कैलाश मानसरोवर यात्रा 5 साल बाद फिर शुरू होगी:भारत-चीन के बीच डायरेक्ट फ्लाइट भी चालू होंगी, विदेश सचिवों की मीटिंग में फैसला

इस साल गर्मी के मौसम में कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू की जाएगी। भारत-चीन के बीच जून 2020 में हुए डोकलाम विवाद के बाद इस यात्रा को रोक दिया गया था। हालांकि इससे पहले ही मार्च में कोविड की पहली लहर आ गई थी, इस वजह से 2020 में यात्रा नहीं हुई थी। दोनों देशों के विदेश सचिवों के बीच दो दिन चली बातचीत के बाद यात्रा फिर शुरू करने का फैसला लिया गया। बैठक में दोनों देशों के बीच डायरेक्ट फ्लाइट भी शुरू करने का फैसला लिया गया। ये कोविड के बाद से बंद थीं। भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री इस वार्ता के लिए बीजिंग गए थे। यह वार्ता भारत और चीन के विदेश सचिव-उप विदेश मंत्री तंत्र के तहत हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग अक्टूबर में कजान में मिले थे। तब दोनों देशों ने आपसी संबंधों की स्थिति पर चर्चा की और संबंधों को बेहतर बनाने के लिए कुछ कदम उठाने पर सहमति जताई थी। कैलाश मानसरोवर का ज्यादातर एरिया तिब्बत में कैलाश मानसरोवर का ज्यादातर एरिया तिब्बत में है। तिब्बत पर चीन अपना अधिकार बताता है। कैलाश पर्वत श्रेणी कश्मीर से भूटान तक फैली हुई है। इस इलाके में ल्हा चू और झोंग चू नाम की दो जगहों के बीच एक पहाड़ है। यहीं पर इस पहाड़ के दो जुड़े हुए शिखर हैं। इसमें से उत्तरी शिखर को कैलाश के नाम से जाना जाता है। इस शिखर का आकार एक विशाल शिवलिंग जैसा है। उत्तराखंड के लिपुलेख से यह जगह सिर्फ 65 किलोमीटर दूर है। फिलहाल कैलाश मानसरोवर का बड़ा इलाका चीन के कब्जे में है। इसलिए यहां जाने के लिए चीन की अनुमति चाहिए होती है। मान्यता- कैलाश पर्वत पर भगवान शिव रहते हैं हिंदू धर्म में ये मान्यता है कि भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। यही वजह है कि हिंदुओं के लिए ये बेहद पवित्र जगह है। जैन धर्म में ये मान्यता है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ ने यहीं से मोक्ष की प्राप्ति की थी। 2020 से पहले हर साल करीब 50 हजार हिंदू यहां भारत और नेपाल के रास्ते धार्मिक यात्रा पर जाते रहे हैं। 2020 से चीन, भारतीयों को कैलाश मानसरोवर की यात्रा की इजाजत नहीं दे रहा है। इसी महीने भारत सरकार ने एक RTI के जवाब में कहा है कि कैलाश मानसरोवर जाने से रोककर चीन 2013 और 2014 में हुए दो प्रमुख समझौते तोड़ रहा है। कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए भारत और चीन के बीच दो समझौते हुए थे कैलाश मानसरोवर जाने के लिए भारत और चीन के बीच दो प्रमुख समझौते हुए हैं… पहला समझौता: 20 मई 2013 को भारत और चीन के बीच लिपुलेख दर्रा मार्ग से होकर कैलाश मानसरोवर जाने के लिए ये समझौता हुआ। उस समय के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच यह समझौता हुआ था। इससे यात्रा के लिए लिपुलेख दर्रा मार्ग खुल गया। दूसरा समझौता: 18 सितंबर 2014 को नाथूला के जरिए कैलाश मानसरोवर जाने वाले रास्ते को लेकर भारत और चीन में ये समझौता हुआ था। विदेश मंत्री के तौर पर सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्री वांग यी के साथ यह समझौता किया था। दोनों समझौते की भाषा लगभग एक समान है। ये समझौते दोनों देशों के विदेश मंत्री के पेपर पर हस्ताक्षर के दिन से लागू हैं। हर 5 साल के बाद ऑटोमेटिक तरीके से इसकी समय सीमा बढ़ाने की बात समझौते में लिखी है। कैलाश पर्वत की ऊंचाई एवरेस्ट से कम, लेकिन अब तक कोई चढ़ नहीं सका दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत एवरेस्ट पर अब तक 7000 लोग चढ़ाई कर चुके हैं। इसकी ऊंचाई 8848 मीटर है, जबकि कैलाश पर्वत की ऊंचाई एवरेस्ट से करीब 2000 मीटर कम है। फिर भी इस पर आज तक कोई चढ़ नहीं सका है। कुछ लोग इसकी 52 किमी की परिक्रमा करने में जरूर सफल रहे हैं। दरअसल, कैलाश पर्वत की चढ़ाई एकदम खड़ी है। पर्वत का ऐंगल 65 डिग्री से ज्यादा है। वहीं, माउंट एवरेस्ट का ऐंगल 40 -50 डिग्री का है, इसलिए कैलाश की चढ़ाई कठिन है। इस पर चढ़ाई की कई कोशिशें हुई हैं। आखिरी कोशिश 2001 में हुई थी। हालांकि, अब कैलाश पर चढ़ाई पूरी तरह से प्रतिबंधित है। उत्तराखंड की व्यास घाटी से कैलाश पर्वत के दर्शन कर रहे श्रद्धालु कैलाश मानसरोवर यात्रा बंद होने के बाद से श्रद्धालु उत्तराखंड की व्यास घाटी से कैलाश पर्वत के दर्शन कर रहे थे। पिछले साल उत्तराखंड पर्यटन विभाग, सीमा सड़क संगठन (BRO) और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के अधिकारियों की एक टीम ने कैलाश पर्वत के स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाले स्थान की खोज की थी। 3 अक्टूबर 2024 को पहली बार भारतीय इलाके से पवित्र कैलाश पर्वत के दर्शन पुराने लिपुलेख दर्रे से हुए। यह उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की व्यास घाटी में स्थित है।

