लखनऊ बायोस्कोप में दिखा साहित्यिक रंग:वैभव कौल के गीतों पर झूमे दर्शक , विभिन्न धर्म के लोगों ने साथ किया रोजा इफ्तार
लखनऊ कैसरबाग स्थित बायोस्कोप में 'रंगारंग स्प्रिंग रिमिनिसेंस' का आयोजन किया गया। जिसमें वैभव कौल ने प्रदर्शन किया। वैभव कौल ने गायन और हयात हुसैन खान ने सारंगी पर प्रस्तुति दी। वैभव कौल के गीतों ने वसंत ऋतु की सुंदरता को समर्पित किया । उनके प्रदर्शन में प्राचीन और मध्यकालीन समय के बीच का संगम देखने को मिला, जिसमें उन्होंने कालिदास और खुसरो की कविताओं से शुरुआत की। वैभव कौल ने कव्वालियाँ, भजन, कुछ पश्तो के शेर और कश्मीरी पारंपरिक गीत गाए। उन्होंने इस समय के चारों ओर होने वाले विभिन्न त्योहारों - होली, ईद, नवरोज़, चैत्र नवरात्रि, ईस्टर और राम नवमी का भी उल्लेख किया। उन्होंने हिंदी, उर्दू, रेख़्ता, पश्तो, हिंदवी, अवधी, ब्रज आदि भाषाओं का मिश्रण उपयोग किया। जिसे सुनकर दर्शक झूम उठे। इस खास मौके पर रोजा इफ्तार का भी आयोजन किया गया। जिसमें विभिन्न धर्म के लोगों ने हिस्सा लिया। वैभव कौल फिल्म निर्माता, चित्रकार, गायक, कवि और सांस्कृतिक अभिलेखागार हैं। उनकी कला पर गहरी पकड़ है जो लोगों को बेहद प्रभावित करती है। वैभव ने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय से भूगोल में डिग्री प्राप्त की है और शैफील्ड विश्वविद्यालय से भूगोल में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की । सारंगी कलाकार हयात हुसैन खान ने बताया कि वो सोनीपत-पानीपत घराने से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने प्रमुख संस्थानों में पढ़ाया है और दुनिया भर में प्रदर्शन इस कला का प्रसार प्रचार कर रहे हैं।

लखनऊ बायोस्कोप में दिखा साहित्यिक रंग: वैभव कौल के गीतों पर झूमे दर्शक
लखनऊ में हाल ही में हुए एक भव्य कार्यक्रम में साहित्य और संगीत ने मिलकर एक अनोखा माहौल बनाया। 'लखनऊ बायोस्कोप' में वैभव कौल के लोकप्रिय गीतों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस कार्यक्रम की खासियत यह थी कि इसमें विभिन्न धर्मों के लोगों ने एकता का परिचय देते हुए रोजा इफ्तार भी किया।
वैभव कौल का संगीत: एक हिंदी साहित्यिक अनुभव
वैभव कौल की प्रस्तुति ने न केवल श्रोताओं को भाव-विभोर किया, बल्कि उनका संगीत जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करता है। उनकी गीतों में गहरी अर्थवत्ता और भावनाएं भरी हुई हैं, जो जनजातीय मूल्य और प्रेम की सुगंध से युक्त हैं। विभिन्न आयुवर्ग के दर्शकों ने वैभव के मधुर सुरों पर झूमते हुए इस अनुभव का आनंद लिया।
रोजा इफ्तार: एकता का प्रतीक
इस कार्यक्रम का एक और महत्वपूर्ण पहलू था रोजा इफ्तार, जिसमें विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ आए। सभी ने मिलकर इफ्तार किया और एक-दूसरे के साथ अपनी संस्कृति का आदान-प्रदान किया। यह अवसर सभी के लिए एकता, सद्भाव और सामंजस्य का प्रतीक बन गया।
अंत में
लखनऊ बायोस्कोप में हुए इस कार्यक्रम ने न केवल कला और संस्कृति को प्रोत्साहित किया, बल्कि समाज में एकता का भी संदेश दिया। वैभव कौल के गीतों के साथ-साथ, इस इफ्तार ने सभी को एक सच्ची मानवता का अहसास कराया। इस तरह के कार्यक्रम भविष्य में भी होने चाहिए, ताकि समाज में और भी एकजुटता बनी रहे।
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