कहानी अकबर के किले में मौजूद अक्षयवट की:राम यहां रात रुके, मुक्ति के लिए लोग डालियां पकड़कर यमुना में कूद जाते

प्रयागराज के त्रिवेणी संगम से करीब 1 किमी की दूरी पर अकबर के किले में अक्षयवट खड़ा है। कुंभ मेला क्षेत्र में आने वाला लगभग हर श्रद्धालु घंटों कतार में लगकर इसके दर्शन के लिए आ रहा है। इस वट वृक्ष को औरंगजेब और अंग्रेजों ने नष्ट करने का प्रयास किया था। पिछले दिनों इसे पीएम नरेंद्र मोदी ने कॉरिडोर के रूप में स्थापित किया। इसे लेकर तमाम कहानियां हैं। दैनिक भास्कर एप इन्हीं कहानियों को जानने अकबर के किले में स्थित अक्षयवट के पास पहुंचा। सनातन एकता मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित अशोक पाठक कहते हैं, जब भगवान राम वनवास के लिए निकले तो सीता और लक्ष्मण के साथ इसी अक्षयवट के नीचे एक रात रुककर विश्राम किया था। आइए आज अक्षयवट की पूरी कहानी को समझेंगे… अक्षयवट के पत्तों को तोड़ने की अनुमति नहीं दैनिक भास्कर एप की टीम लेटे हुए हनुमान मंदिर के पास से अकबर के किले में पहुंची। यहां बाकी जगहों के मुकाबले सिक्योरिटी ज्यादा है। हम सिक्योरिटी को पार करते हुए अक्षय वट के परिसर में पहुंचे। यहां हमारी मुलाकात सनातन एकता मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित अशोक पाठक से हुई। पंडित अशोक पाठक बताते हैं- ब्रह्मा जी ने अक्षयवट के पास स्थित हवनकुंड में प्रथम यज्ञ और हवन किया था। इसमें 33 करोड़ देवी-देवताओं का आह्वान किया गया था। यज्ञ समाप्त होने के बाद ही इस नगर का नाम प्रयाग रखा गया था, जिसमें 'प्र' का अर्थ प्रथम और 'याग' का अर्थ यज्ञ-अनुष्ठान से है। यहीं पर मिले मंदिर के पुजारी पीसी द्विवेदी बताते हैं- 'अक्षय’ का शाब्दिक अर्थ होता है कभी नष्ट न होना। भगवान शिव और पार्वती ने अपने हाथों से इस अक्षयवट वृक्ष को लगाया था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश, तीनों देव यहां विराजमान रहते हैं। जब धरती पर प्रलय होता है तो उस समय भगवान विष्णु बालक रूप धारण कर इस पत्ते में जन्म लेते हैं और सृष्टि का संचालन करते हैं। इसलिए इस वृक्ष के पत्ते को नहीं तोड़ते हैं। जो पत्ते नीचे गिरते हैं, उसे श्रद्धालु प्रसाद समझ कर ले जाते हैं। पीसी द्विवेदी बताते हैं- प्रभु श्रीराम को जब 14 वर्ष का वनवास मिला तो वह सीता जी और लक्ष्मण के साथ इसी वटवृक्ष के नीचे आए थे। यहीं से वनवास गए थे। वनवास की अवधि पूर्ण होने के बाद दोबारा यहां फिर आए थे। पेड़ को वरदान दिया था कि इस वृक्ष को अक्षयवट के नाम से जाना जाएगा। इनका कभी नाश नहीं होगा, इनके पत्ते हमेशा हरे-भरे रहेंगे। 470 वर्षों तक बंद रहा अक्षयवट का रास्ता पीसी त्रिपाठी बताते हैं कि भगवान यहां त्रेतायुग में आए थे.. त्रेता हो गया, द्वापर हो गया। अब कलयुग साढ़े 5 हजार साल का हो गया, जब तक यह धरती रहेगी तब तक यह वृक्ष रहेगा। क्योंकि इन्हें अमरता का वरदान मिला हुआ है। यहां आने से सभी पाप नष्ट होते हैं। मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इनकी एक परिक्रमा पूरे ब्रह्मांड के बराबर है। औरंगजेब ने इस अक्षयवट को कई बार कटवाया और जलवाया। नष्ट करने का पूरा प्रयास भी किया था, लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली। 470 वर्षों तक यह रास्ता बंद था। वर्ष 2019 के कुंभ के दौरान इस अक्षयवट का द्वार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर खोला गया था। वह 16 दिसंबर, 2018 को प्रयागराज आए थे। उन्होंने यहीं पर इसकी घोषणा की थी। 10 जनवरी को इसे आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया है। श्रद्धालु पत्ते और लकड़ियां अपने साथ ले जाते हैं मुंबई से आईं निधि कहती हैं कि अक्षयवट का नाम तो बहुत सुना था। लेकिन दर्शन करने का सौभाग्य पहली बार मिला। निधि को अक्षयवट के पत्ते और लकड़ी के टुकड़े भी मिले थे। वह कहती हैं कि इस पत्ते को और लकड़ी को अपने मंदिर में रखूंगी। क्योंकि इनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। राजस्थान की मंजू सोनी भी पहली बार अक्षयवट का दर्शन करने पहुंची थीं। वह कहती हैं कि 'वर्षों की इच्छा आज पूरी हुई। जब भी प्रयागराज आऊंगी, यहां दर्शन करने जरूर आऊंगी।' प्रयागराज के रहने वाले सुनील कोली कहते हैं 'हम सब सौभाग्यशाली हैं, जो यह पवित्र वृक्ष हमारे शहर में है। मैं हमेशा यहां दर्शन के लिए पहुंचता हूं।' चीनी यात्री ह्वेनसांग भी यहां आया था 644 ईसा पूर्व में चीनी यात्री ह्वेनसांग यहां आया था। तब कामकूट तालाब में इंसानी नरकंकाल देखकर दुखी हो गया था। उसने अपनी किताब में भी इस बात का जिक्र किया। उसके जाने के बाद ही मुगल सम्राट अकबर ने यहां किला बनवाया। इस दौरान उसे कामकूट तालाब और अक्षयवट के बारे में पता चला। तब उसने पेड़ को किले के अंदर और तालाब को बंद करवा दिया था। अक्षय वट वृक्ष को औरंगजेब ने भी कई बार जलाकर और काटकर नष्ट करने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुआ। अक्षय वट वृक्ष के नीचे से ही निकली अदृश्य सरस्वती नदी अकबर के किले के अंदर स्थित पातालपुरी मंदिर में अक्षय वट के अलावा 43 देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। इसमें ब्रह्मा जी द्वारा स्थापित वो शूल टंकेश्वर शिवलिंग भी है, जिस पर मुगल सम्राट अकबर की पत्नी जोधाबाई जलाभिषेक करती थीं। शूल टंकेश्वर मंदिर में जलाभिषेक का जल सीधे अक्षयवट वृक्ष की जड़ में जाता है। वहां से जल जमीन के अंदर से होते हुए सीधे संगम में मिलता है। ऐसी मान्यता है कि अक्षयवट वृक्ष के नीचे से ही अदृश्य सरस्वती नदी भी बहती है। संगम स्नान के बाद अक्षय वट के दर्शन-पूजन से वंशवृद्धि से लेकर धन-धान्य की संपूर्णता तक की मनौती पूरी होती है। मां सीता ने अक्षयवट को दिया था आशीर्वाद जानकार बताते हैं कि जब राजा दशरथ की मृत्यु के बाद पिंडदान की प्रक्रिया आई तो भगवान राम सामान इकट्ठा करने चले गए। उस वक्त देवी सीता अकेली बैठी थीं, तभी दशरथ जी प्रकट हुए और बोले कि भूख लगी है, जल्दी से पिंडदान करो। उस समय सीता जी को कुछ नहीं सूझा। उन्होंने अक्षयवट के नीचे बालू का पिंड बनाकर राजा दशरथ के लिए दान किया। उस दौरान उन्होंने ब्राह्मण, तुलसी, गौ, फाल्गुनी नदी और अक्षय वट को पिंडदान से संबंधित दान-दक्षिणा दी। जब राम जी पहुंचे तो सीता ने कहा कि पिंड दान हो गया। दोबारा दक्षिणा पाने के ला

