लखनऊ में अवध की खानकाहों पर संगोष्ठी:मुस्लिम धर्मगुरुओं का लगा जमावड़ा, कलीम अशरफी बोले- अवध की दरगाहों से गंगा-जमुनी तहजीब का संदेश फैला
लखनऊ में शनिवार को अवध की खानकाह और उनकी बौद्धिक एंव सामाजिक सेवाएं विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में अवध क्षेत्र के दरगाहों के सज्जादानशीन और अध्यक्षों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सैयद मोहम्मद कलीम अशरफी जिलानी ने किया। वहीं मुख्य वक्ता के रूप में प्रोफेसर मसूद अनवर अल्वी ने हिस्सा लिया। इसके साथी बड़ी संख्या में उलेमा और मुस्लिम समुदाय से जुड़े हुए लोग शामिल हुए। सूफियों का संदेश भाई चारा और एकता सैयद मोहम्मद कलीम अशरफी जिलानी ने दरगाहों के योगदान और सूफियों के संदेश पर चर्चा किया। उन्होंने कहा कि सूफी बुजुर्ग अल्लाह का संदेश लोगों तक पहुंचाते हैं। उनके द्वारा हमेशा एकता, भाई चारा और मोहब्बत की बात की जाती है। मौजूदा समय में इसे ही गंगा जमुनी तहजीब कहा जाता है। सामाजिक भलाई, सहयोग और भाईचारा और वतन से मोहब्बत का पैगाम आम किया। सूफियों के संदेश को याद करके उनकी शिक्षाओं को अपनाने से ही समाज मे भाई चारा स्थापित होगी। हिंदी साहित्य में सूफियों का अहम योगदान रहा कलीम अशरफी जिलानी ने कहा कि पहलगाम में आतंकी घटना हुई उसका हम विरोध करते हैं। सरकार से मांग करते हैं कि जो पीड़ित है उनकी मदद करें और जो आरोपी है उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। अवध की दरगाहों से सूफी विचारधारा को बढ़ोतरी मिली। अवध के सूफियों का हिंदी साहित्य में अहम योगदान रहा है। विशेष रूप से जो भक्ति काल में उनकी लेखनी रही है उसने प्रेम और मानवता को बेहद प्रभावित किया। मालिक मोहम्मद जायसी को पंडित रामचंद्र शुक्ल ने प्रेम के पीर का कवि कहा था। सूफियों की शिक्षा का केंद्र था अपने से पहले मानवता की सेवा की जाए। खानकाही प्रणाली को सक्रिय बनाने की आवश्यकता संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रोफेसर मसूद अनवर अलवी ने कहा कि मौजूदा समय में खानकाही प्रणाली को सक्रिय और प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि अवध का क्षेत्र अपनी सांस्कृतिक सभ्यता और ऐतिहासिक विरासत के लिए मशहूर है। सूफियों की निःस्वार्थ सेवाओं को स्वीकार करना। उनकी आध्यात्मिक विरासत की रक्षा करना और संदेश को आम लोगों तक पहुंचाना हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी है। विभिन्न धर्मों के बीच भाईचारे, सामाजिक समरसता और अंतर-सांस्कृतिक संवाद, सेवा कार्यों, देश व समाज की प्रगति के लिए खानकाही प्रणाली का योगदान बेहद अहम रहा है।
लखनऊ में अवध की खानकाहों पर संगोष्ठी: मुस्लिम धर्मगुरुओं का लगा जमावड़ा
लखनऊ, एक ऐतिहासिक शहर, इस बार फिर से सांस्कृतिक और धार्मिक एकता का गवाह बना। शहर की प्रतिष्ठित खानकाहों में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें मुस्लिम धर्मगुरुओं की बड़ी संख्या ने भाग लिया। यह कार्यक्रम 'गंगा-जमुनी तहजीब' के संदेश को फैलाने के उद्देश्य से आयोजित किया गया था।
संगोष्ठी का उद्देश्य
इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य अवध की दरगाहों के माध्यम से सांस्कृतिक समरसता को बढ़ावा देना था। कलीम अशरफी, जो इस संगोष्ठी के प्रमुख वक्ता थे, ने कहा कि अवध की दरगाहें न केवल धार्मिक संपन्नता का प्रतीक हैं, बल्कि वे सांस्कृतिक धरोहर का भी आदान-प्रदान करती हैं। उन्होंने बताया कि यह दरगाहें मुस्लिम समाज के साथ-साथ अन्य समुदायों के बीच भी संवाद स्थापित करती हैं।
गंगा-जमुनी तहजीब का महत्व
कलीम अशरफी ने जोर देकर कहा कि गंगा-जमुनी तहजीब भारत की सामाजिक एकता का प्रतीक है। उन्होंने बताया कि अवध की खानकाहों से फैलने वाला यह संदेश न केवल धार्मिक है, बल्कि यह भाईचारे और सामाजिक समरसता का भी पाठ पढ़ाता है। संगोष्ठी में शामिल सभी धर्मगुरुओं ने इस विचार का समर्थन किया और एकजुटता को बढ़ावा देने का संकल्प लिया।
भविष्य की दिशा
इस संगोष्ठी के सफल आयोजन के बाद, सभी ने तय किया कि वे आगे भी ऐसे कार्यक्रम आयोजित करेंगे, जिससे युवाओं को इस तहजीब के महत्व को समझाया जा सके। लोकल समुदायों में एकता और सांस्कृतिक समागम को मजबूत करने के लिए विभिन्न गतिविधियों की योजना बनाई जाएगी।
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