कुम्भ की भीड़ में 'क्रांतिबीज' से डरते थे अंग्रेज:इसलिए मेले की निगरानी बढ़ाई, विरोध के बावजूद टैक्स वसूला

मुगलों के पतन के बाद अंग्रेजों का राज आया और कुम्भ का आयोजन होता रहा। अंग्रेजों के लिए कुम्भ कौतूहल से कम नहीं था। हालांकि 1857 की क्रांति से डरे अंग्रेज कुम्भ को लेकर बहुत सतर्क थे। इस महापर्व में आने वाली लाखों की भीड़ के बीच कोई ‘क्रांतिबीज’ न पनप जाए, इससे बचने के लिए निगरानी बहुत बढ़ा दी गई थी। मुख्य रूप से आयोजन तीर्थ पुरोहितों को करना होता था तो उन पर खास नजर रखी जाती थी। सुरक्षा के नाम पर कई प्रतिबंध लगाए गए। मसलन, कुम्भ से जुड़े एक आदेश में तीर्थ पुरोहितों (पंडों) से कहा गया कि वे अपने यहां तंबुओं में ऐसे किसी यात्री को न रुकने दें, जो पहले उनके यहां न रुका हो। कल्पवासियों और पंडों से इस बारे में हलफनामा लिया गया। दरअसल, अंग्रेज चाहते थे कि मेले में कम से कम लोग आएं। आदि गुरु शंकराचार्य ने छठी शताब्दी ईसा पूर्व जब कुंभ को लोकप्रिय बनाना शुरू किया, तब कोई नहीं समझ सका था कि यह अनवरत चलने वाली ऐसी सनातन यात्रा प्रारंभ हो रही है, जो कालखंड में बांधी न जा सकेगी। इसके बाद सदियां बीतती गईं और कुंभ का वैभव बढ़ता गया। हालांकि ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत में जड़ें जमाने के साथ ही अंग्रेज समझ गए थे कि कुम्भ आमदनी बढ़ाने का जरिया बन सकता है। इसके बाद कंपनी के अधिकारियों और ईसाई मिशनरी को ‘ग्रेट इंडियन फेयर’ के अध्ययन की जिम्मेदारी दी गई। अंग्रेज सरकार ने माघ मेले में टैक्स वसूली शुरू की 1796 में मेजर जनरल थॉमस हार्डविक ने हरिद्वार कुम्भ पर पहली रिपोर्ट तैयार की। अंग्रेज सरकार ने 1810 के रेग्युलेटिंग एक्ट के तहत माघ मेले में टैक्स वसूली शुरू कर दी। तीर्थ यात्रियों, संतों और तीर्थ पुरोहितों ने इसका विरोध भी किया, लेकिन अंग्रेज नहीं माने। उत्तर पश्चिम प्रांत के सचिव एआर रीड ने 1882 में हुए प्रयाग कुम्भ मेले का ब्योरा बनाया। इसके अनुसार मेले में 20,228 रुपए खर्च हुए, जबकि राजस्व के रूप में 49,840 रु. मिले। कमाई मेले में आने वाले नाइयों, मालियों, नाविकों, कनात वालों, फेरी वालों, बैल-गाड़ी वालों से वसूले टैक्स से हुई। कुम्भ से कमाई बढ़ी तो अंग्रेजों ने मेले में अफसर तैनात किए कमाई देख अंग्रेज अफसरों ने राजस्व बढ़ाने और ब्रिटिश राज के प्रचार के लिए मेले पर पकड़ मजबूत कर दी। कमाई का कुछ हिस्सा मेले पर खर्च किया जाने लगा। अंग्रेजों ने 1870 से कुम्भ आयोजन की कमान अपने हाथ में ली। यही पहला ‘आधिकारिक कुम्भ’ था। ब्रिटिश राज में प्रयाग में 1870 के बाद 1882, 1894, 1906, 1918 और 1930 में कुम्भ हुआ। 1894 से कुम्भ की जिम्मेदारी जिला मजिस्ट्रेट को दी जाने लगी। मेला बेहतर तरीके से हो इसके लिए अंग्रेज सरकार ने इंग्लैंड के तीन खास अफसर तैनात किए। ----------------------------------------- महाकुंभ का हर अपडेट, हर इवेंट की जानकारी और कुंभ का पूरा मैप सिर्फ एक क्लिक पर प्रयागराज के महाकुंभ में क्या चल रहा है? किस अखाड़े में क्या खास है? कौन सा घाट कहां बना है? इस बार कौन से कलाकार कुंभ में परफॉर्म करेंगे? किस संत के प्रवचन कब होंगे? महाकुंभ से जुड़े आपके हर सवाल का जवाब आपको मिलेगा दैनिक भास्कर के कुंभ मिनी एप पर। यहां अपडेट्स सेक्शन में मिलेगी कुंभ से जुड़ी हर खबर इवेंट्स सेक्शन में पता चलेगा कि कुंभ में कौन सा इवेंट कब और कहां होगा कुंभ मैप सेक्शन में मिलेगा हर महत्वपूर्ण लोकेशन तक सीधा नेविगेशन कुंभ गाइड के जरिये जानेंगे कुंभ से जुड़ी हर महत्वपूर्ण बात अभी कुंभ मिनी ऐप देखने के लिए यहां क्लिक कीजिए।

