कैदी के इलाज से मना नहीं कर सकते- हाईकोर्ट:चुनाव ड्यूटी में व्यस्त होने पर इलाज़ नहीं कराने पर पुलिस को लगाई फटकार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस बल की चुनाव या किसी दूसरे काम में व्यस्तता के कारण जेल में निरुद्ध बंदी का इलाज कराने से मना नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी सरकार की निगरानी में हिरासत में है। राज्य किसी भी आधार पर उसे पर्याप्त चिकित्सा सुविधा प्रदान करने से इनकार नहीं कर सकता है। देवरिया के कयामुद्दीन की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी न्यायमूर्ति समित गोपाल ने की। कोर्ट ने राज्य सरकार से दस दिन में कैदी के इलाज व ट्रायल कोर्ट में पेशी की संभावना पर रिपोर्ट मांगी है। मामले के अनुसार अप्रैल 2024 में एडिशनल सेशन जज ने देवरिया जिला जेल के जेल अधीक्षक को याची कयामुद्दीन का इलाज कराने का निर्देश दिया था। जेल अधीक्षक ने लोकसभा चुनाव की आचार संहिता के कारण पुलिस बल की कमी का हवाला देते हुए इलाज उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि आवश्यक बल उपलब्ध होने पर याची के इलाज की व्यवस्था की जाएगी। सितंबर 2024 में उसकी दूसरी जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने जेल अधीक्षक के इस कृत्य को पूरी तरह अस्वीकार्य और अनुचित करार दिया। हाईकोर्ट ने डीएम देवरिया और पुलिस अधीक्षक, देवरिया को व्यक्तिगत रूप से मामले को देखने और अपने व्यक्तिगत हलफनामे दाखिल करने का निर्देश दिया। दोनों अधिकारियों ने अदालत को बताया कि याची का इलाज जिला जेल में चल रहा है। बेहतर देखभाल के लिए उसे जिला अस्पताल, स्थानीय मेडिकल कॉलेज और बीआरडी मेडिकल कॉलेज में रेफर किया गया। कोर्ट ने कहा कि यह स्वीकृत तथ्य है कि पुलिस बल की अनुपलब्धता के कारण याची को कुल तीन बार संबंधित डॉक्टर के समक्ष पेश नहीं किया गया। क्योंकि पुलिस चुनाव में लगी थी। इसकी सराहना नहीं की जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति का जीवन भले ही वह जेल में हो हर नागरिक के जीवन की रक्षा करने के लिए राज्य सरकार बाध्य है । राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि क्षेत्र या राज्य के भीतर किसी भी गतिविधि के बावजूद जेल के कैदियों को समय पर और उचित उपचार उपलब्ध हो।

कैदी के इलाज से मना नहीं कर सकते- हाईकोर्ट: चुनाव ड्यूटी में व्यस्त होने पर इलाज़ नहीं कराने पर पुलिस को लगाई फटकार
हाल ही में, उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि कोई भी अधिकारी या पुलिस किसी कैदी को चिकित्सा सुविधा प्रदान करने से मना नहीं कर सकता। यह आदेश तब आया जब यह पता चला कि कुछ पुलिस अधिकारियों ने चुनाव ड्यूटी की व्यस्तता का हवाला देते हुए एक कैदी का इलाज नहीं कराया।
हाईकोर्ट का निर्णय
जस्टिस ने कहा कि अगर कैदी को चिकित्सकीय सहायता की आवश्यकता है, तो उसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए। अदालत ने मामले की गंभीरता को समझते हुए, पुलिस के व्यवहार को न केवल अनुचित बताया, बल्कि इसे कानून की अवहेलना भी माना। अधिकारीयों को इस बात का ध्यान रखने की आवश्यकता है कि कानून सबके लिए समान है और स्वास्थ्य सेवाएं एक मौलिक अधिकार हैं।
चुनाव ड्यूटी का बहाना
चुनाव ड्यूटी की जिम्मेदारियों को स्पष्ट करते हुए, अदालत ने यह बताया कि किसी भी सरकारी नौकरी में स्वास्थ्य सेवा का अधिकार बाधित नहीं हो सकता। आवश्यक चिकित्सा सेवाओं को सुनिश्चित करने में कोई भी बहाना नहीं चलेगा। पुलिस को चेतावनी दी गई कि भविष्य में ऐसी घटनाएँ पुनः नहीं होनी चाहिए।
अधिकारियों की जिम्मेदारी
अदालत ने इस मामले में संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे कैदियों के इलाज के लिए चिकित्सा अधिकारियों से संपर्क करें। साथ ही, जिन अधिकारियों ने इस मामले में लापरवाही की है, उनके खिलाफ आवश्यक कार्रवाई की जाए। ये निर्देश सभी जेलों और सुरक्षा बलों के लिए पालन करने योग्य होंगे।
इस निर्णय से स्पष्ट है कि हमारे न्यायिक प्रणाली में कैदियों के अधिकारों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। ऐसे मामलों में, अधिकारियों को हमेशा मानवता और संवेदनशीलता के साथ काम करना चाहिए।
इस निर्णय ने मामले की गंभीरता को उजागर किया है और इसे एक आदर्श उदाहरण के रूप में पेश किया गया है। ऐसे अन्य मामलों में भी पुलिस और प्रशासन को सही दिशा में काम करते हुए कैदियों की चिकित्सा जरूरतों का ख्याल रखना चाहिए।
योजना प्रभावी होनी चाहिए, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाए कि हर कैदी को समय पर और उचित चिकित्सा सहायता मिले।
निष्कर्ष
इस निर्णय से यह साफ हो जाता है कि कानून सभी के लिए समान है और स्वास्थ्य की आवश्यकता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उच्च न्यायालय ने इस संदर्भ में एक सख्त संदेश दिया है, जो सभी सरकारी कार्यालयों और अधिकारियों के लिए महत्वपूर्ण है।
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