आंकड़ों में दिल्ली विधानसभा चुनाव:7 साल में भाजपा का वोट 5% बढ़ा लेकिन सीटें 31 से 8 हुईं; कांग्रेस 24% से 4% पर आई

चुनाव आयोग ने 7 जनवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव का ऐलान कर दिया। सभी 70 विधानसभा सीटों पर 5 फरवरी को सिंगल फेज में वोटिंग होगी। नतीजे 8 फरवरी को आएंगे। चुनाव के ऐलान के साथ ही दिल्ली में आचार संहिता भी लागू हो गई। यह चुनाव प्रक्रिया पूरी होने यानी 10 फरवरी तक करीब 35 दिन लागू रहेगी। 2020 के चुनाव से इसकी तुलना करें तो यह 4 दिन कम है। तब चुनाव की घोषणा 6 जनवरी को हुई थी और प्रक्रिया पूरी होने यानी 13 फरवरी तक करीब 39 दिन लागू रही थी। 2020 से 8 लाख मतदाता बढ़कर 1.55 करोड़ हुए पिछले विधानसभा चुनाव 2020 से अब तक 5 साल में करीब 8 लाख मतदाता बढ़ गए। पिछली बार मतदाताओं की संख्या करीब 1.47 करोड़ थी। इसमें 79.86 लाख पुरुष, 67.30 लाख महिलाएं और 1176 थर्ड जेंडर मतदाता थे। जबकि इस बार चुनाव में 1.55 करोड़ मतदाता हैं। इनमें 83.49 लाख पुरुष, 71.74 लाख महिलाएं और 1261 थर्ड जेंडर मतदाता हैं। 2013 में 1 साल पुरानी पार्टी ने 29% वोट झटके, अगले 2 साल में 54% तक पहुंची 2012 की गांधी जयंती यानी 2 अक्टूबर को आम आदमी पार्टी (AAP) की नींव रखी गई। इसके ठीक 1 साल 1 महीने और 2 दिन बाद 4 दिसंबर, 2013 को दिल्ली चुनाव के लिए वोटिंग हुई। जब 8 दिसंबर को नतीजे आए तो AAP को 29.49% वोट के साथ 28 सीटों पर जीत मिली। पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को उनकी नई दिल्ली सीट पर करीब 26 हजार वोट से हराया। केजरीवाल को 53.8% वोट मिले, जबकि तीन बार से मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को सिर्फ 22.4% वोट मिले। 7 साल में भाजपा का 5% वोट बढ़ा, सीटें 31 से घटकर 8 रह गईं दिसंबर, 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन बहुमत से 5 सीट पीछे रह गई। भाजपा ने 33.07% वोट हासिल करके 31 सीटें जीतीं। AAP ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई, लेकिन 2 महीने भी न चली। करीब साल भर राष्ट्रपति शासन रहा। 2015 में चुनाव हुए तो भाजपा का वोट शेयर 0.88% घटकर 32.19% रह गया। सिर्फ इतने से ही पार्टी ने 28 सीटें गवां दीं। 2013 की तुलना में 2020 के चुनाव में भाजपा का वोट शेयर 5.44% बढ़कर 38.51% हो गया फिर भी पार्टी सिर्फ 5 सीटें ही बढ़ाकर 8 सीटें ही जीत सकी। 7 साल में 24% से 4% पर आई कांग्रेस, पिछले 2 चुनाव में खाता भी नहीं खुला 1998 से 2013 तक लगातार तीन विधानसभा चुनाव जीतने वाली कांग्रेस 2015 के चुनाव में खाता तक नहीं खोल पाई। पार्टी को सिर्फ 9.65% वोट मिले। वहीं, 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने 24.55% वोट के साथ 8 सीटें जीती थीं। दिल्ली में पार्टी की दुर्गति यहीं नहीं रुकी। 2020 में वोट गिरकर 4.26% रह गया। करीब 18% स्विंग वोटर्स बनते हैं दिल्ली के किंगमेकर दिल्ली में हर बार लोकसभा चुनाव के करीब नौ महीने बाद विधानसभा चुनाव होते हैं। लेकिन, इतने कम अंतराल में भी वोटिंग ट्रेंड बदल जाता है। बीते तीन विधानसभा और तीन लोकसभा चुनाव के रिजल्ट देखें तो औसतन 18% स्विंग वोटर्स ही दिल्ली की सत्ता तय करते रहे हैं। स्विंग वोटर या फ्लोटिंग वोटर वह मतदाता होता है जो किसी पार्टी से जुड़ा नहीं होता है। वह हर चुनाव में अपने-फायदे नुकसान के आधार पर अलग-अलग पार्टी को वोट दे सकता है। 2014 में भाजपा लोकसभा की सभी 7 सीटें जीती और कुल 70 में से 60 विधानसभा सीटों पर आगे रही, लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में AAP 67 और भाजपा ने 3 सीट जीतीं। 2019 में भाजपा फिर सभी लोकसभा सीटें जीती और 65 विधानसभा में आगे रही। लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में AAP 62 सीटें जीत गई। 2024 में लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर सभी सीटें जीती और 52 विधानसभा सीटों पर आगे रही। पिछले तीन लोकसभा चुनावों से भाजपा एकतरफा जीतती रही है। AAP विधानसभा चुनाव में करीब उतने ही वोट लेकर एकतरफा जीतती रही, जितने भाजपा को लोकसभा में मिलते हैं। वहीं, कांग्रेस 2013 के बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव में 10% वोट भी न पा सकी। ------------------------------------------------ दिल्ली चुनाव से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... 9 दिन से पोस्टर वॉर जारी, BJP ने 20 तो AAP ने 8 पोस्टर-एडिटेड वीडियो शेयर किए दिल्ली विधानसभा चुनाव तारीखों का ऐलान होते ही आम आदमी पार्टी (AAP) और भाजपा के बीच पोस्टर वॉर तेज हो गया है। भाजपा ने 8 जनवरी को केजरीवाल से जुड़े 4 पोस्टर शेयर किए। इसमें उन्होंने पूर्व CM को गोविंदा की फिल्म 'राजा बाबू' के रूप में दिखाया। पूरी खबर पढ़ें...

