हाथों पर मिला बारूद बना अहम सबूत…हत्यारे को उम्रकैद:झांसी में छात्र-छात्रा को गोली मारी थी, चाचा बोले- भतीजे की आत्मा को अब शांति मिली

“भतीजा बचपन से मेरे पास पढ़ रहा था। उस दिन वो अपनी क्लास में कॉपी पर कुछ लिख रहा था। तभी क्रूर युवक ने मेरी आंखों के सामने उसे गोली मार दी। फिर उसकी दोस्त कृतिका त्रिवेदी की हत्या कर दी। कोर्ट ने हत्यारे मंथन सिंह सेंगर को उम्रकैद की सजा सुनाई है। मेरे भतीजे की आत्मा को अब जरूर शांति मिली होगी। अगर कोर्ट हत्यारे को फांसी देती तो और संतुष्टि होती।” यह कहते हुए संजय कुमार गुर्जर की आंखें भर आती हैं। जिनके भतीजे हुकमेंद्र सिंह गुर्जर की 4 साल पहले मंथन सिंह ने बुंदेलखंड महाविद्यालय (BKD) में गोली मार दी थी। फिर गोंदू कम्पाउंड में जाकर कृतिका त्रिवेदी की हत्या कर दी थी। हत्यारे को सजा हुई तो संजय और कृतिका के पिता सुजीत त्रिवेदी कोर्ट में ही थे। दोनों ने कोर्ट के फैसले की सराहना की है। सबसे पहले दो सबूत की बात, जो सबसे अहम बने जिला शासकीय अधिवक्ता मृदुल श्रीवास्तव ने बताया कि कृतिका की हत्या के बाद पुलिस ने आरोपी मंथन सिंह को मौके पर गिरफ्तार किया था। गोली चलाने के बाद बारूद के कण उसके हाथ गिरे थे। FSL टीम ने हाथों के स्वैप सैंपल लेकर विधि विज्ञान प्रयोगशाला आगरा भेजे। जिसकी रिपोर्ट में हाथों पर बारूद होने की पुष्टि हुई। सैंपल लेने वाले FSL कर्मचारी की कोर्ट में गवाही सबसे अहम साबित हुई। वहीं, 32 बोर की पिस्टल से हुकमेंद्र व कृतिका को गोली मारी गई थी। पोस्टमार्टम के दौरान हुकमेंद्र के शरीर से 32 बोर का कॉर्टेज बरामद हुआ था। मामले में 16 गवाह पेश हुए। चाचा संजय, हुकमेंद्र के साथ क्लास में पढ़ रही छात्रा सौम्या, कृतिका के पिता सुजीत त्रिवेदी, दादी संतोष त्रिवेदी ने कोर्ट में आरोपी के खिलाफ गवाही दी। चाचा बोले- वो मेरा भतीजा नहीं, बेटा था हुकमेंद्र के चाचा सजय कुमार गुर्जर ने कहा- “देखिए हम न्यायालय के फैसले की सराहना करते हैं। जिस क्रूरता के साथ मंथन ने क्लास में पढ़ते हुए मेरे भतीजे की हत्या की थी। अगर कोर्ट फांसी की सजा सुनाती तो हमें थोड़ी और ज्यादा संतुष्टि होती। हालांकि हम फैसले से पूरी तरह संतुष्ट हैं। क्योंकि वो मेरा भतीजा नहीं था, बेटा था। मेरे भाई असम राइफल में तैनात थे। मैं बचपन में हुकमेंद्र को अपने पास लाया था। अब मैं अपने आपको ही दोषी मानता हूं, क्योंकि न उसे लाता, न उसकी हत्या होती। कोर्ट, प्रशासन व सरकार की कार्रवाई से मैं संतुष्ट है। मंथन सिंह को उम्रकैद हुई तो मेरे भतीजे की आत्मा को अब जरूर शांति मिली होगी।” हत्यार के चेहरे पर कभी सिकन नहीं देखी संजय ने कहा कि “”मेरे भाई ने 23 साल 11 महीने असम राइफल में जॉब की, आज उसकी उम्र 56 साल है। अभी वो प्राइवेट गार्ड की नौकरी कर रहे हैं। ऐसे कर्मशील व्यक्ति के बेटे को छीना है। मेरा राम जैसा भाई है, जो पूरे जीवनभर देश सेवा में बॉर्डर पर रहा। लेकिन क्रूर आरोपी ने जिस टाइम गोली मारी, वो कॉपी पर लिखते हुए पेन हाथ में रह गया था। मैं चिल्लाता रहा, मेरी आंखों के सामने मंथन ने गोली मारी थी। 4 साल के ट्रायल के दौरान कभी आरोपी के चेहरे पर सिकन नजर नहीं आई। शहंशाहों की तरह वो कोर्ट में खड़ा रहता है। उसे कोई पछतावा नहीं है। ये प्री-प्लांड मर्डर था। मेरे से जितनी जी-जान से पैरवी हो सकती थी, वो की है। आगे भी करते रहेंगे।” कृतिका के पिता बोले- ये समाज का दुश्मन कृतिका के पिता सुजीत त्रिवेदी ने कहा- “कोर्ट के फैसले का हम स्वागत करते हैं। आरोपी जिंदगी भर जेल में रहे, तो बहुत अच्छा होगा। ये समाजिक हत्यारा व समाज का दुश्मन है। हम लोगों का क्या, जो था खोने को, हम खो चुके हैं। हमारा तो जो था वो चला गया। अब ये जेल से बाहर नहीं आना चाहिए।” एमए फाइनल में पढ़ते थे तीनों हुकमेंद्र सिंह गुर्जर मथुरा के जटवारी गांव का रहने वाला था। वह BKD में एमए मनोविज्ञान फाइनल ईयर का छात्र था। वह पुराने हॉस्टल में रहता था। उसी की क्लास में निवाड़ी के मोहल्ला हर्षमऊ का रहने वाला मंथन सिंह सेंगर पढ़ता था। जबकि गोंदू कंपाउंड के चाणक्यपुरम में रहने वाली कृतिका त्रिवेदी एमए फाइनल (इतिहास) में पढ़ती थी। मंथन कृतिका से एकतरफा प्यार करता था। इधर, कृतिका और हुकमेंद्र एनसीसी लिए थे। उनके बीच अच्छी दोस्ती थी और दोनों बातचीत करते थे। ये बात आरोपी मंथन को नापंसद थी। उसने कई बार रोका भी, लेकिन वे नहीं माने। ब्लैकबोर्ड पर दिल बनाकर लिखा फिनिश, 2021 में क्लास में घुसकर गोली मारी साल 2021 की 19 फरवरी की तारीख थी। हुकमेंद्र अपनी क्लास में मेज पर बैठकर पढ़ रहा था। तभी मंथन वहां आया। उसने पिस्टल से हुकमेंद्र के सिर में गोली मार दी, तो वह मेज पर गिर गया। इसके बाद क्लास के ब्लैकबोर्ड पर चॉक से दिल बनाकर फिनिश लिख दिया। कहा कि अब कृतिका को मारूंगा। इसके बाद मंथन पिस्टल लहराते हुए कृतिका के घर पहुंचा। कृतिका घर के बाहर अपनी 80 साल की दादी से बात कर रही थी। तभी मंथन ने गोली मारकर कृतिका की हत्या कर दी। उसने दादी और पिता को भी गोली मारने की कोशिश की थी। लेकिन, पुलिस ने मौके पर पहुंचकर उसे पिस्टल के साथ गिरफ्तार कर लिया। हुकमेंद्र ने इलाज के दौरान दिल्ली में दम तोड़ दिया था, जबकि कृतिका की मौके पर ही मौत हो गई थी। हुकमेंद्र के चाचा संजय ने नवाबाद थाना में केस दर्ज कराया था। घटना के समय संजय बीकेडी में ही कर्मचारी थे।

