लखनऊ में पूर्ण पुरुष नाटक का मंचन:दाम्पत्य जीवन की जटिलताओं को दर्शाया गया, दर्शकों ने सराहा
लखनऊ के बाल्मीकि रंगशाला प्रेक्षागृह में आस्था नाट्य रंग मण्डल समिति द्वारा आयोजित तीन दिवसीय नाट्य समारोह शुरू हो गया । पहले दिन विजय पण्डित द्वारा लिखित और रत्ना अग्रवाल द्वारा निर्देशित नाटक 'पूर्ण पुरुष' का मंचन किया गया। यह आयोजन भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से किया गया। प्रेमिका स्वार्थी पत्नी बन जाती है नाटक की कहानी स्त्री-पुरुष के रिश्तों की पेचीदगियों को दर्शाती है। इसमें शाश्वती नाम की एक महिला की कहानी है। वह एक समर्पित प्रेमिका से स्वार्थी पत्नी बन जाती है। दूसरी ओर समग्र, एक प्रतिभाशाली चित्रकार है। वह अत्यधिक संवेदनशील है। उसकी अकर्मण्यता और अहंकार उसे नकारात्मक बनाते हैं। हम सब आधे-अधूरे हैं.... नाटक का मुख्य संदेश है कि जीवन में पूर्णता की कोई अवधारणा नहीं होती। शाश्वती का एक संवाद इसे स्पष्ट करता है। वह कहती है कि हम सब आधे-अधूरे हैं। कोई भी पूर्ण नहीं होता। हमें अपनी अपूर्णता में ही पूर्णता ढूंढनी चाहिए। दर्शकों ने नाटक को खूब सराहा रत्ना अग्रवाल ने शाश्वती और अंकुर सक्सेना ने समग्र का किरदार निभाया। दोनों के अभिनय को दर्शकों ने सराहा। मनीष सैनी ने प्रकाश व्यवस्था संभाली। डॉ. स्वपनिल अग्रवाल ने संगीत दिया। शाहिर अहमद ने रूप सज्जा की। आशुतोष विश्वकर्मा ने सेट का निर्माण किया। दर्शकों ने इस नाटक को खूब सराहा।

लखनऊ में पूर्ण पुरुष नाटक का मंचन: दाम्पत्य जीवन की जटिलताओं को दर्शाया गया, दर्शकों ने सराहा
लखनऊ में हाल ही में 'पूर्ण पुरुष' नामक नाटक का सफल मंचन हुआ, जिसने दाम्पत्य जीवन की जटिलताओं को बखूबी प्रस्तुत किया। इस नाटक में अभिनेता और निर्देशक दोनों ने मनोरंजक तरीके से विवाह की चुनौतीपूर्ण स्थितियों को दिखाया। ऑडियंस ने नाटक की परफॉरमेंस को बेहद सराहा, देखते ही देखते हंसी और गहरी सोच का अनुभव किया।
नाटक की कहानी और पात्र
इस नाटक की कहानी एक ऐसे दांपत्य जोड़े के इर्द-गिर्द घूमती है, जो रोजाना की ज़िंदगी की समस्याओं से जूझता है। कहानी में पति और पत्नी के बीच संवाद और संघर्ष को दिखाया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि किस तरह एक गृहस्थ जीवन में आपसी समझदारी और प्रेम की आवश्यकता होती है।
प्रदर्शन का अनुभव
नाटक का मंचन अत्यंत प्रभावशाली था। मंच पर कलाकारों की अभिनय क्षमता ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कई दर्शकों ने प्रदर्शन के बाद अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं, उन्होंने बताया कि यह नाटक उनके अपने दाम्पत्य जीवन की चुनौतियों का सटीक चित्रण करता है।
कला और समाज
ये नाटक समाज में संवेदनशील मुद्दों को उठाने का एक अच्छा जरिया है। कला के इस रूप को लोगों ने सराहा और सच्चाई से जोड़ने वाले इस तरह के प्रदर्शन की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। यह नाटक न केवल मनोरंजन करता है, बल्कि संबंधित समस्याओं पर सोचने के लिए भी मजबूर करता है।
निष्कर्षतः, 'पूर्ण पुरुष' नाटक ने लखनऊ में अपनी अद्वितीयता और सहजता से दर्शकों का ध्यान खींचा। इसे और भी जगहों पर प्रदर्शित किए जाने की अपेक्षा है।
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