पीजीआई में मरीज का बैग ऑटो में छूटा:8000 रुपए की दवाइयों से भरा बैग TSI और ऑटो चालक ने ढूंढकर लौटाया

लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में एक ईमानदारी की मिसाल सामने आई है। बलिया के रहने वाले संतोष कुमार अपने भाई के इलाज के लिए पीजीआई से दवाइयां लेकर ऑटो में बैठे। लेकिन जल्दबाजी में उनका बैग ऑटो में ही छूट गया। बैग में करीब 8000 रुपए की दवाइयां और कपड़े थे। ऑटो चालक सुधाकर, जो अंबेडकर नगर के पकरौली के रहने वाले हैं, ने बैग देखा। उन्होंने तुरंत पीजीआई गेट पर तैनात ट्रैफिक सब इंस्पेक्टर (TSI) पंकज कुमार को इसकी जानकारी दी। TSI पंकज कुमार ने बैग की जांच की। उसमें पीजीआई का एक बिल मिला जिस पर केस नंबर लिखा था। वे तुरंत पीजीआई अस्पताल गए और केस नंबर की मदद से मरीज का नाम और फोन नंबर पता किया। फिर उन्होंने संतोष कुमार को फोन कर पीजीआई गेट पर बुलाया। संतोष कुमार को जब उनका बैग वापस मिला तो वे बहुत खुश हुए। उन्होंने TSI पंकज कुमार और ऑटो चालक सुधाकर का आभार जताया। उन्होंने बताया कि वे अपने भाई का इलाज करवा रहे हैं और इस मुश्किल समय में सामान मिलने से बहुत राहत मिली।

Mar 22, 2025 - 01:59
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पीजीआई में मरीज का बैग ऑटो में छूटा:8000 रुपए की दवाइयों से भरा बैग TSI और ऑटो चालक ने ढूंढकर लौटाया
लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में एक ईमानदारी की मिसाल सामने आई है। बलिया के रहने वाले संतोष कुमार अपने

पीजीआई में मरीज का बैग ऑटो में छूटा: 8000 रुपए की दवाइयों से भरा बैग TSI और ऑटो चालक ने ढूंढकर लौटाया

आज की सबसे दिलचस्प कहानी यहाँ है, जब पीजीआई (पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च) के एक मरीज का बैग एक ऑटो रिक्शा में छूट गया। इस बैग में करीब 8000 रुपए की दवाइयाँ थीं, जो मरीज के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण थीं। लेकिन यह कहानी सिर्फ एक खोए हुए बैग की नहीं है, बल्कि उन लोगों की ईमानदारी और जिम्मेदारी को भी दर्शाती है, जिन्होंने इस बैग को खोजकर मरीज को लौटाया।

क्या हुआ जब मरीज का बैग छूटा?

मरीज, जिसे दवा के लिए अस्पताल जाना था, अपनी यात्रा के दौरान अपना बैग ऑटो में भूल गया। ऑटो चालक और उसके सहायक ने तुरंत इस बैग को देखा और समझा कि यह कितना महत्वपूर्ण हो सकता है। उन्होंने बिना कोई समय गंवाए, बैग को सुरक्षित रखने का निर्णय लिया।

ऑटो चालक की ईमानदारी

टीएसआई (ट्रैफिक सर्विस इंस्टीट्यूट) के अधिकारियों के सहयोग से ऑटो चालक ने बैग को पीजीआई वापस लौटाने का प्रयास किया। उसकी इस ईमानदारी और जिम्मेदारी से न केवल मरीज को उसकी दवाइयाँ वापिस मिलीं, बल्कि यह भी साबित हुआ कि आज के युग में भी सच्ची इंसानियत और मदद की भावना जीवित है।

दवाइयाँ और मरीजों की समस्या

कई बार मरीजों को दवाओं की आपूर्ति हेतु लंबी लाइन में खड़ा होना पड़ता है। ऐसे में, एक मरीज का दवा छूट जाना गंभीर समस्या बन सकती है। इस मामले में, दवाइयों का खोना मरीज की सेहत पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता था, इसलिए ऑटो चालक का यह कदम न केवल सराहनीय था बल्कि आवश्यक भी था।

समाज में इस तरह की घटनाएँ यह सिद्ध करती हैं कि जब एक व्यक्ति दूसरों की मदद करने की कोशिश करता है, तो उसका प्रभाव पूरे समुदाय पर पड़ता है। हमें ऐसे लोगों की सराहना करनी चाहिए जो अपने कर्तव्यों को निभाते हैं।

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निष्कर्ष

इस घटना ने हमें यह सिखाया कि हमारे चारों ओर अच्छे लोग हैं, जो हमेशा मदद के लिए तत्पर हैं। ऐसे उदाहरण हमें प्रेरित करते हैं और हमें यह विश्वास दिलाते हैं कि आज भी मानवता जिंदा है। यदि आपके पास कोई विशेष अनुभव है या कोई सवाल है, तो हमें बताएं।

इस कहानी के माध्यम से हम यह मान सकते हैं कि एक अच्छी सोच और ईमानदारी के साथ काम करना कितना आवश्यक है। keywords: पीजीआई मरीज बैग, ऑटो चालक ईमानदारी, 8000 रुपए दवाइयाँ, पीजीआई बैग लौटाना, दवा मरीज की समस्या, ऑटो रिक्शा बैग, टीएसआई पीजीआई, घटना पीजीआई, मरीजों की दवाइयाँ, मानवता की मिसाल

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