Jan 8, 2025 - 17:00
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आंकड़ों में दिल्ली विधानसभा चुनाव:7 साल में भाजपा का वोट 5% बढ़ा लेकिन सीटें 31 से 8 हुईं; कांग्रेस 24% से 4% पर आई
चुनाव आयोग ने 7 जनवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव का ऐलान कर दिया। सभी 70 विधानसभा सीटों पर 5 फरवरी को स

आंकड़ों में दिल्ली विधानसभा चुनाव: भाजपा का वोट 5% बढ़ा लेकिन सीटें 31 से 8 हुईं

दिल्ली विधानसभा चुनाव का आंकड़ा विश्लेषण दर्शाता है कि पिछले 7 वर्षों में भाजपा ने अपने वोट शेयर में 5% की वृद्धि की है। हालाँकि, इस वृद्धि के बावजूद भाजपा की सीटें 31 से घटकर केवल 8 रह गई हैं। यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है, जो दिल्ली की राजनीति में हलचल पैदा कर रहा है।

भाजपा का वोट बढ़ने के बावजूद सीटों में कमी

भाजपा ने दिल्ली में अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए कई उपाय किए हैं। पार्टी का वोट शेयर यदि 5% बढ़ा है, तो भी सीटों में इस कमी का कारण क्या है? कई विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा समय में भाजपा को सामुदायिक समर्थन में कमी का सामना करना पड़ रहा है। यह स्थानीय मुद्दों और रणनीतियों का मिश्रण हो सकता है जिसने पार्टी के स्तर को प्रभावित किया है।

कांग्रेस का हाल: 24% से 4% पर आई

कांग्रेस पार्टी की स्थिति और भी चिंताजनक है। जहाँ पहले उनकी हिस्सेदारी 24% थी, वहीं अब यह घटकर मात्र 4% रह गई है। यह गिरावट एक गंभीर चिंता का विषय है और इसका विश्लेषण आवश्यक है। चुनावी रणनीतियों में बदलाव, पार्टी की आंतरिक कलह और स्थानीय नेता की मोटिवेशन की कमी इस गिरावट का मुख्य कारण हो सकता है।

राजनीतिक रणनीतियाँ और आगामी चुनौतियाँ

दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस दोनों को आगे बढ़ने के लिए संवेदनशील रणनीतियों की आवश्यकता है। चुनावी दावों की ताज़गी और स्थानीय मुद्दों की समझ मौजूदा राजनीति पर गहरा असर डाल सकती है। दोनों पार्टियों को यह ध्यान देना होगा कि कैसे वे अपनी पुरानी मतदाता आधार को फिर से जोड़ सकते हैं।

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इन आंकड़ों के मद्देनजर, यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी चुनावों में राजनीतिक दलों की योजनाएँ क्या होती हैं एवं वे किस तरह से अपने मतदाताओं के साथ संवाद स्थापित करते हैं।

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