लखनऊ में 2015 से सफाई के नहीं हुए टेंडर:3 महीने में रिन्युअल; EV गाड़ियों के बाद भी डीजल पर 7 करोड़ रुपए का खर्च
लखनऊ में 2015 के बाद कार्यदायी संस्थाओं के सफाई का टेंडर जारी नहीं किया गया। इसे हर तीन महीने पर रिन्युअल कर दिया जाता है। इसलिए पिछले 10 साल पहले की व्यवस्था बनी हुई है। वहीं, सफाई के बाद इनसे निकलने वाले कूड़े की परिवहन ढुलाई पर भी करोड़ के डीजल का खर्च है। इस पर 7 करोड़ रुपए हर महीने खर्च हो रहे। दो करोड़ रुपए का वाहनों के रखरखाव पर खर्च हो रहा, जबकि टेंडर के नियम व शर्तों में है कार्यदायी संस्था के ठेकेदार की तरफ से कूड़े की ढुलाई का खर्च वहन करना था। नगर निगम ने कूड़े की ढुलाई और वाहनों के मेंटेनेंस पर पिछले 10 साल में 900 करोड़ रुपए खर्च करने का अनुमान है। मामले में शिकायत करने वाले लोगों का दावा है कि 2015 में जारी किए गए टेंडर को लगातार रिन्युअल किया जा रहा है। जबकि सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GEM) दिशा निर्देश का यह उल्लंघन हो रहा है। इससे कुछ ही लोगों को लगातार काम मिल रहे। गलत ढंग से खर्च होता है डीजल आरोप है कि कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए इसे हर तीन महीने में बढ़ाया जाता है। गलत ढंग से डीजल खर्च किया जाता है। इस बीच नगर निगम की खरीद प्रक्रियाओं का ऑडिट करने की भी मांग उठने लगी है, जिसमें पिछले 10 सालों से यह व्यवस्था बनी हुई है। वाहनों के ट्रैकिंग का भी नहीं शुरू हुआ काम नगर निगम की तरफ से कचरा ढुलाई करने वाली गाड़ियों में GPS ट्रैकिंग लगाने की योजना बनाई थी। ताकि डीजल खपत के साथ में संचालन भी सही किया जा सके, लेकिन यह अभी तक शुरू नहीं किया जा सका है। सफाई कर्मचारियों की निगरानी और सही संख्या के आकलन के लिए RFID-आधारित कचरा ट्रैकिंग और स्मार्ट स्वच्छता कर्मी निगरानी के लिए स्मार्ट घड़ी का पर काम शुरू किया गया था। इसे भी खत्म कर दिया गया। साथ ही सीधी निगरानी करने के लिए तकनीकी काम पर भी इसके बाद फोकस नहीं किया गया। वहीं, राजधानी में ईवी वाहनों से कूड़ा ढुलाई की जा रही। इसके साथ ही 300 डीजल गाड़ियां भी इसमें लगाई गई हैं। नगर निगम में कुल ईवी वाहनों की संख्या 1,250 से अधिक की है। बावजूद इसके लगातार डीजल खर्च भी कूड़ा ढुलाई में हो रहा। नया टेंडर होने पर जमकर हुआ विवाद कार्यदायी संस्थाओं की तरफ से किए जा रहे काम को लेकर नगर निगम की तरफ से टेंडर जारी किया गया। यह टेंडर नगर निगम से पास भी हो गया, लेकिन इसके बाद इस मुद्दे पर जमकर बवाल हुआ। इस दौरान 1 फरवरी से लखनऊ के पांच जोन 1,3,4,6,7 में लखनऊ स्वच्छता अभियान (एलएसए) कंपनी को काम करना था, लेकिन पार्षदों के विरोध के बाद इसे रोक दिया गया है। अब इस कंपनी का काम भी निरस्त कर दिया गया है,जबकि अन्य तीन जोन 2,5 और 8 में लॉयन सिक्योरिटी ने इसपर काम शुरू कर दिया है। इस दौरान लॉयन सिक्योरिटी पर भी फर्जी कागज देकर सफाई का टेंडर लेने का आरोप लगाया गया। मामले में नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह और महापौर सुषमा खर्कवाल से भी शिकायत की गई थी, लेकिन आरोप साबित नहीं हुए हैं। नगर आयुक्त ने कहा कुछ भी डबल नहीं हो रहा मामले में दैनिक भास्कर ने नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह से बात की। उन्होंने कहा- कार्यदायी संस्थाओं के सफाई का टेंडर तीन महीने में बढ़ाया जाता है, नया टेंडर हुआ था। सदन से भी फाइनल हो गया था,लेकिन विरोध के बाद हैंडओवर नहीं हुआ है। 