वाराणसी के महंत आवास पर गौना उत्सव का आगाज:काशी पुराधिपति पहुंचे गौरा सदनिका, महिलाओं ने गाए मंगल गीत; अजय राय उतारेंगे आरती
वाराणसी में रंगभरी एकादशी पर 300 वर्षों की पुरानी परंपरा का लेकर प्रशासन और महंत परिवार आमने सामने हैं। महंत परिवार ने नागा साधुओं के साथ सोमवार को रंगभरी एकादशी मनाने का ऐलान किया है तो पालकी को काशी की गलियों में ले जाने की बात भी कही। महंत परिवार के आवास पर हर साल की तरह माता के गौने की परंपरा का निर्वाहन किया जा रहा है। बाबा विश्वनाथ शाम ढ़लने के पहले ही माता की विदाई कराने गौरा सदनिका पर पहुंच चुके हैं। उनके पहुंचने पर गौना की रस्में शुरू हो गई। उधर, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने रंगभरी एकादशी की पालकी और उसके कार्यक्रम में शामिल होने की बात कही है। हालांकि इसकी जानकारी के बाद प्रशासन चौकन्ना है और कुछ देर में पूर्व मंत्री टेढ़ीनीम आवास पर पहुंचेंगे। बता दें कि दशाश्वमेध पुलिस ने रंगभरी एकादशी पर महंत आवास से निकलने वाली प्रतिमा को लेकर पूर्व महंत पुत्र को नोटिस जारी किया है। उन्हें किसी भी अनुमति के बिना प्रतिमा निकालने पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है। हवाला दिया कि श्री कुलपति तिवारी की मृत्यु के पश्चात श्री काशी विश्वनाथ न्यास द्वारा किसी भी बाहरी प्रतिमा या किसी प्रकार के बाहरी आयोजन को मन्दिर परिसर मे प्रवेश हेतु स्पष्ट तौर पर मना किया गया है। मंगल गीतों के साथ बाबा विश्वनाथ का स्वागत गौना की बारात लेकर रंगभरी की पूर्व संध्या पर रविवार को महंत आवास (गौरा सदनिका) पहुंचने पर बाबा और उनके गणों का अनूठा स्वागत किया गया। रंगभरी ठंडई पिलाकर बाबा विश्वनाथ पर गुलाबजल की फुहार उड़ाई गई। फल, मेवा और बाबा के लिए खासतौर पर तैयार मिठाइयां अर्पित की गई। गौरा का गौना कराने आए बाबा विश्वनाथ को मंगल गीत गाकर महिलाओं ने ससुराल में स्वागत किया। उनके आगमन पर वैदिक बटुकों ने मंत्रोचार किया और वैदिक सूक्तों का पाठ किया गया। काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत कुलपति तिवारी के पुत्र वाचस्पति तिवारी ने अनुष्ठान किया। बाबा विश्वनाथ एवं माता पार्वती को सिंहासन पर विराजमान कराया गया। पूजन-आरती कर भोग लगाया गया। पहले डमरुओं की गर्जना हुई फिर महिलाओं और कलाकारों ने मंगल कामनाओं से परिपूर्ण पारंपरिक गीत, लोकनृत्य, संगीत से ससुराल पहुंचे काशी पुराधिपति का स्वागत किया। टेढ़ीनीम में गौरा सदनिका गौने के बधाई गीतों से गुंजायमान रही है। 10 मार्च को रंगभरी एकादशी, गौरा का गौना रंगभरी एकादशी पर 10 मार्च को बाबा के पूजन का क्रम ब्रह्म मुहूर्त में मंहत आवास पर आरंभ होगा। बाबा के साथ माता गौरा की चल प्रतिमा का पंचगव्य तथा पंचामृत स्नान के बाद दुग्धाभिषेक किया जाएगा। दुग्धाभिषेक पं. वाचस्पति तिवारी और संजीवरत्न मिश्र करेंगे। सुबह पांच से साढ़े आठ बजे तक 11 वैदिक ब्रह्मणों द्वारा षोडशोपचार पूजन पश्चात फलाहार का भोग लगा महाआरती की जाएगी। दस बजे चल प्रतिमाओं का राजसी शृंगार एवं पूर्वाह्न साढ़े ग्यारह बजे भोग आरती के बाद के बाबा का दर्शन आम श्रद्धालुओं के खोला जाएगा। जन सामान्य के लिए दर्शन सायं साढ़े चार बजे तक खुला रहेगा। डमरूदल के सदस्यों के लिए दोपहर दो से तीन बजे तक समय निर्धारित किया गया है। महंत पुत्र वाचस्पति तिवारी ने बताया कि पुलिस प्रशासन ने नोटिस देकर वर्षों पुरानी परंपरा रोकने का प्रयास किया है। बाबा की पालकी की शोभायात्रा टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास से विश्वनाथ मंदिर मार्ग निकालने की परंपरा निभाई जाएगी। संगीत के परंपरागत आयोजन के बाद शहनाई की मंगलध्वनि के बीच पालकी मंदिर मार्ग तक घुमाया जाएगा।
वाराणसी के महंत आवास पर गौना उत्सव का आगाज
वाराणसी में आज गौना उत्सव का उल्लास देखने को मिला, जहाँ काशी पुराधिपति ने गौरा सदनिका में पहुँचकर इस धार्मिक अनुष्ठान की शुरुआत की। यह आयोजन स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। महिलाएँ इस अवसर पर मंगल गीत गा रही थीं, जो इस उत्सव की रौनक को और बढ़ा रहा था।
गौना उत्सव: एक सांस्कृतिक महत्व
गौना उत्सव एक विशेष अवसर है जब सभी लोग एक साथ मिलकर हर्षोल्लास का अनुभव करते हैं। इस साल, काशी पुराधिपति के आगमन ने इस आयोजन को और अधिक भव्य बना दिया है। महिलाओं ने अपने पारंपरिक वस्त्र पहनकर इस अवसर को मनाने के लिए उत्सुकता दिखाई।
आरती उतारने की जिम्मेदारी अजय राय पर
अजय राय, जो इस कार्यक्रम के प्रमुख व्यक्ति हैं, ने आरती उतारने की जिम्मेदारी ली। यह धार्मिक अनुष्ठान सिर्फ एक साधारण समारोह नहीं है; यह स्थानीय लोगों के लिए एक सामाजिक गठबंधन और एकजुटता का एक प्रतीक है।
उत्सव की तैयारी और स्थानीय लोगों का सहयोग
इस उत्सव की तैयारी कई दिनों से की जा रही थी, जहाँ स्थानीय लोगों ने अपने-अपने घरों को सजाया और इस खास दिन के लिए विशेष पकवान बनाए। साफ़-सफाई, सजावट और अन्य मुद्दों को लेकर सभी ने मिलकर काम किया।
गौना उत्सव ऐसे समयों का प्रतीक है जब समुदाय एकजुट होता है, एक-दूसरे का साथ देता है, और अपने धार्मिक आस्था को मनाता है। यह वाराणसी की संस्कृति को और भी समृद्ध बनाता है।
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