चीन बोला-ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाने से भारत को नुकसान नहीं:साइंटिफिक तरीके से इसे तैयार करेंगे; भारत ने हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पर जताई थी आपत्ति
चीन ने तिब्बत में यारलुंग सांगपो (ब्रह्मपुत्र) नदी पर डैम बनाने को लेकर भारत की आपत्ति का जवाब दिया है। ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ याकुन ने कहा कि यारलुंग सांगपो नदी पर बांध बनाने से भारत या फिर बांग्लादेश का जल प्रवाह प्रभावित नहीं होगा। प्रवक्ता याकुन ने कहा कि इस प्रोजेक्ट की पूरी वैज्ञानिक समीक्षा की गई है। इससे इको सिस्टम को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा, उल्टे यह प्रोजेक्ट कुछ हद तक आपदा को रोकने में मदद ही करेगा। याकुन ने कहा कि चीन के इस प्रोजेक्ट से निचले इलाकों में जलवायु परिवर्तन संतुलित होगा। चीन ने पिछले महीने ब्रह्मपुत्र नदी पर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी। इसके तहत ब्रह्मपुत्र पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाया जा रहा है। इस बांध पर चीन लगभग 137 बिलियन अमरीकी डॉलर (करीब 12 लाख करोड़ रुपए) खर्च करने जा रहा है। चीन यहां से सालाना 300 अरब किलोवाट-घंटा बिजली पैदा करना चाहता है। भारत बांध का विरोध क्यों कर रहा? ब्रह्मपुत्र नदी पर बनने वाला बांध तिब्बत पठार के पूर्वी छोर पर हिमालय की विशाल घाटी में बनाया जाएगा। इस इलाके में अक्सर भूकंप आते हैं। बांध के बनने से ईकोसिस्टम पर दबाव पड़ सकता है जिससे कई हादसे हो सकते हैं। भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य और बांग्लादेश पहले से ही भयंकर बाढ़ की घटनाओं का सामना कर रहे हैं और जलवायु परिवर्तन के कारण उन्हें और अधिक चुनौतियों जैसे- भूस्खलन, भूकंप और बाढ़ आदि का सामना करना पड़ सकता है। यही वजह है कि इस बांध के बनने से भारत की चिंता बढ़ गई है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने 3 जनवरी को एक प्रेस ब्रीफिंग में इस बांध को लेकर आपत्ति जताई थी। भारत ने कहा था कि ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाने से निचले राज्यों के हितों को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। चीन बोला- कई दशक तक रिसर्च के बाद मंजूरी दी चीन की विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने पिछले सप्ताह कहा था कि चीन ने हमेशा से क्रॉस-बॉर्डर नदियों के विकास की जिम्मेदारी निभाई है। तिब्बत में हाइड्रोपावर डेवलपमेंट को दशकों की इन-डेप्थ स्टडी के बाद मंजूरी दी गई है। इसके बनने से निचले इलाके में रहने वाले लोगों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। प्रवक्ता माओ ने कहा था कि चीन सीमावर्ती देशों के साथ बातचीत जारी रखने के लिए तैयार है। उन्होंने यह भी कहा कि चीन निचली नदियों के किनारे मौजूद देशों के साथ भूकंप और आपदा प्रबंधन में मदद करेगा ताकि नदी के किनारे रहने वाले लोगों को फायदा हो सके। ब्रह्मपुत्र (यारलुंग सांगपो) नदी तिब्बत में कैलाश पर्वत के पास एंग्सी ग्लेशियर से निकलती है और करीब तीन हजार किलोमीटर तक फैली हुई है। भारत में आने के बाद इस नदी को ब्रह्मपुत्र नाम से जाना जाता है। बांग्लादेश पहुंचने पर इसे जमुना कहा जाता है। .................................................... चीन से जुड़ी यह खबर भी पढ़ें... भारत ने लद्दाख में चीन की काउंटी का विरोध जताया:कहा- इसका कुछ हिस्सा हमारे क्षेत्र में, चाइना होतान में दो नई काउंटी बना रहा भारत ने शुक्रवार 3 जनवरी को चीन की ओर से लद्दाख के कुछ इलाकों को अपना बताने पर विरोध दर्ज कराया। विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीन अपने होतान प्रांत में दो नए काउंटी (जिला) बनाने की कोशिश कर रहा है। इनका कुछ हिस्सा लद्दाख में पड़ता है। पूरी खबर पढ़ें...

चीन बोला-ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाने से भारत को नुकसान नहीं
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चीन का बयान
हाल ही में, चीन सरकार ने ब्रह्मपुत्र नदी पर प्रस्तावित बांध निर्माण के संबंध में एक बयान जारी किया है। चीन के अधिकारियों का कहना है कि इस बांध से भारत को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होगा। यह बयान तब आया है जब भारत ने हाल ही में इस हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पर गंभीर आपत्ति जताई थी, इसे जल संसाधनों के संदर्भ में महत्वपूर्ण बताते हुए।
विज्ञान और तकनीक का उपयोग
चीन ने स्पष्ट किया है कि बांध निर्माण को वैज्ञानिक तरीकों के माध्यम से तैयार किया जाएगा। अधिकारियों के अनुसार, निर्माण प्रक्रिया में नवीनतम तकनीकों का इस्तेमाल किया जाएगा ताकि पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव पड़े। इस संदर्भ में, चीन ने भारतीय चिंताओं को महत्व देने का आश्वासन भी दिया है।
भारत की चिंता
भारत स्थित विशेषज्ञों का मानना है कि अगर चीन ब्रह्मपुत्र पर बड़े बांधों का निर्माण करता है, तो यह निश्चित रूप से भारत की जल आपूर्ति को प्रभावित कर सकता है। भारत ने यह चेतावनी दी है कि इससे न केवल पानी की मात्रा में कमी आएगी, बल्कि कृषि और अन्य जल उपयोग पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
यह मुद्दा न केवल दोनों देशों के बीच के संबंधों को प्रभावित करता है, बल्कि यह दक्षिण एशिया में पानी के उपयोग और प्रबंधन के माध्यमिक निहितार्थ भी रखता है। भारत और चीन दोनों ही पानी के सीमित संसाधनों को लेकर खासी संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ रहे हैं।
निष्कर्ष
इस स्थिति पर नज़र रखते हुए, विशेषज्ञों का सुझाव है कि दोनों देशों को सहयोग और संवाद में सुधार करने की आवश्यकता है। ताकि जल संसाधनों का बेहतर प्रबंधन किया जा सके और किसी भी प्रकार की अव्यवस्था से बचा जा सके। China's commitment to scientific methods in construction is promising, but it is imperative for India to keep its concerns heard and address them collaboratively.
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