परमधर्म-संसद में धार्मिक विरासतों की पुनः प्राप्ति पर हुई चर्चा:शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द बोले - अपने धार्मिक विरासतों की पुनः प्राप्ति का प्रयास निरन्तर जारी रखें हिन्दू
प्रयागराज महाकुंभ में जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती द्वारा परमधर्म संसद का आयोजन किया गया है। जिसमें धार्मिक विरासत की पुनः प्राप्ति पर चर्चा करते हुए धर्मादेश जारी किया गया। इस दौरान विभिन्न देशों से आए विद्वानों ने अपनी राय रखी वहीं काशी के कुछ मंदिरों के पुजारी भी इसमें शामिल हुए। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा - हिन्दू धर्म की प्राचीन और गौरवमयी विरासत को पुनः प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा हमें अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर को फिर से संजोने की आवश्यकता है, जिन्हें अतीत में हमलावरों द्वारा नष्ट किया गया था। जिन्हें धर्म का ज्ञान नहीं वो भी दे रहे उपदेश सदन में विशिष्ट अतिथि के रूप में जगद्गुरु राघवाचार्य जी उपस्थित रहे। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि हिन्दू जनमानस टकटकी लगाकर बैठी है कि धर्म पालन करने के लिए हम किसकी बात सुनें। ऐसे समय में ढेर सारे विधर्मी जिनको स्वयं धर्म का ज्ञान नहीं है वे धर्म का उपदेश दे रहे हैं जिससे आम जनमानस के मन में भ्रांतियां उत्पन्न हो रही हैं कि क्या सही और क्या ग़लत है। अपने विरासतों की करेंगे प्राप्ति शंकराचार्य ने कहा - आज के विषय धार्मिक विरासतों की पुनः प्राप्ति पर कहना चाहूँगा कि कुछ लोगो का कहना है कि हमको जो मिलना था मिल गया अब छोड़ दिया जाये लेकिन मैं कहना चाहूँगा जितने हमारे मठ मन्दिर हैं जिसपर अतिक्रमण करके उसपर मस्जिद बना दी गई है हम उन सबको खोजेंगे और अपने विरासतों की प्राप्ति करके वहाँ अपने पुरातन संस्कृति की स्थापना करेंगे।

परमधर्म-संसद में धार्मिक विरासतों की पुनः प्राप्ति पर हुई चर्चा
News by indiatwoday.com
धार्मिक विरासतों की महत्ता
हाल ही में आयोजित परमधर्म-संसद में धार्मिक विरासतों की पुनः प्राप्ति पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई। इस सम्मेलन में अनेक श्रद्धालुओं, संतों और विद्वानों ने हिस्सा लिया। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द ने इस मुद्दे पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि हिन्दुओं को अपनी धार्मिक विरासतों की पुनः प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द का वक्तव्य
शंकराचार्य ने जोर देकर कहा कि हमारी धार्मिक विरासत केवल सांस्कृतिक पहचान नहीं, बल्कि हमारी आत्मा की पहचान भी है। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले कई वर्षों में अनेक धार्मिक स्थलों और ग्रंथों को पुनः प्राप्त किया गया है, और यह एक सकारात्मक कदम है।
विरासतों की पुनः प्राप्ति के उपाय
बैठक के दौरान कई सुझाव दिए गए, जिनमें शामिल हैं:
- धार्मिक स्थलों की सुरक्षा
- धार्मिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार
- विरासत संरक्षण के लिए सरकारी सहायता
आगामी योजनाएँ
समाज के विभिन्न भागों से धार्मिक शिक्षकों और अधिवक्ताओं ने भी इस मुद्दे पर विचार साझा किए। अनेकों ने चर्चा की कि कैसे तकनीक के माध्यम से धार्मिक विरासतों को बचाया जा सकता है। इसके अलावा, उन्होंने विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी का सुझाव दिया ताकि इस पहल को आगे बढ़ाया जा सके।
समापन विचार
परमधर्म-संसद की इस चर्चा ने सभी धार्मिक समुदायों को एक साथ आने और अपनी-अपनी धार्मिक विरासतों की रक्षा के लिए प्रेरित किया है। यह सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है कि हमारी भावी पीढ़ियाँ भी इस महान धरोहर का सम्मान करें। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द के नेतृत्व में, यह प्रयास अवश्य सफल होगा।
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