बिहार में मतदाता सूची संशोधन : SC ने चुनाव आयोग से आधार, राशन कार्ड और वोटर ID को मान्यता देने पर विचार करने को कहा
नई दिल्ली : बिहार में चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान कड़े सवाल उठाए और आयोग से आधार कार्ड, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र को वैध दस्तावेज के रूप में शामिल करने पर …

बिहार में मतदाता सूची संशोधन: SC ने चुनाव आयोग से आधार, राशन कार्ड और वोटर ID को मान्यता देने पर विचार करने को कहा
नई दिल्ली: बिहार में चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान कड़े सवाल उठाए और आयोग से आधार कार्ड, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र को वैध दस्तावेज के रूप में शामिल करने पर गंभीरता से विचार करने को कहा। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि “न्याय के हित में ECI को उन दस्तावेजों पर भी विचार करना चाहिए जो नागरिक की पहचान और निवास प्रमाण के रूप में स्वीकार्य हैं।”
कोर्ट ने उठाए सवाल
सुनवाई के दौरान जस्टिस धूलिया ने टिप्पणी करते हुए कहा, “अगर मतदाता सूची में नागरिकता की जांच करनी थी, तो यह काम पहले शुरू करना चाहिए था। अब चुनाव के कुछ महीने पहले यह संशोधन लोकतंत्र की जड़ों पर प्रहार करने जैसा है।” पीठ ने स्पष्ट किया कि मतदाता सूची में संशोधन चुनाव आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी है, और इसे रोका नहीं जा सकता, लेकिन प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता भी उतनी ही जरूरी है।
ECI का बचाव और आधार पर बहस
चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने तर्क दिया कि आधार कार्ड, पहचान के लिए मान्य हो सकता है, लेकिन नागरिकता का प्रमाण नहीं है। उन्होंने कहा, “हमारा उद्देश्य योग्य मतदाताओं को जोड़ना और अपात्रों को हटाना है, न कि किसी वर्ग को बाहर करना।” द्विवेदी ने बताया कि अब तक करीब 5.5 से 6 करोड़ फॉर्म भरे जा चुके हैं, जिनमें से आधे अपलोड भी हो चुके हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मतदाता सूची से किसी का नाम स्वतः नहीं हटाया जाएगा, जब तक वह कानूनन अपात्र घोषित न हो।
आधार क्यों नहीं? कोर्ट का सवाल
जस्टिस धूलिया ने सवाल किया कि “जब जाति प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज SIR में मान्य हैं, तो आधार जैसे मूलभूत दस्तावेज को क्यों बाहर रखा गया है?” इस पर चुनाव आयोग ने जवाब दिया कि आधार अधिनियम स्वयं नागरिकता या निवास का प्रमाण नहीं मानता, इसलिए उसे शामिल करना उचित नहीं है।
SIR की जरूरत क्यों?
ECI ने SIR की आवश्यकता को उचित ठहराते हुए कहा कि पिछला पूर्ण पुनरीक्षण वर्ष 2003 में हुआ था, और अब समय आ गया है कि सूची को अपडेट किया जाए। आयोग के अनुसार, “करीब 1.1 करोड़ मृत मतदाताओं और 70 लाख पलायन करने वालों की जानकारी मिलने के बाद गहन पुनरीक्षण अनिवार्य हो गया है।”
अगली सुनवाई 28 जुलाई को
सुप्रीम कोर्ट ने ECI को 21 जुलाई तक अपना विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी। याचिका में विपक्षी नेताओं और नागरिक संगठनों ने मतदाता सूची में बिना पर्याप्त सूचना के नाम काटने और सामाजिक समूहों के साथ भेदभाव की आशंका जताई थी।
अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की मांग
याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कोर्ट से आग्रह किया कि आधार, वोटर ID और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को SIR प्रक्रिया में मान्यता दी जाए। उन्होंने कहा, “अदालत ने माना है कि चुनाव आयोग अगर चाहे तो इन दस्तावेजों को स्वीकार कर सकता है। इसमें कोई बाध्यता नहीं है, पर यह आवश्यक है कि आयोग पारदर्शिता बरते।”
इस मामले में, बिहार चुनाव आयोग को स्पष्ट दिशा निर्देश दिए जाने की आवश्यकता है कि नागरिकों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के मामले में पारदर्शिता कैसे सुनिश्चित की जाए। यह सुनवाई यह सुनिश्चित करती है कि लोकतंत्र का मूल सिद्धांत सुरक्षित रहे।
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