एएमयू में डेपुटेशन करने में हुआ फर्जीवाड़ा:जो शिक्षक कार्यरत ही नहीं, उनकी कर दी डेपुटेशन; एएमयू VC और शिक्षा मंत्रालय से हुई शिकायत
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के डिस्टेंस एजुकेशन सेंटर में डेपुटेशन के नाम पर फर्जीवाड़ा और गलत तरीके से शिक्षकों की नियुक्ति का मामला सामने आया है। जो शिक्षक यूनिवर्सिटी में किसी डिपार्टमेंट में कार्यरत ही नहीं हैं, उनकी डेपुटेशन डिस्टेंस लर्निंग सेंटर में दिखा दी गई है। डेपुटेशन दिखाने के साथ ही पिछले दो सालों से इन शिक्षकों को वेतन भी जारी किया जा रहा है। अब इस मामले की शिकायत यूनिवर्सिटी के ही एक विभागाध्यक्ष ने एएमयू वीसी प्रो. नाइमा खातून से की है। एएमयू इंतजामिया से शिकायत करने के साथ ही प्रोफेसर ने केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और UGC से भी मामले की शिकायत की है। अरेबिक डिपार्टमेंट के चेयरमैन ने की शिकायत अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अरेबिक डिपार्टमेंट के चेयरमैन प्रो. सनाउल्लाह खान ने सारे मामले की शिकायत एएमयू वीसी प्रो. नाइमा खातून से की है। उन्होंने अपनी शिकायत में बताया है कि सेशन 2023-24 औ 2024-25 के लिए डॉ. शब्बीर अहमद और डॉ. अबु जार मतीन की डेपुटेशन एएमयू के डिस्टेंस लर्निंग प्रोग्राम के तहत कर दी गई। इन दोनों शिक्षकों को अरेबिक डिपार्टमेंट में कार्यरत दिखाया गया और इनकी डेपुटेशन करके इन्हें वेतन भी जारी किया गया। जबकि यह दोनों शिक्षक इस सेशन में यूनिवर्सिटी के अरेबिक डिपार्टमेंट में कार्यरत ही नहीं हैं। इस सेशन से बहुत पहले यह संविदा शिक्षक के रूप में कार्यरत थे और इनकी संविदा खत्म भी हो चुकी है। डिपार्टमेंट में कार्यरत शिक्षक ही हो सकते हैं डेप्यूट यूनिवर्सिटी में संचालित डिस्टेंस लर्निंग सेंटर में विभिन्न विषयों की कक्षाएं संचालित होती हैं। इस सेंटर में पढ़ाने के लिए यूनिवर्सिटी में ही कार्यरत शिक्षकों की डेपुटेशन की जाती है। जिन्हें उनके लेक्चर के अनुसार मानदेय प्रदान किया जाता है। लेकिन डेपुटेशन उन्हीं शिक्षकों की हो सकती है, जो यूनिवर्सिटी में पहले से कार्यरत हो। जबकि डॉ. शब्बीर अहमद और डॉ. अबु जार मतीन वर्तमान में किसी डिपार्टमेंट में कार्यरत नहीं हैं। डेपुटेशन के लिए डिस्टेंस लर्निंग सेंटर की ओर से विभागाध्यक्षों को डिमांड भी भेजी जाती है। इस मामले में यह प्रक्रिया भी नहीं की गई। स्पेशल नियुक्ति का है इंतजामिया को अधिकार अगर कोई शिक्षक एएमयू में कार्यरत नहीं है, तो उसकी नियुक्ति अगर डिस्टेंस लर्निंग सेंटर में करनी है, तो एएमयू वीसी और इंतजामिया विशेष अधिकारों का प्रयोग करते हुए उसे डेपुटेट कर सकते हैं। लेकिन इन दोनों शिक्षकों की नियुक्ति में इन अधिकारों और यूनिवर्सिटी के नियमों का पालन भी नहीं किया गया। इन्हें सीधे एएमयू का शिक्षक बताया गया। यह सारी शिकायत उच्च अधिकारियों से हुई है। ऑफिस मेमो जारी होने पर हुआ खुलासा एएमयू अरेबिक विभाग के चेयरमैन प्रो. मो. सनाउल्लाह ने बताया जब इंतजामिया की ओर से ऑफिस मेमो जारी हुआ, तो उन्हें इस बारे में जानकारी हुई। इसके बाद उन्होंने परीक्षा नियंत्रक को सारे मामले की लिखित शिकायत की। लेकिन परीक्षा नियंत्रक की ओर से आवश्यक कार्रवाई नहीं की गई। इसके बाद उन्होंने अब एएमयू वीसी, शिक्षा मंत्रालय और यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) को पत्र लिखकर सारे मामले की शिकायत की है। वहीं दूसरी ओर एएमयू के एमआईसी पीआरओ आसिम सिद्दकी ने बताया कि चेयरमैन की ओर से हुई शिकायत की जांच की जा रही है। जांच होने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।

एएमयू में डेपुटेशन करने में हुआ फर्जीवाड़ा
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में हाल ही में एक गंभीर फर्जीवाड़े का मामला सामने आया है, जिसमें कुछ शिक्षकों की नियुक्ति और डेपुटेशन को लेकर गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं।
फर्जीवाड़े के आरोप
स्रोतों के अनुसार, ऐसे शिक्षकों का डेपुटेशन किया गया है जो वर्तमान में विश्वविद्यालय में कार्यरत नहीं हैं। यह मामला न केवल स्थानीय स्तर पर चर्चा का विषय बना है, बल्कि शिक्षा मंत्रालय में भी इसकी गंभीरता को समझते हुए शिकायत दर्ज कराई गई है।
एएमयू के VC की भूमिका
एएमयू के वाइस चांसलर (VC) पर भी आरोप हैं कि उन्होंने इस अनियमितता को देखकर भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इसके चलते विद्यार्थी और अन्य शिक्षक भी अविश्वास की स्थिति में हैं और विश्वविद्यालय की प्रशासनिक पारदर्शिता पर सवाल खड़ा कर रहे हैं।
शिक्षा मंत्रालय से शिकायत
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए कुछ पूर्व छात्रों और शिक्षकों ने शिक्षा मंत्रालय में औपचारिक शिकायत दर्ज करवाई है। इसके बाद मंत्रालय ने एएमयू के प्रशासन से स्पष्टीकरण मांगा है और मामले की तफतीश शुरू कर दी है।
भविष्य की चुनौतियां
भविष्य में ऐसे मामलों से निपटने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। मामले की पारदर्शी तरीके से जांच होना आवश्यक है ताकि विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को बनाए रखा जा सके।
इस फर्जीवाड़े को लेकर छात्रों के बीच भी रोष देखा जा रहा है। वे न्याय की मांग कर रहे हैं और ऐसे शिक्षकों के खिलाफ ठोस कार्रवाई की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं।
समस्या की गहराई को देखते हुए, अगर जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए तो यह भविष्य में और भी गंभीर मुद्दों का कारण बन सकता है।
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