अमेरिकी रिपोर्ट में खुफिया एजेंसी RAW पर बैन की मांग:भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा- ये रिपोर्ट पक्षपाती और राजनीति से प्रेरित
भारत सरकार ने देश में धार्मिक स्वतंत्रता और सीक्रेट एजेंसी RAW पर बैन की मांग करने वाली अमेरिकी सरकार की अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। भारत ने इसे पक्षपाती और राजनीति से प्रेरित बताया। विदेश मंत्रालय ने बुधवार को कहा कि USCIRF लगातार अलग-अलग घटनाओं को गलत तरीके से पेश करता है और भारत के विविधतापूर्ण समाज को कमजोर करता है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि इस आयोग को खुद को "चिंता का विषय संस्था" घोषित कर देना चाहिए। भारत को विशेष चिंता वाला देश घोषित करने की मांग USCIRF ने अपनी 2025 की रिपोर्ट में कहा था कि भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति बिगड़ती जा रहा है और सिख अलगाववादियों की हत्या की साजिश में कथित रूप से शामिल होने की वजह से सीक्रेट एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) पर बैन लगा दिया जाना चाहिए। रिपोर्ट में भारत को विशेष चिंता वाला देश घोषित करना चाहिए। रिपोर्ट का हकीकत से कोई नाता नहीं विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत में 1.4 अरब लोग रहते हैं जो सभी धर्मों का पालन करते हैं। हालांकि, हमें कोई उम्मीद नहीं है कि USCIRF भारत के बहुलवादी समाज के सह-अस्तित्व को स्वीकार करेगा। अमेरिका का यह संस्थान हकीकत से बहुत दूर है, हमें कोई उम्मीद भी नहीं है कि यह सच्चाई से जुड़ेगा। भारत की छवि कमजोर करने की ऐसी कोशिशें सफल नहीं होंगी। USCIRF अमेरिकी राष्ट्रपति को सलाह देता है USCIRF अमेरिका सरकार की एक फेडरल एजेंसी है। इसे 1998 में इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम एक्ट के तहत बनाया गया है। यह संस्थान दुनिया भर के देशों में धार्मिक आजादी से जुड़े मुद्दों पर नजर रखती है। इसके साथ ही राष्ट्रपति, विदेश मंत्री और संसद को सिफारिशें देती है। पहले भी भारत के खिलाफ रिपोर्ट जारी कर चुका है यह पहली बार नहीं है जब USCIRF ने भारत के खिलाफ इस तरह की रिपोर्ट जारी की हो। इससे पहले 2024 में इसने भारत में अल्पसंख्यकों पर हमले को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसे भारत सरकार ने खारिज कर दिया था। इसके अलावा भी बीते कई सालों में यह इस तरह की रिपोर्ट जारी कर चुका है। -------------------------------------------- यह खबर भी पढ़ें.... अमेरिका शराब-कृषि उत्पाद सस्ते कराने पर अड़ा:भारत का बीच का रास्ता निकालने पर जोर, दोनों देशों में टैरिफ को लेकर हुई बातचीत अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प 2 अप्रैल से भारत पर रेसिप्रोकल (जैसे को तैसा) टैक्स लगाने का ऐलान कर चुके हैं। टैक्स की दर किस उत्पाद पर कितनी होगी, यह तय करने के लिए अमेरिका के सहायक व्यापार प्रतिनिधि ब्रेंडन लिंच की टीम इन दिनों नई दिल्ली में केंद्र सरकार से बात कर रही है। यहां पढ़ें पूरी खबर...

अमेरिकी रिपोर्ट में खुफिया एजेंसी RAW पर बैन की मांग
हाल ही में एक अमेरिकी रिपोर्ट में भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ (RAW) पर बैन लगाने की मांग की गई है, जिससे international relations में एक नया मोड़ आ गया है। इस रिपोर्ट को भारतीय विदेश मंत्रालय ने पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया है, यह कहते हुए कि रिपोर्ट में की गई टिप्पणियाँ पक्षपाती और राजनीति से प्रेरित हैं। यह मामला न केवल भारत और अमेरिका के बीच के संबंधों को प्रभावित कर सकता है, बल्कि वैश्विक खुफिया हस्तक्षेप के दृष्टिकोण को भी चुनौती दे सकता है।
भारत का रुख और विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया
भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया में स्पष्ट किया है कि किसी भी खुफिया एजेंसी को निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले ठोस सबूतों की आवश्यकता होती है। मंत्रालय ने पुष्टि की कि रॉ पिछले कई वर्षों से देश की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है और यह आरोप पूरी तरह से बेबुनियाद हैं। मंत्रालय का यह बयान वैश्विक मंच पर भारत के अधिकारों की रक्षा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
अमेरिकी रिपोर्ट में कुछ विचारों को जगह दी गई है जो भारत की खुफिया चुनौतियों पर आधारित हैं। आलोचकों का कहना है कि यह रिपोर्ट भारत को एक नकारात्मक दृष्टि से प्रस्तुत करती है और भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा को आहत करने का प्रयास करती है। हालांकि, भारतीय सरकार इस पर यह तर्क देती है कि ऐसे नकारात्मक विवरण केवल विदेशी राजनीति का हिस्सा हैं, जो भारत की छवि को धूमिल करने की कोशिश करते हैं।
भविष्य की संभावनाएँ
इस रिपोर्ट से भारत अमेरिका के संबंधों पर विशेष प्रभाव पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बैन का मुद्दा केवल एक प्रकरण नहीं है, बल्कि अमेरिका की विदेशी नीति में भारत के प्रति अंतर्निहित जटिलताओं को दर्शाता है। ऐसे में भारत को अपने सहयोगियों के साथ संबंधों को मजबूत करने की दिशा में और भी अधिक सक्रिय होना पड़ेगा।
अंत में, इस मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और चर्चा की जा रही है, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वैश्विक सुरक्षा में कठिनाइयाँ केवल एक देश तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सामूहिक रूप से विचार करने की आवश्यकता है।
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