1 फरवरी से एलएस को काम शुरू करना था, लेकिन एलएसए के पांच जोन के सफाई का काम रद कर दिया गया है, जबकि अन्य तीन जोन में लॉयन सिक्योरिटी काम कर रही। ईवी गाड़ियों से हो रहा कूड़े की ढुलाई का काम सफाईकर्मियों पर निगरानी पर उन्होंने कहा कि स्मार्ट घड़ी सिस्टम को 2022 के पहले ही बंद कर दिया गया था। इसे सफाईकर्मी बाइक पर रखकर घुमा देते थे, जिससे यह निगरानी सिस्टम फेल हो गया। उन्हाेंने कहा- ईवी गाड़ियों से कूड़े की ढुलाई का काम किया जा रहा। रोड़ स्वीपिंग में यह गाड़ियां नहीं चल रही हैं। कार्यदायी संस्थाओं की तरफ से रोड़ स्वीपिंग में 7 करोड़ हर महीने कूड़ा ढुलाई डीजल खर्च होने पर उन्होंने कहा कि पुरानी व्यवस्था के तहत काम हो रहा है। इसमें 300 गाड़ियां नगर निगम की हैं। इन पर डीजल का खर्च हो रहा। साथ ही ईवी वाहन भी इसमें लगाए गए हैं। नई संस्था से रोड़ स्वीपिंग नहीं कराने पर ही उन्हें गाड़ियां दी गई हैं। यह पुरानी व्यवस्था में है। उस पर खर्च हो रहा है। कहीं पर भी कुछ डबल नहीं हो रहा है। कार्यदायी संस्था ही काम कर रही हैं, इससे नई कंपनी का काम खत्म हो गया है। जेम पर उन्होंने कहा- इस बार वित्त वर्ष में कोई खरीदारी नहीं की गई है।

लखनऊ में 2015 से सफाई के नहीं हुए टेंडर: 3 महीने में रिन्यूअल; EV गाड़ियों के बाद भी डीजल पर 7 करोड़ रुपए का खर्च
लखनऊ की सफाई व्यवस्था को लेकर एक बड़ी चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। 2015 से अब तक सफाई के लिए कोई नया टेंडर जारी नहीं किया गया है। प्रशासन ने हाल ही में इस मुद्दे पर ध्यान देने की आवश्यकता महसूस की है और अगले तीन महीनों में टेंडर रिन्यू करने की योजना बनाई है। यह स्थिति तब है जब शहर में स्वच्छता बनाए रखने की जिम्मेदारी स्थानीय निकायों की होनी चाहिए। शहर की सफाई व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए यह कदम काफी महत्वपूर्ण है।
सफाई के टेंडर और अव्यवस्था
लखनऊ में लगभग आठ वर्षों से सफाई के टेंडर का न होने के कारण शहर में गंदगी और अव्यवस्था बढ़ती जा रही है। शिकायतें बढ़ती जा रही हैं कि सफाई कर्मचारी अपने काम के प्रति जिम्मेदार नहीं हैं। अधिकारियों के अनुसार, वर्तमान स्थिति को सुधारने के लिए जल्द से जल्द नए टेंडर का रिन्यूअल किया जाएगा, जहां नगर निगम अपनी प्राथमिकताएँ स्पष्ट करेगा।
ईवी गाड़ियों का प्रभाव और डीजल का खर्च
हालांकि लखनऊ में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EV) को प्रोत्साहन दिया जा रहा है, लेकिन अब भी डीजल वाहनों पर खर्च कम नहीं हो रहा है। इस साल, नगर निगम ने डीजल के लिए 7 करोड़ रुपए खर्च किए हैं, जो यह दर्शाता है कि किस प्रकार पारंपरिक ईंधन अभी भी हमारी सफाई व्यवस्था का हिस्सा बना हुआ है। ईवी गाड़ियों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए नगर निगम को नई नीतियाँ बनानी होंगी।
समग्र रूप से, यह निर्णय लखनऊ की सफाई व्यवस्था को सुधारने और शहर के निवासियों के लिए एक बेहतर वातावरण तैयार करने में सहायक साबित होगा। लखनऊ के निवासियों को इस बदलाव की प्रतीक्षा है, जिससे उनकी दिनचर्या में सुधार हो सके।
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