KGMU में क्लीनिकल ट्रायल अटके:नवंबर में खत्म हो चुका हैं एथिकल कमेटी का लाइसेंस,रिन्यूवल न होने से कई रिसर्च पर असर

यूपी के सबसे बड़े चिकित्सा विश्वविद्यालय किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में रिसर्च पर फोकस के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। चिकित्सा विश्वविद्यालय में होने वाले रिसर्च और डेवलपमेंट से जुड़े प्रोजेक्ट्स की निगरानी करने वाली इंस्टीट्यूशनल एथिकल कमेटी का लाइसेंस बीते साल 28 नवंबर को खत्म हो चुका हैं। ऐसे में कई ऑन गोइंग प्रोजेक्ट्स सहित रिसर्च वर्क के शुरू करने की प्रक्रिया अटकी हुई हैं। बता दें कि, किसी भी नए शोध और प्रोजेक्ट के लिए एथिकल कमेटी की अनुमति बेहद जरूरी होती है। सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गेनाईजेशन (CDSCO) की तरफ से लाइसेंस जारी किया जाता हैं। 3 महीने पहले करना होता हैं रिन्यूवल एथिकल कमेटी को लाइसेंस के रिन्यूवल के लिए CDSCO को 3 महीने पहले आवेदन करना होता हैं। KGMU में 28 नवंबर 2024 को इस कमेटी का लाइसेंस समाप्त होना हैं। खबर हैं कि KGMU प्रशासन ने लाइसेंस के रिन्यूवल के लिए आवेदन नवंबर में किया। इसके बाद CDSCO की ओर से कुछ आपत्तियां आ गईं। इसका जवाब दिया गया पर अभी तक लाइसेंस बढ़ाया नहीं गया। DHR से अप्रूव हैं एथिकल कमेटी, CDSCO नहीं ले रहा निर्णय KGMU के डीन रिसर्च डेवलपमेंट हरदीप सिंह मल्होत्रा का कहना हैं कि CDSCO की तरफ से इसमें देरी की जा रही हैं। हमने सभी फॉर्मेलिटी पूरी कर दी हैं। लाइसेंस खत्म होने से सिर्फ क्लीनिकल ट्रायल वाले रिसर्च प्रभावित हैं। बाकी एथिक्स कमेटी का रजिस्ट्रेशन DHR (डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ रिसर्च - भारत सरकार) से हैं। जिसमें साल 2029 तक के लिए हमें लाइसेंस मिल चुका हैं। इसके चलते थीसिस पेपर से जुड़े रिसर्च पर कोई प्रभाव नहीं हैं। KGMU के MRU को बेस्ट परफार्मिंग का अवॉर्ड हरदीप सिंह का दावा हैं कि KGMU रिसर्च के क्षेत्र में बहुत काम कर रहा हैं। लगातार दूसरे साल ICMR की तरफ से KGMU के MRU को बेस्ट परफार्मिंग अवॉर्ड मिला हैं। गुरुवार को हम उसे ही लेने आए हैं। पर CDSCO की तरफ से लाइसेंस रिन्यूवल न होने से असर ट्रायल पर असर पड़ा रहा। हर महीने करीब 100 रिसर्च पेपर होते हैं सबमिट KGMU में हर महीने करीब 100 रिसर्च पेपर से जुड़े थीसिस सबमिट होती है पिछले 10 महीने में कुल 930 के करीब थीसिस सबमिट हुई हैं। यह सभी थियोरेटिकल बेसिस की फाइंडिंग होती है। जबकि क्लीनिकल ट्रायल के करीब 3 से 4 नए प्रोजेक्ट आते हैं। जो मरीजों के इलाज के लिए बेहद अहम होते हैं। यहां सालभर कई गंभीर असाध्य बीमारियों के इलाज से जुड़ी दवाईयों और वैक्सीन पर भी क्लीनिकल ट्रायल होता हैं।

Mar 20, 2025 - 10:00
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KGMU में क्लीनिकल ट्रायल अटके:नवंबर में खत्म हो चुका हैं एथिकल कमेटी का लाइसेंस,रिन्यूवल न होने से कई रिसर्च पर असर
यूपी के सबसे बड़े चिकित्सा विश्वविद्यालय किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में रिसर्च पर फोकस के

KGMU में क्लीनिकल ट्रायल अटके: नवंबर में खत्म हो चुका हैं एथिकल कमेटी का लाइसेंस

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में चल रहे कई महत्वपूर्ण क्लीनिकल ट्रायल्स एक कठिन स्थिति का सामना कर रहे हैं। जानकारी के अनुसार, एथिकल कमेटी का लाइसेंस नवंबर में समाप्त हो चुका है। इस लाइसेंस के नवीनीकरण में देरी होने के कारण कई अनुसंधान परियोजनाओं पर नकारात्मक प्रभाव डाला जा रहा है। यह विषय न केवल शोधकर्ताओं के लिए चिंता का कारण है बल्कि इससे चिकित्सकीय प्रगति भी बाधित हो रही है।

एथिकल कमेटी का महत्व

क्लीनिकल ट्रायल्स की प्रक्रिया में एथिकल कमेटी की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है। यह कमेटी सुनिश्चित करती है कि सभी अनुसंधान गतिविधियाँ नैतिक मानकों का पालन करें। जब किसी ट्रायल को एथिकल अप्रूवल नहीं मिलता, तो उसे आगे बढ़ाना लगभग असंभव हो जाता है। KGMU में एथिकल कमेटी का लाइसेंस समाप्त होने से कई शोध परियोजनाएँ ठप हो गई हैं। ऐसे में यह स्पष्ट होता है कि नौकरशाही के कारण वैज्ञानिक उन्नति रुक सकती है।

रिसर्च पर पड़ने वाला प्रभाव

इस स्थिति का प्रभाव न केवल शोधकर्ताओं पर बल्कि रोगियों पर भी पड़ेगा, जो इन ट्रायल्स के द्वारा किए जा रहे इलाज के लाभों की प्रतीक्षा कर रहे हैं। विभिन्न चिकित्सा क्षेत्रों में, जैसे कि कैंसर, मधुमेह, और हृदय रोग, अनुसंधान की आवश्यकता होती है ताकि बेहतर उपचार विकसित किए जा सकें। KGMU में हो रहे ये क्लीनिकल ट्रायल ऐसे मरीजों के लिए जीवन रक्षक साबित हो सकते हैं।

आगे का रास्ता

KGMU प्रशासन को इस समस्या को जल्द से जल्द सुलझाने की आवश्यकता है ताकि शोध कार्य फिर से शुरू हो सकें। अनुसंधान के लिए आवश्यक कार्यवाही को जल्द से जल्द पूरा करना चाहिए और एथिकल कमेटी का नवीनीकरण करना चाहिए। इसके अलावा, सरकार और स्वास्थ्य अधिकारियों को भी इस मुद्दे पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि भविष्य में ऐसी समस्याएँ न आएं।

अंततः, यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि वैज्ञानिक अनुसंधान में रुकावट न केवल विज्ञान को प्रभावित करता है बल्कि समाज और स्वास्थ्य सेवाओं को भी प्रभावित कर सकता है।

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