Feb 8, 2025 - 05:59
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हाथों पर मिला बारूद बना अहम सबूत…हत्यारे को उम्रकैद:झांसी में छात्र-छात्रा को गोली मारी थी, चाचा बोले- भतीजे की आत्मा को अब शांति मिली
“भतीजा बचपन से मेरे पास पढ़ रहा था। उस दिन वो अपनी क्लास में कॉपी पर कुछ लिख रहा था। तभी क्रूर युवक न

हाथों पर मिला बारूद बना अहम सबूत…हत्यारे को उम्रकैद

झांसी के एक दिल दहला देने वाले मामले में, एक छात्र-छात्रा को गोली मारने वाले आरोपी को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। इस मामले में बारूद का एक महत्वपूर्ण सबूत हाथों पर पाया गया, जिसने अभियुक्त की दोषसिद्धि में बड़ा योगदान दिया। इस सजा के साथ, पीड़ित के चाचा ने कहा कि अब उनके भतीजे की आत्मा को शांति मिली है।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला झांसी के एक क्षेत्र का है, जहां कुछ समय पहले दो छात्रों पर गोलियों से हमला किया गया था। घटना ने न केवल पीड़ित परिवार के लिए बल्कि पूरे समुदाय के लिए सुरक्षा और न्याय का सवाल उठाया। पुलिस ने मामले की गंभीरता को समझते हुए त्वरित कार्रवाई की और आरोपी को गिरफ्तार किया।

हाथों पर मिले बारूद के सबूत

पुलिस ने जब घटना स्थल से साक्ष्य एकत्र करना शुरू किया, तब जांच में हाथों पर मिले बारूद के निशान ने मामले को नया मोड़ दिया। यह सबूत आरोपी की पहचान और घटना में उसकी भागीदारी को सिद्ध करने में महत्वपूर्ण साबित हुआ। विशेषज्ञों ने इस बात की पुष्टि की कि बारूद के ये निशान हत्या के समय की ओर इंगित करते हैं।

अभियुक्त की सजा और परिवार की प्रतिक्रिया

आवश्यक सुनवाई के बाद एहसीन निष्कर्ष के साथ, न्यायालय ने आरोपी को उम्रकैद की सजा सुनाई। पीड़ित के चाचा ने इस फैसले के बाद बताया कि उन्हें अब अपने भतीजे की आत्मा को शांति मिल गई है। उन्होंने कहा कि यह सजा न केवल उनके लिए, बल्कि सभी पीड़ित परिवारों के लिए एक संदेश है कि न्याय हमेशा सुनिश्चित किया जाएगा।

समाज पर प्रभाव

इस फैसले ने समाज में सुरक्षा की भावना को फिर से जगाया है। झांसी की घटना ने कानून-व्यवस्था की स्थिति पर सवाल उठाया था। लेकिन अब जब न्याय की प्रक्रिया सफल रही है, तो लोगों में एक सकारात्मक परिवर्तन दिखाई दे रहा है।

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