वाराणसी के दत्तात्रेय मठ में हुई शास्त्रार्थ प्रतियोगिता:विशाल और शिवांश व्याकरण में अव्वल, बटुक अंश चाणक्य ने दी विशेष प्रस्तुति

वाराणसी के राजघाट स्थित श्री दत्तात्रेय मठ में शास्त्रार्थ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसमें विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों के छात्रों ने हिस्सा लिया। यह प्रतियोगिता शास्त्रार्थ वाचस्पति दिव्य चेतन ब्रह्मचारी जी -आचार्य ,सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय की अध्यक्षता में संपन्न हुई। यह शास्त्रार्थ परीक्षा प्रतिपक्ष त्रयोदशी यानीमाह में दो बात होती है। । इस प्रतियोगिता का आयोजन शास्त्रार्थ परंपरा को पुनर्जीवित करने के लिए किया गया था। व्याकरण के बटुक विशाल और शिवांशु ने व्याकरण के शास्त्रार्थ में प्रथम स्थान हासिल किया। अनेक छात्र कर चुके हैं शास्त्रार्थ अध्यापकों ने इस मौके पर बताया की मौजूद किसी भी गूढ़ विषयों पर दो या दो से अधिक विद्वान चर्चा-परिचर्चा करते हैं। उसे शास्त्रार्थ कहा जाता है। शास्त्रार्थ का अर्थ शास्त्रों के ज्ञान से है। शास्त्रार्थ की परंपरा देश में प्राचीन काल से ही रही है। वर्तमान में यह धूमिल होती जा रही है। हालांकि, नागपंचमी सहित विभिन्न अवसरों पर अब भी काशी में शास्त्रार्थ की परंपरा कायम है। काशी अपनी शास्त्रार्थ परंपरा के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहां शताब्दियों से ऐसे अनेक शास्त्रार्थ हुए हैं जो कि ऐतिहासिक हुए हैं। यहां की परंपरा रही है कि देश के किसी भी भाग में शास्त्र का अध्ययन-अध्यापन कोई विद्वान कर रहा है तो उसे काशी में आकर प्रदर्शन करना होता है। काशी के विद्वानों के साख शास्त्रार्थ करना होता है। यहां से परीक्षा पास करने के बाद ही उसे विद्वान माना जाता है। शास्त्रार्थ से संस्कृत बनेगी जनसुलभ भाषा सभा में काशी के विविध शास्त्रों के विद्वानों द्वारा शास्त्रार्थ प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम की निर्विघ्न समाप्ति हेतु विदुषी शालिनी पांडे द्वारा मंगलाचरण किया गया। दिव्य चेतन ब्रह्मचारी जी ने कहा कि , शास्त्रार्थ के माध्यम से ही संस्कृत को जनसुलभ बनाया जा सकता है , संस्कृत भाषा और साहित्य में भारतीय ज्ञान परम्परा का अकूत भंडार छिपा हुआ है। दर्शन परम्परा संस्कृति धर्म मानव मूल्यों सहित मनुष्य जाति के सम्मुख ज्ञान विज्ञान से जुड़े आधुनिक जगत के प्रश्नों का भी हल हमे अपने दर्शन साहित्य की पुस्तकों से प्राप्त हो सकता है। क्या है शास्त्रार्थ किसी भी गूढ़ विषयों पर दो या दो से अधिक विद्वान चर्चा-परिचर्चा करते हैं उसे शास्त्रार्थ कहा जाता है। शास्त्रार्थ का अर्थ शास्त्रों के ज्ञान से है। शास्त्रार्थ की परंपरा देश में प्राचीन काल से ही रही है। वर्तमान में यह धूमिल होती जा रही है। हालांकि, नागपंचमी सहित विभिन्न अवसरों पर अब भी काशी में शास्त्रार्थ की परंपरा कायम है। काशी अपनी शास्त्रार्थ परंपरा के लिए विश्व प्रसिद्ध है। ये आये प्रथम आज के शास्त्रार्थ में विशाल शर्मा , शिवांश तिवारी -व्याकरण; सुदर्शन भट्टराइ , हरिओम त्रिपाठी -न्याय ; ऋतेश दुबे -योग दर्शन ; अवधेश शुक्ल -वेदांत प्रतिभागी बने। विशेष प्रस्तुति बटुक अंश चाणक्य -अमरकोश की मानी गयी। शास्त्रार्थ के बाद सभी वक्ता और श्रोता विद्यार्थियों में प्रसाद वितरण किया गया।

