आसानी से उड़ा करती थीं। पतंग का यह स्वरूप लखनऊ की सांस्कृतिक पहचान को भी दर्शाता है।

आज की वर्तमान स्थिति

आजकल, लखनऊ की यह अनोखी पहचान फिर से जीवंत हो रही है। स्थानीय त्योहारों और कम्यूनिटी इवेंट्स में यह घटना फिर से देखने को मिलती है, जहां लोग अपने सांस्कृतिक इतिहास को मान्यता देने और पेश करने के लिए पतंग उड़ाते हैं। पतंग उड़ाने की यह कला अब नई पीढ़ी के लिए एक उत्सव बन गई है, जो अपने साथ इतिहास और परंपरा को भी ले जाती है।

इस प्रकार, लखनऊ के नवाबों की 250 साल पुरानी पतंग उड़ाने की परंपरा, न केवल हमारे इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि यह आज भी हमारे समाज में एक आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। Keywords: लखनऊ पतंगबाज़ी, नवाबों की परंपरा, चांदी-जड़ी पतंग, पतंग उड़ाने की कला, स्वतंत्रता संग्राम और पतंग, लखनऊ का सांस्कृतिक इतिहास, पतंग के त्योहार, लखनऊ की स्थानीय संस्कृति, ब्रिटिश विरोध में पतंग, लूटने वाले को इनाम

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow