महाकुंभ में नागा संन्यासी की जलधारा तपस्या:प्रमोद गिरी ने 21 दिन तक रोज सुबह 4 बजे 108 घड़े गंगा जल से करते हैं स्नान
तारीख : 23 जनवरी.. घड़ी में भोर के 4 बजे थे। प्रयागराज के महाकुंभ मेला क्षेत्र स्थित सेक्टर-20 यानी अखाड़ों का स्थान। श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा के मेन गेट के पास एक नागा संन्यासी जमीन पर बैठे हैं। 10 से ज्यादा लोग एक-एक कर घड़े का पानी उनके ऊपर डालते जा रहे थे। चारों तरफ लोग उन्हें घेरकर हर-हर गंगे-हर-हर महादेव का उद्घोष करते दिखे। नजदीक जाकर देखा, तो बहुत ही अनूठी तपस्या देखने को मिली। पूछने पर बगल में खड़े अखाड़े के श्रीमहंत बलराम भारती ने बताया- यह नागा संन्यासी प्रमोद गिरि हैं, जो जलधारा तपस्या कर रहे हैं। आज 21 दिन बाद इनकी यह तपस्या पूरी हुई है। इसलिए आखिरी दिन 108 घड़े में भरे गंगाजल से स्नान कर रहे हैं। आइए, सबसे पहले जानते हैं जलधारा तपस्या के बारे में नागा बाबा प्रमोद गिरि ने दैनिक भास्कर को जलधारा तपस्या के बारे में पूरी जानकारी दी। उन्होंने बताया- जलधारा तपस्या आसान नहीं होती। यह 41 दिन में पूरी होती है। लेकिन महाकुंभ में समय और स्थान की कमी के चलते हमने 21 दिन में तपस्या पूरी की है। इसमें रोज भोर में 4 बजे उठकर घड़े में रखे जल से स्नान करना होता है। तपस्या के अंतिम दिन 108 घड़े के पानी से स्नान होता है। इसमें अखाड़े के सभी साधु-संत शामिल होकर आशीर्वाद देते हैं। रोज बढ़ती जाती है घड़ों की संख्या प्रमोद गिरी महाराज ने महाकुंभ में गंगा के तट पर 3 जनवरी को यह जलधारा तपस्या शुरू की थी। पहले दिन 31 घडे़े गंगाजल से स्नान किया था। रोज कभी 2 तो कभी 3 घड़ों की संख्या बढ़ाई जाती है। इसी तरह 21वें दिन 108 घड़े के जल से स्नान कर इस तपस्या का समापन किया जाता है। प्रमोद गिरि ने बताया कि वह अभी तक 9 बार जलधारा तपस्या कर चुके हैं। इसी तरह भीषण गर्मी में अग्नि तपस्या होती है। 16 साल की उम्र में बन गए थे नागा बाबा प्रमोद गिरि महराज 16 साल की उम्र ही नागा संन्यासी बन गए थे। श्रीश्री 1008 श्री दिगंबर राम गिरि जी महाराज (हांडी कुंडी वाले नागेश्वर बाबा) के शिष्य हैं। इनके गुरु समाधि ले चुके हैं। लेकिन, प्रमोद गिरि अपने गुरु की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए इस तपस्या को अपने जीवन का आधार बना लिया है। नागा बाबा प्रमोद गिरि बताते हैं कि राष्ट्र कल्याण और विश्व कल्याण के लिए यह जलधारा तपस्या करते हैं। पूरा वीडियो देखने के लिए ऊपर फोटो पर क्लिक करें...

महाकुंभ में नागा संन्यासी की जलधारा तपस्या
महाकुंभ का महत्व हिन्दू धर्म में अत्यधिक बढ़ा हुआ है, जहाँ लाखों श्रद्धालु और साधु सन्त अपनी आस्था और तपस्या का प्रदर्शन करते हैं। इस वर्ष, विशेष रूप से नागा संन्यासी प्रमोद गिरी ने अपनी अद्वितीय जलधारा तपस्या से सभी का ध्यान आकर्षित किया है।
प्रमोद गिरी की तपस्या का विशेष महत्व
प्रमोद गिरी ने 21 दिनों तक रोज सुबह 4 बजे 108 घड़े गंगा जल से स्नान करने की अनूठी प्रक्रिया को अपनाया है। इसे उनके अनुयायियों और श्रद्धालुओं में विशेष श्रद्धा का अनुभव कराया है। यह स्नान केवल शारीरिक शुद्धता का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह आत्मिक शुद्धता की भी एक सशक्त निशानी है।
जलधारा तपस्या का अर्थ और उद्देश्य
जलधारा तपस्या का प्रथा प्राचीन समय से चली आ रही है, जहाँ साधु अपने भीतर के शुद्धिकरण के लिए जल का सेवन करते हैं। नागा संन्यासी द्वारा की जाने वाली यह प्रक्रिया आध्यात्मिक रूप से व्यक्ति को शुद्ध और संकल्पित बनाती है। प्रमोद गिरी की तपस्या ने एक नई चेतना की लहर पैदा की है।
महाकुंभ में निस्वार्थ सेवा और श्रद्धा
महाकुंभ केवल साधना का ही स्थल नहीं है, बल्कि यह समाज सेवा का भी एक स्थान है। प्रमोद गिरी जैसे साधु अपनी तपस्या के साथ-साथ बुरी शक्तियों के खिलाफ भी जागरूकता फैलाते हैं। वे लोगों को ध्यान केंद्रित करने और भीतर की शक्तियों को जागृत करने के लिए प्रेरित करते हैं।
उनकी इस तपस्या को देखकर कई लोग प्रेरित हुए हैं और गंगा जल के प्रति श्रद्धा व्यक्त कर रहे हैं। यह कदम श्रद्धालुओं को प्राकृतिक जल के महत्व को समझने में भी मदद कर रहा है।
निष्कर्ष
महाकुंभ का यह आयोजन न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक परिदृश्य का भी प्रमाण है, जहाँ हर व्यक्ति अपनी आस्था को जीवित रखे हुए है। प्रमोद गिरी की जलधारा तपस्या इस महाकुंभ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भविष्य में भी इस तरह की तपस्याएँ लोगों को प्रेरित करती रहेंगी।
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