कुंभ की 4 जगह कैसे तय हुईं:12 साल का अंतर क्यों, ये देवों का अमृत कुंभ जागृत करने का महापर्व

करोड़ों साल पहले देव–दानव संघर्ष से निकले ‘अमृत कुंभ’ को जागृत करने का महापर्व इस बार प्रयागराज में है। प्रयागराज में वैसे तो हर वर्ष एक महीने का माघमेला होता है, जिसमें हजारों कल्पवासी और साधु-संत आते हैं। पर, हर छठे वर्ष अर्धकुंभ और बारहवें बरस पर कुंभ में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी की छटा अद्वितीय होती है। प्रयागराज उन चार शहरों में है, जहां हर 12 साल पर कुंभ होता है। कुंभ का संदर्भ पुराणों में मिलता है। कहते हैं, समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कुंभ लेकर प्रकट हुए, तो देव और दानव खुशी से झूम उठे। होड़ मच गई कि कौन पहले अमृत प्राप्त करेगा। भगवान विष्णु ने अमृत को दानवों से बचाने के लिए देवराज इंद्र के पुत्र जयंत को संकेत दिया कि वह कुंभ लेकर चले जाएं। सबकी नजर बचाकर जयंत अमृत कुंभ लेकर देवलोक की ओर उड़ चले, लेकिन दानवों के गुरु शुक्राचार्य ने उन्हें देख लिया। देखते ही देखते देव-दानवों में युद्ध शुरू हो गया। अंत में देवता अमृत कुंभ बचाए रखने में तो सफल रहे, लेकिन इस आकाशीय संघर्ष के दौरान देवलोक में 8 और पृथ्वी लोक में 4 स्थानों पर अमृत की बूंदें छलक पड़ीं। पृथ्वी पर अमृत की ये बूंदें प्रयाग और हरिद्वार में प्रवाहमान गंगा नदी, उज्जैन की क्षिप्रा और नासिक की गोदावरी नदी में गिरीं... बस तभी से चारों स्थानों में अमृत कुंभ जागृत करने की परंपरा शुरू हो गई। यह देव-दानव संघर्ष 12 'मानवीय वर्ष' तक चलता रहा। कहते हैं इसीलिए इन नदी तटों पर हर 12 साल पर कुंभ होता है। ऋग्वेद में कुंभ का उल्लेख है। अथर्ववेद व यजुर्वेद में 'कुंभ' के लिए प्रार्थना है। ऋग्वेद में 'कुंभ' पर्व के रूप में है, पर मेले का वर्णन नहीं है। दरअसल, वैदिक युग में धार्मिक-सामाजिक उत्सवों को 'समन' कहते थे। समन मेलों का ही स्वरूप था। ऋग्वेद और अथर्ववेद में कई स्थानों पर 'समन' का जिक्र है, जिनमें हजारों लोग धार्मिक उद्देश्य से तय स्थान पर जुटते थे। कुंभ से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... महाकुंभ में किन्नर संतों का अद्भुत संसार: 3 घंटे मेकअप में लगते हैं, 4 घंटे तप-साधना; ऐसा है किन्नर महामंडलेश्वर का जीवन गले में सोने के मोटे-मोटे हार, कलाई पर रुद्राक्ष, सोने और हीरे से बने ब्रेसलेट, कानों में कई तोले की ईयर-रिंग, नाक में कंटेंपरेरी नथ, माथे पर त्रिपुंड और लाल बिंदी... ये पहचान है आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की। आचार्य लक्ष्मी नारायण किन्नर अखाड़े की प्रमुख हैं। महाकुंभ-2025 के लिए किन्नर अखाड़ा जूना अखाड़ा के साथ रथ-घोड़े, गाजे-बाजे के साथ पहले नगर और फिर छावनी प्रवेश कर गया है। पढ़ें पूरी खबर...

Jan 5, 2025 - 11:20
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कुंभ की 4 जगह कैसे तय हुईं:12 साल का अंतर क्यों, ये देवों का अमृत कुंभ जागृत करने का महापर्व
करोड़ों साल पहले देव–दानव संघर्ष से निकले ‘अमृत कुंभ’ को जागृत करने का महापर्व इस बार प्रयागराज म

कुंभ की 4 जगह कैसे तय हुईं

कुंभ मेला, जिसे भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है। इस महापर्व के दौरान चार प्रमुख स्थानों पर तीर्थ यात्रियों का जमावड़ा होता है, जहाँ विशेष रूप से स्नान करने से मनुष्य के पापों का क्षय होता है।

12 साल का अंतर क्यों

कुंभ मेले का आयोजन हर चार वर्ष में किया जाता है, लेकिन हर बार यह चार अलग-अलग स्थानों पर मनाया जाता है, जिससे कुल मिलाकर हर 12 साल में एक ही स्थान पर कुंभ का आयोजन होता है। इसके पीछे एक धार्मिक एवं ज्योतिषीय कारण है जो हर स्थान की विशेषता को दर्शाता है। यह अंतर माघ मास की पूर्णिमा को दर्शाता है, जिसमें स्नान करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।

देवों का अमृत कुंभ जगृत करने का महापर्व

कुंभ मेले का महत्व केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज के लिए एक सांस्कृतिक उत्सव भी है। इसे 'देवों का अमृत कुंभ' कहा जाता है क्योंकि यह मान्यता है कि अमृत कलश की खोज के दौरान इन स्थानों पर अमृत बहे थे। इस पर्व के समय श्रद्धालु विशेष स्नान करते हैं और विभिन्न पूजा-अर्चना करते हैं, जिसके माध्यम से वे अपनी आस्था को प्रकट करते हैं।

कुंभ यात्रा की विशेषताएँ

कुंभ मेले के चार प्रमुख स्थान हैं: हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज। इन स्थानों की धार्मिक कहानियाँ और महत्त्व भारतीय लोक संस्कृति में गहराई से जुड़ी हुई हैं। हर स्थान का अपना अलग स्नान तिथि और धार्मिक अनुष्ठान होता है, और यह सुनिश्चित करता है कि श्रद्धालुओं को सौगातें प्राप्त हों।

कुंभ का आयोजन एक ऐसी परंपरा है, जिसे हर साल और ज्यादा श्रद्धा और जोश से मनाया जाता है। यह एक ऐसा महापर्व है जहाँ लाखों श्रद्धालु एकजुट होकर अपनी आस्था का प्रदर्शन करते हैं।

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अंत में

अंत में, कुंभ मेला केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है। इस महापर्व के माध्यम से हम आत्मिक शुद्धता, समर्पण और भक्ति की ओर अग्रसर होते हैं। Keywords: कुंभ मेला, देवों का अमृत कुंभ, कुंभ की चार जगह, कुंभ स्नान, 12 साल का अंतर, धार्मिक त्यौहार, माघ पूर्णिमा, भारतीय संस्कृति, तीर्थ यात्रा, कुंभ महापर्व, हरिद्वार कुंभ, उज्जैन कुंभ, नासिक कुंभ, प्रयागराज कुंभ

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