लखीमपुर हिंसा में गवाह को धमकाने का आरोप:सुप्रीम कोर्ट ने यूपी पुलिस से मांगी रिपोर्ट, आशीष मिश्रा के खिलाफ जांच के आदेश
लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में एक नया मोड़ आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा पर गवाहों को धमकाने के गंभीर आरोपों की जांच के आदेश दिए हैं। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने लखीमपुर खीरी के एसपी को मामले की विस्तृत जांच कर रिपोर्ट सौंपने को कहा है। आशीष मिश्रा, जो पूर्व केंद्रीय गृहराज्य मंत्री अजय मिश्रा के पुत्र हैं, के वकील सिद्धार्थ दवे ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उनके मुवक्किल को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि जब भी मामला अदालत में आता है। जमानत रद्द करवाने के लिए इस तरह के आरोप लगाए जाते हैं। किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान का मामला कोर्ट ने सभी पक्षों को अपनी सामग्री उत्तर प्रदेश सरकार की स्थायी वकील रुचिरा गोयल को सौंपने का निर्देश दिया है। जिसे आगे लखीमपुर खीरी के एसपी को भेजा जाएगा। मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी। यह मामला 3 अक्टूबर 2021 की उस दर्दनाक घटना से जुड़ा है। जब किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान एक कार से कुचलकर चार किसानों समेत 5 लोगों की मौत हो गई थी। बाद में भीड़ ने कार चालक और दो भाजपा कार्यकर्ताओं की भी हत्या कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने आशीष मिश्रा को 22 जुलाई को जमानत दी थी। लेकिन गवाहों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उन्हें दिल्ली और लखनऊ में रहने पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि, 26 सितंबर को उन्हें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहने की अनुमति दे दी गई।

लखीमपुर हिंसा में गवाह को धमकाने का आरोप
हाल ही में, लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में एक गवाह को कथित रूप से धमकाने का मामला सामने आया है, जिससे पूरे देश में चिंता और आक्रोश फैल गया है। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने यूपी पुलिस से त्वरित कार्रवाई की दिशा में रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा है। यह निर्णय उस समय लिया गया जब कुछ रिपोर्टों में बताया गया कि गवाह की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। यह न केवल व्यक्तिगत सुरक्षा का मुद्दा है, बल्कि न्याय प्रणाली की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर भी गंभीर प्रभाव डालता है।
आशीष मिश्रा के खिलाफ जांच के आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आशीष मिश्रा के खिलाफ जांच के आदेश भी दिए हैं, जिनका नाम लखीमपुर खीरी हिंसा में शामिल होने के संदर्भ में लिया गया है। यह कदम उस वक्त उठाया गया है जब यही सवाल उठाए जा रहे थे कि क्या आरोपी के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई की जा रही है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि कानून का शासन सुनिश्चित करना और सबूतों के साथ खिलवाड़ को रोकना बेहद आवश्यक है।
गवाहों की सुरक्षा की आवश्यकता
सभी गवाहों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। अगर गवाह भयभीत होते हैं, तो उन्हें गवाही देने में कठिनाई होगी, जिससे न्याय की प्रक्रिया प्रभावित होगी। इसलिए, केंद्रीय और राज्य सरकारों को मिलकर गवाहों के लिए ठोस सुरक्षा व्यवस्था करनी चाहिए।
आगे की कार्रवाई
इस मामले में आगे की कार्रवाई के लिए एक चुनौतीपूर्ण रास्ता हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट की धारणा अनुसार, यदि कोई व्यक्ति गवाहों को धमकाने या उनके खिलाफ कार्यवाही करने की कोशिश करता है, तो उस पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। जल्दी ही यूपी पुलिस को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी ताकि अगली कार्रवाई निश्चित की जा सके।
लखीमपुर हिंसा की घटनाएँ और भी कई सवाल खड़े करती हैं। क्या हमारी कानून व्यवस्था वास्तव में सक्षम है? क्या न्याय के लिए लड़ाई में गवाहों को अपनी जान की चिंता करनी पड़ेगी? सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश इस दिशा में एक सकारात्मक कदम माने जा सकते हैं।
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