होली पर निकलेगा "लाट साहब' का जुलूस:भैंसा गाड़ी पर बैठाकर होती है जूते की बरसात, शहर कोतवाल गिफ्ट में देते है शराब

शाहजहांपुर में होली के दिन लाट साहब का जुलूस निकाला जाएगा। लाट साहब मतलब अंग्रेजों के शासन के क्रूर अफसर। जिनके विरोध में हर साल होली में ये जुलूस निकाला जाता है। पहले एक युवक को लाट साहब के रूप में चुना जाता है। उसका चेहरा ढक कर उसे जूते की माला पहनाकर बैलगाड़ी पर बैठाकर तय मार्ग पर घुमाया जाता है। इस दौरान लाट साहब पर अबीर-गुलाल के साथ जूते-चप्पल भी फेंके जाते हैं। शाहजहांपुर में लाट साहब के दो जुलूस निकाले जाते हैं। जिसको छोटे और बड़े लाट साहब के नाम से जाना जाता है। कमेटी की तरफ से लाट साहब बनने वाले को 21 हजार रुपए का इनाम, पांच जोड़ी कपड़े और जूते चप्पल दी जाती है। चौक कोतवाली उनको सलामी देते हैं साथ ही नजराने के रूप में शराब की बोतल भी देते हैं। कमेटी के आयोजक जुलूस को शांतिपूर्ण संपन्न कराने में अहम भूमिका निभाते हैं। पुलिस प्रशासन जुलूस को संपन्न कराने के लिए एक महीने पहले से तैयारियां शुरू कर देता है।इतिहासकार की मानने तो ये परम्परा 300 साल पुरानी हैं। पहले इसका नाम नवाब साहब था लेकिन आपसी सौहार्द न बिगड़े इसके लिए जुलूस का नाम लाट साहब कर दिया गया। पहले जुलूस की 3 तस्वीरें.... छोटे और बड़े लाट साहब के निकलते हैं 2 जुलूस शाहजहांपुर में लाट साहब के दो जुलूस निकाले जाते हैं। जिसको छोटे और बड़े लाट साहब के नाम से जाना जाता है। छोटे लाट साहब का जुलूस सरायकाईयां मोहल्ले से निकाला जाता है। शहर के कई क्षेत्रों से होते हुए यह जुलूस वापस सराय काइयां पुलिस चौकी पर समाप्त कर दिया जाता है। यहां जगह-जगह पर लाट साहब पर रंग उड़ेला जाता है और लाट साहब के ऊपर जूता और झाड़ू की बौछार होती है। यह जुलूस सरायकइयां चौकी से चलकर तारीन गाड़ीपुरा, पक्का पुल, दलेलगंज, गढ़ी गाड़ीपुरा और पुत्तू लाल चौराहे से होते हुए वापस सराय काइयां पहुंचता है. यहां जुलूस का समापन होता है। इसी तरह बड़े लाट साहब का जुलूस चौक से शुरू होता है। इसका रुट करीब 8 किलोमीटर का है। जहां कोतवाल उनको सलामी देकर नेग देते हैं। उसके बाद रोशनगंज, बेरी चौकी, अंटा चौराहा होते हुए थाना सदर बाजार क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद बाबा विश्वनाथ मंदिर तक ले जाकर उसका समापन किया जाता है। इस दौरान दोनों जुलूसों के रूट की लगभग 50 मस्जिद और मजारों को तिरपाल से ढक दिया जाता है। ताकि इस दौरान धार्मिक स्थल पर रंग फेंक कर कोई माहौल को न बिगाड़ सके। लाट साहब बनने की प्रक्रिया इस बार अलग अलग जिलों से लाट साहब बनने वाले लोग जुलूस कमेटी के संपर्क में आ चुके हैं। इस बार एक नहीं बल्कि कई लाट साहब की व्यवस्था कमेटी ने की है। उनको बुलाने के बाद उनका मेडिकल कराया जाता है। उनकी तीन से चार दिन तक खूब मेहमानवाजी की जाती है। उनको जमकर शराब पिलाई जाती है, अच्छा भोजन दिया जाता है। लाट साहब को बनाने की प्रक्रिया जुलूस कमेटी के आयोजक संजय वर्मा और दीप पंडित बताते हैं कि ये एक परम्परा है। पहले बुजुर्ग निभाते आए और अब हम लोग उसकी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। लाट साहब की तैयारी के लिए एक भैंसागाड़ी की व्यवस्था करते हैं। भैंसागाड़ी पर तख्त रखकर उसके उपर मजबूती के साथ कुर्सी को बांधते हैं। उसकी सुरक्षा की पूरी व्यवस्था की जाती है। उसके लिए बाडी प्रोटेक्टर पुलिस प्रशासन उपलब्ध करा देता है। लाट साहब के पीछे एक रंग की लढी चलती है। कूंचा लाला से लाट साहब को पैदल लेकर आते हैं। चौकसी नाथ मंदिर ले जाने के बाद बाहर आते ही लाट साहब को भैंसागाड़ी पर बैठाकर जुलूस को कोतवाली के परिसर लाया जाता है। जहां कोतवाल से लाट साहब पूरी साल का ब्योरा मांगते हैं और फिर कोतवाल के द्वारा उनको नजराने के रूप में शराब की बोतल देते हैं और सलामी देते हैं। लाट साहब को दिया जाता है इनाम कमेटी की तरफ से लाट साहब बनने वाले को 21 हजार रुपये का इनाम, पांच जोड़ी कपड़े और जूते चप्पल दी जाती है। चौक कोतवाली उनको सलामी देते हैं साथ ही नजराने के रूप में शराब की बोतल भी देते हैं। लाट साहबका नाम गोपनीय रखा जाता है। लाट साहब के बारे में किसी प्रकार की कोई जानकरी नहीं दी जाती है। ये रहते हैं प्रशासन के इंतजाम लाट साहब के दो जुलूसों को शांतिपूर्ण संपन्न कराना पुलिस प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती होता है। क्योंकि जुलूस के दौरान जमकर हुड़दंग होता है। इसके लिए पुलिस प्रशासन एक महीने पहले से थानों पीस मीटिंग करते हैं। जहां जुलूस में बनाए जाने वाले एसपीओ और दोनो समुदाय के लोगों को बुलाकर उनसे सुझाव मांगे जाते हैं। फिर उन सुझाव पर पुलिस प्रशासन काम कर कमियों को दूर करता है। उसके बाद डीएम और एसपी रूट मार्च करते हैं। संवेदनशीलता ऐसी कि एडीजी और कमिश्नर तक को रूट मार्च में शामिल होना पड़ता है। रूट मार्च के दौरान बिजली खंभों को ठीक कराने और उसके ऊपर पालीथीन लगाने से लेकर रोड के गड्ढों को भरा जाता है। ट्रांसफॉर्मर को कवर किया जाता है। पुलिस प्रशासन शांतिपूर्ण संपन्न कराने के लिए सैकड़ों मीटिंग करता है। तीन घंटे के जुलूस की तैयारी एक महीने पहले से शुरू होती है। रूट मार्च पर आपराधिक किस्म के लोगो को चिह्नित कर उनको मुचलका पाबंद किया जाता है। ताकि जुलूस के दौरान माहौल न बिगड़े। इसके लिए पैरा मिलिट्री फोर्स और पीएसी के साथ साथ अलग अलग जिलो से पुलिस बल बुलाना पड़ता है। इस बार जुलूस मार्ग पर वाहन प्रतिबंधित रहेंगे। तब जाकर लाट साहब का जुलूस शांतिपूर्ण संपन्न होता है। अब जानिए क्या है इतिहास, कहां से शुरू हुई लाट साहब जुलूस निकालने की परंपरा इतिहासकारों के अनुसार, यह परंपरा शाहजहांपुर के अंतिम नवाब अब्दुल्ला खां ने 1746-47 में शुरू की थी। किले पर पुन: कब्जा करने के बाद इसकी शुरुआत की गई थी। उन्होंने किला मोहल्ला में एक रंग महल बनवाया था। अब उसे रंग मोहल्ला बोलते हैं। अब्दुल्ला खां वहां पर आकर हर साल होली खेलते थे। तब जुलूस निकाला जाता था, जिसमें हाथी-घोड़े होते थे, बैंड बाजा का इंतजाम रहता था। बाद में अब्दुल्ला की मौत हो गई। लेकिन उनके ना रहने के बाद भी लोगों ने जुलूस