Jan 7, 2025 - 06:05
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कुम्भ की भीड़ में 'क्रांतिबीज' से डरते थे अंग्रेज:इसलिए मेले की निगरानी बढ़ाई, विरोध के बावजूद टैक्स वसूला
मुगलों के पतन के बाद अंग्रेजों का राज आया और कुम्भ का आयोजन होता रहा। अंग्रेजों के लिए कुम्भ कौतू
कुम्भ की भीड़ में 'क्रांतिबीज' से डरते थे अंग्रेज: इसलिए मेले की निगरानी बढ़ाई, विरोध के बावजूद टैक्स वसूला News by indiatwoday.com

कुम्भ मेला: एक ऐतिहासिक संदर्भ

कुम्भ मेला भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख त्यौहार है, जिसमें लाखों की संख्या में लोग भाग लेते हैं। यह मेला न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। हाल के शोधों से यह पता चला है कि अंग्रेजों ने इस मेले की भीड़ से डरकर अपनी निगरानी को सख्त कर दिया था। इसके पीछे एक महत्वपूर्ण कारण 'क्रांतिबीज' का भय था, जो भारतीय जन-मानस के बीच विद्रोह का प्रतीक बन गया था।

गवर्नर जनरल की नीति

जब ब्रिटिश राज ने भारतीय जनसंख्या के बीच असंतोष और विद्रोह की लहर देखी, तो उन्होंने कुम्भ मेले में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाए। मेला स्थल पर सैन्य बलों की तैनाती और कड़ी निगरानी का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि कोई अप्रिय घटना न घटे। इसके साथ ही, अंग्रेजों ने यह भी सुनिश्चित किया कि टैक्स वसूली रुक न जाए, भले ही इसके लिए उन्हें विरोध का सामना करना पड़े।

विरोध और संघर्ष

कुम्भ मेले के समय, भारतीय जनता ने विभिन्न प्रकार के विरोध प्रदर्शनों का सहारा लिया। कई प्रांतों में किसान और श्रमिकों ने करों के खिलाफ आवाज उठाई। फिर भी, ब्रिटिश सरकार ने इन विरोधों के बावजूद अपने टैक्स वसूली के प्रयास जारी रखे। यह स्थिति भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई।

आज का कुम्भ मेला

आज भी, कुम्भ मेला भारतीय संस्कृति की धडकन बना हुआ है। वर्तमान में यह मेला पर्यटकों और श्रद्धालुओं का ध्यान आकर्षित करता है। इसकी तैयारी और आयोजन में अभूतपूर्व सावधानियाँ बरती जाती हैं, ताकि सुरक्षा और सुव्यवस्था सुनिश्चित की जा सके। यहाँ, 'क्रांतिबीज' जैसे प्रतीकों को याद रखा जाता है, जो हमें हमारी स्वतंत्रता संग्राम की इतिहास को संजीवनी देते हैं। Keywords: कुम्भ मेला, क्रांतिबीज, ब्रिटिश राज भारत, कुम्भ मेले की निगरानी, टैक्स वसूली, अंग्रेजों का डर, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, कुम्भ मेला 2023, इतिहास और सांस्कृतिक महत्व, कुम्भ की भीड़, जनप्रतिनिधि विरोध, भारतीय संस्कृतियों का संगम For more updates, visit indiatwoday.com.

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