Jan 16, 2025 - 05:45
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कहानी अकबर के किले में मौजूद अक्षयवट की:राम यहां रात रुके, मुक्ति के लिए लोग डालियां पकड़कर यमुना में कूद जाते
प्रयागराज के त्रिवेणी संगम से करीब 1 किमी की दूरी पर अकबर के किले में अक्षयवट खड़ा है। कुंभ मेला क्ष

कहानी अकबर के किले में मौजूद अक्षयवट की

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अक्षयवट का ऐतिहासिक महत्व

अक्षयवट, जो अकबर के किले में स्थित है, अपनी धरोहर और धार्मिक मान्यता के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थान भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यहाँ लोगों का विश्वास है कि यहाँ रुकने से मुक्ति का मार्ग मिलता है।

राम का भ्रमण और अक्षयवट

कहा जाता है कि भगवान राम यहाँ रात बिताने के लिए आए थे, और इसी स्थान पर उन्होंने कई महत्वाकांक्षाएं और संकल्प किए। अक्षयवट के आसपास की कथा इस पवित्र स्थान को और भी आकर्षक बनाती है।

मुक्ति के लिए लोग यमुना में कूदते हैं

यहाँ के लोग यह मानते हैं कि अगर कोई मुक्ति की तलाश में है, तो उसे यमुना नदी में कूदकर दान में डालियाँ पकड़नी चाहिए। यह एक प्रथा है जो कि ऐतिहासिक रूप से चली आ रही है और आज भी यहाँ लोग इस परंपरा का पालन करते हैं।

अक्षयवट की सांस्कृतिक विरासत

अक्षयवट को सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। यह विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों का संगम है, जहाँ लोग अपनी आस्था के साथ आते हैं। इस स्थान की धार्मिक कथाएं और इसकी ऐतिहासिक मान्यता इसे खास बनाती हैं।

संरक्षण एवं पर्यटन

आजकल, अक्षयवट एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन गया है, जहाँ लोग न केवल धार्मिक दृष्टि से आते हैं, बल्कि इस की सांस्कृतिक धरोहर को देखने के लिए भी। यहाँ आने वाले पर्यटक इसकी खूबसूरती और ऐतिहासिकता को महसूस करते हैं।

अगर आप भी अक्षयवट के इस ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अनुभव को जानना चाहते हैं, तो अवश्य यहाँ का दौरा करें। अधिक अपडेट और जानकारी के लिए indiatwoday.com पर जाएं। किवर्ड्स: अक्षयवट, अकबर का किला, राम की रात, मुक्ति के लिए कूदना, यमुना नदी, धार्मिक स्थल, पर्यटन स्थल, भारतीय इतिहास, अक्षयवट की कहानी, सांस्कृतिक विरासत.

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