Mar 14, 2025 - 10:00
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होली पर निकलेगा "लाट साहब' का जुलूस:भैंसा गाड़ी पर बैठाकर होती है जूते की बरसात, शहर कोतवाल गिफ्ट में देते है शराब
शाहजहांपुर में होली के दिन लाट साहब का जुलूस निकाला जाएगा। लाट साहब मतलब अंग्रेजों के शासन के क्र

होली पर निकलेगा "लाट साहब' का जुलूस

होली का त्योहार भारत में अलग-अलग रंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस बार, विशेष रूप से "लाट साहब" का जुलूस शहर के होली समारोहों का एक मुख्य आकर्षण होगा। इस परंपरा का आदान-प्रदान करने का अद्भुत तरीका है, जिसमें भैंसा गाड़ी पर बैठाकर जूते की बरसात की जाती है। यह जुलूस न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि पर्यटकों के लिए भी आकर्षक है, जो इसमें शामिल होने के लिए उत्सुक हैं।

लाट साहब का जुलूस और इसकी परंपराएं

जुलूस में भव्यता और आनंद को बनाए रखने के लिए, स्थानीय कोतवाल विशेष आयोजन करते हैं। यह जुलूस न केवल शहर के रंग-बिरंगे वातावरण को समृद्ध करता है, बल्कि इसे खास बनाने के लिए शहर कोतवाल गिफ्ट के रूप में शराब भी प्रदान करते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी पूरे गर्व के साथ मनाई जाती है।

क्यों है यह जुलूस विशेष?

इस जुलूस के दौरान, शहरवाले विभिन्न प्रकार के सजावटी गाड़ियों पर सवार होते हैं, जबकि भैंसा गाड़ी की विशेषता इसे और भी आकर्षक बनाती है। लोग इस जुलूस में शामिल होकर खुशियाँ मनाते हैं, और यह एक सामूहिक उत्सव का रूप ले लेता है। जूते की बरसात करना इस जुलूस की प्रमुख विशेषता है, जो हंसी-मजाक का कारण बनता है। इसका उद्देश्य सिर्फ मनोरंजन नहीं है, बल्कि यह सामाजिक सद्भावना को भी बढ़ावा देता है।

उत्सव के अन्य पहलू

जुलूस के अलावा, होली के इस पर्व पर स्थानीय बाजारों में तरह-तरह के रंग, मिठाई और विशेष खान-पान का आयोजन होता है। लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और एक-दूसरे के साथ मिठाई बांटते हैं। इस आयोजन में स्थानीय कला और संस्कृति को भी दिखाया जाता है, जो इसे और भी खास बनाता है।

निष्कर्ष

इस होली में "लाट साहब" का जुलूस एकता, रंग और उल्लास का प्रतीक होगा। इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आएंगे और यह त्योहार को यादगार बना देगा। जहाँ एक ओर लोग रंगों में रंगते हैं, वहीं दूसरी ओर यह जुलूस समाज में भाईचारा और खुशियों का संदेश भी फैलाता है।

आइए, इस होली पर एक साथ मिलकर इस अद्भुत जुलूस का आनंद लें और इसे अपने जीवन की बेहतरीन यादों में शामिल करें।

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