दिसंबर में थोक महंगाई बढ़कर 2.37% पर आई:प्याज, आलू, अंडे मांस-मछली और फलों की कीमतें बढ़ी, नवंबर में 1.89% पर थी
दिसंबर महीने में थोक महंगाई बढ़कर 2.37% पर आ गई है। इससे पहले नवंबर में थोक महंगाई 1.89% पर थी। अक्टूबर महीने में यह 2.36% पर थी। प्याज, आलू, अंडे मांस-मछली और फलों की थोक में कीमतें बढ़ी हैं। होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) का आम आदमी पर असर थोक महंगाई के लंबे समय तक बढ़े रहने से ज्यादातर प्रोडक्टिव सेक्टर पर इसका बुरा असर पड़ता है। अगर थोक मूल्य बहुत ज्यादा समय तक ऊंचे स्तर पर रहता है तो प्रोड्यूसर इसका बोझ कंज्यूमर्स पर डाल देते हैं। सरकार केवल टैक्स के जरिए WPI को कंट्रोल कर सकती है। जैसे कच्चे तेल में तेज बढ़ोतरी की स्थिति में सरकार ने ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी कटौती की थी। हालांकि, सरकार टैक्स कटौती एक सीमा में ही कम कर सकती है। WPI में ज्यादा वेटेज मेटल, केमिकल, प्लास्टिक, रबर जैसे फैक्ट्री से जुड़े सामानों का होता है। होलसेल महंगाई के तीन हिस्से प्राइमरी आर्टिकल जिसका वेटेज 22.62% है। फ्यूल एंड पावर का वेटेज 13.15% और मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट का वेटेज सबसे ज्यादा 64.23% है। प्राइमरी आर्टिकल के भी चार हिस्से हैं: महंगाई कैसे मापी जाती है? भारत में दो तरह की महंगाई होती है। एक रिटेल यानी खुदरा और दूसरी थोक महंगाई होती है। रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) भी कहते हैं। वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है। महंगाई मापने के लिए अलग-अलग आइटम्स को शामिल किया जाता है। जैसे थोक महंगाई में मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी 63.75%, प्राइमरी आर्टिकल जैसे फूड 22.62% और फ्यूल एंड पावर 13.15% होती है। वहीं, रिटेल महंगाई में फूड और प्रोडक्ट की भागीदारी 45.86%, हाउसिंग की 10.07% और फ्यूल सहित अन्य आइटम्स की भी भागीदारी होती है।

दिसंबर में थोक महंगाई बढ़कर 2.37% पर आई: प्याज, आलू, अंडे, मांस-मछली और फलों की कीमतें बढ़ी
News by indiatwoday.com
महंगाई दर का बढ़ना
भारत में दिसंबर महीने में थोक महंगाई दर में एक महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है, जो अब 2.37% तक पहुँच गई है। यह दर नवंबर में 1.89% के स्तर पर थी। इस वृद्धि का मुख्य कारण कई खाद्य वस्तुओं की कीमतों में अंतर्राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर आई वृद्धि है। खासकर प्याज, आलू, अंडे, मांस-मछली और फलों की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
खाद्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि
प्याज और आलू जैसे सब्जियों की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे आम जनता पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। इसके साथ ही, अंडे और मांस-मछली की कीमतों में भी उल्लेखनीय अंतर देखा जा रहा है। ये सभी कारक एक सामान्य आर्थिक अस्थिरता का संकेत दे रहे हैं, जो उपभोक्ताओं के लिए चिंताजनक है।
आर्थिक प्रभाव
इस महंगाई का असर न केवल आम लोगों के बजट पर पड़ रहा है, बल्कि यह सरकार के लिए भी एक चुनौती हो सकती है। थोक महंगाई में बढ़ोतरी के चलते खुदरा महंगाई में भी वृद्धि देखी जा सकती है, जो आर्थिक स्थिरता को प्रभावित कर सकती है। सरकार को इस स्थिति से निपटने के लिए वैकल्पिक कदम उठाने की आवश्यकता होगी।
मौजूदा परिस्थिति और आगे की चुनौतियाँ
भारत में खाद्य महंगाई के विभिन्न कारकों में मौसम की स्थिति, उत्पादन में कमी, और वैश्विक बाजारों में आपूर्ति संकट शामिल हैं। ये सभी तत्व साथ मिलकर एक दबाव बना रहे हैं, जो आने वाले महीनों में महंगाई की स्थिति को प्रभावित कर सकता है।
निष्कर्ष
दिसंबर में थोक महंगाई के आंकड़े एक स्पष्ट संकेत देते हैं कि आगामी समय में उपभोक्ताओं को और अधिक महंगाई का सामना करना पड़ सकता है। इस परिस्थिति में भौतिक वस्तुओं की कीमतों पर ध्यान देना और सरकार की नीतियों पर नजर रखना आवश्यक है। अधिक जानकारियों के लिए, कृपया indiatwoday.com पर जाएं। Keywords: दिसंबर थोक महंगाई 2.37%, प्याज आलू अंडे कीमतें, मांस मछली फलों की कीमतें, महंगाई रिपोर्ट, भारत की महंगाई दर, खाद्य वस्तुओं की कीमतें, आर्थिक स्थिति भारत, थोक मूल्य सूचकांक, नवंबर महंगाई दर, सरकार की नीतियां महंगाई के खिलाफ
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