Jan 27, 2025 - 20:59
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कैलाश मानसरोवर यात्रा 5 साल बाद फिर शुरू होगी:भारत-चीन के बीच डायरेक्ट फ्लाइट भी चालू होंगी, विदेश सचिवों की मीटिंग में फैसला
इस साल गर्मी के मौसम में कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू की जाएगी। भारत-चीन के बीच जून 2020 में हुए

कैलाश मानसरोवर यात्रा 5 साल बाद फिर शुरू होगी

कैलाश मानसरोवर यात्रा, जो पिछले पांच वर्षों से स्थगित थी, अब फिर से शुरू होने जा रही है। यह यात्रा भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, और इसका इंतजार कई भक्तों ने लंबा किया है। भारत और चीन के बीच ताजा संवाद ने इस यात्रा को फिर से शुरू करने का मार्ग प्रशस्त किया है।

भारत-चीन के बीच डायरेक्ट फ्लाइट का संचालन

इस फैसले के तहत, भारत और चीन के बीच डायरेक्ट फ्लाइट्स भी चालू होंगी। इससे तीर्थयात्रियों को कैलाश मानसरोवर तक पहुँचने में सुविधा होगी। विदेश सचिवों की हाल की मीटिंग में इस विषय पर चर्चा की गई, और दोनों देशों ने आपसी सहयोग को बढ़ाने पर जोर दिया।

स्थायी दृष्टि और यात्रा की तैयारी

कैलाश मानसरोवर यात्रा की सही समय पर तैयारी की जा रही है। भारतीय सरकार ने इस यात्रा की सुविधाओं को बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। यात्रा के समय की संख्या, व्यवस्थाएँ, और दिशा-निर्देश, सभी को आधिकारिक तौर पर जारी किया जाएगा।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

कैलाश मानसरोवर ना केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा भी है। हर साल हजारों की संख्या में भक्त यहाँ आते हैं, यह यात्रा उन्हें शांति और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है। यात्रा प्रारंभ होने के बाद भक्त अपने अनुभव साझा करने की संभावनाएँ खोजेंगे।

इसके अलावा, इस यात्रा का आयोजन भारतीय संस्कृति के महत्व को भी उजागर करता है और नए विश्वासों को जन्म देता है।

अंत में

कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने का निर्णय न केवल तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत-चीन के संबंधों के सुधार का एक प्रतीक भी है। सामान्य जन जीवन में इस यात्रा के शुरू होने से जरूरी परिवर्तन देखने को मिलेंगे।

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