Jan 12, 2025 - 00:50
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वाराणसी के दत्तात्रेय मठ में हुई शास्त्रार्थ प्रतियोगिता:विशाल और शिवांश व्याकरण में अव्वल, बटुक अंश चाणक्य ने दी विशेष प्रस्तुति
वाराणसी के राजघाट स्थित श्री दत्तात्रेय मठ में शास्त्रार्थ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसम

वाराणसी के दत्तात्रेय मठ में हुई शास्त्रार्थ प्रतियोगिता

वाराणसी का दत्तात्रेय मठ हाल ही में एक अद्वितीय और ज्ञानवर्धक शास्त्रार्थ प्रतियोगिता का गवाह बना। इस प्रतियोगिता में विभिन्न प्रतिभागियों ने संस्कृत व्याकरण, वेदांत और अन्य विद्या शास्त्रों में अपनी विद्वता का प्रदर्शन किया। इस प्रतियोगिता ने प्रतिभागियों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया और संस्कृत साहित्य को उत्साहित करने का एक बेहतरीन मौका प्रदान किया।

प्रतियोगिता के मुख्य आकर्षण

इस प्रतियोगिता में विशाल और शिवांश ने व्याकरण के क्षेत्र में उत्कृष्टता की एकनई मिसाल पेश की। इन दोनों प्रतिभागियों ने अपनी गहरी समझ और मेहनत के बल पर विद्वतापूर्ण स्पष्टीकरण द्वारा जूरी के मन को जीता। इनकी प्रस्तुति ने न केवल श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया, बल्कि यह प्रतियोगिता के स्तर को भी ऊँचा कर दिया।

साथ ही, बटुक अंश चाणक्य ने प्रतियोगिता में विशेष प्रस्तुति दी, जिसने सभी को चकित कर दिया। उनके ज्ञान और प्रस्तुति के तरीके ने शास्त्रार्थ के वातावरण में नयापन और जीवन का संचार किया। उनकी अद्भुत प्रस्तुति ने दर्शकों के बीच उत्साह का संचार किया और प्रतियोगिता को एक यादगार अनुभव बना दिया।

प्रतिभागियों की मेहनत और प्रेरणा

प्रतियोगिता में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों ने अपनी मेहनत और लगन से सभी को प्रेरित किया। उन्होंने रचनात्मकता और बुद्धिमता का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया। यह शास्त्रार्थ प्रतियोगिता न केवल ज्ञान का आदान-प्रदान करने का अवसर था, बल्कि विद्या की क्षेत्र में एक दूसरे से सीखने का मंच भी प्रदान किया।

समापन और भविष्य की योजनाएं

प्रतियोगिता के समापन पर आयोजकों ने प्रतिभागियों और दर्शकों को धन्यवाद दिया और भविष्य में ऐसी और प्रतियोगिताएं आयोजित करने की योजना बनाई। यह आयोजन वाराणसी और आस-पास के क्षेत्रों में संस्कृत भाषा और विद्या के प्रति जागरूकता फैलेगा।

इस प्रकार, वाराणसी के दत्तात्रेय मठ में हुई शास्त्रार्थ प्रतियोगिता ने एक नई शुरुआत का संकेत दिया है। संस्कृत और भारतीय संस्कृति के प्रति युवाओं का आकर्षण बढ़ाना इस प्रतियोगिता का मुख्य उद्देश्य रहा है।

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